समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4 सितंबर: देश के अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव में अब एक सप्ताह से भी कम समय शेष रह गया है और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सियासी हलचल तेज हो गई है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने सभी सांसदों को 6 सितंबर तक दिल्ली पहुंचने का निर्देश जारी किया है। मतदान 9 सितंबर को होना है, जिसमें एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलेगा।
भाजपा की तैयारियां और रात्रिभोज कूटनीति
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 6 सितंबर को अपने निवास पर सभी सांसदों को रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया है। इसके अगले दिन यानी 7 सितंबर को सुबह 9 बजे से देर शाम तक पार्टी की कार्यशाला आयोजित की जाएगी।
8 सितंबर को संसद परिसर के जीएमसी बालयोगी सभागार में दोपहर 3 बजे से 6 बजे तक एक और विशेष कार्यशाला होगी। उसी शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए सांसदों के लिए अपने निवास पर डिनर का आयोजन करेंगे। इसे चुनाव से पहले एनडीए की एकजुटता दिखाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
चुनावी गणित
9 सितंबर को होने वाले मतदान में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 787 सदस्य हिस्सा लेंगे। उपराष्ट्रपति पद जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 394 मतों की आवश्यकता होगी।
एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन फिलहाल बढ़त की स्थिति में हैं, क्योंकि एनडीए के पास कुल 422 सांसदों का समर्थन है। इनमें मनोनीत सदस्य भी शामिल हैं, जो राधाकृष्णन के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। एनडीए की ताकत 542 सदस्यीय लोकसभा में 293 और 245 सदस्यीय राज्यसभा में 129 सीटों पर आधारित है।
विपक्ष की रणनीति
विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने इस चुनाव में वरिष्ठ न्यायविद बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। विपक्ष उन्हें “भारत के सबसे प्रगतिशील और सम्मानित न्यायविदों” में से एक बताकर जनता और सांसदों के बीच संदेश देने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि संख्याबल के लिहाज से विपक्ष पिछड़ रहा है, लेकिन उसका उद्देश्य चुनाव को प्रतीकात्मक लड़ाई के रूप में पेश करना है। विपक्ष का कहना है कि भले ही जीत उनकी न हो, लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों और विचारधारा की लड़ाई जारी रहेगी।
राजनीतिक संदेश
विशेषज्ञों का मानना है कि इस चुनाव का परिणाम लगभग तय माना जा रहा है, लेकिन विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा करना लोकतंत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का हिस्सा है। वहीं, एनडीए द्वारा आयोजित रात्रिभोज और कार्यशालाओं को सांसदों की एकजुटता सुनिश्चित करने की कड़ी रणनीति माना जा रहा है।
9 सितंबर को होने वाला उपराष्ट्रपति चुनाव संख्याबल के लिहाज से भले ही एनडीए के पक्ष में दिख रहा हो, लेकिन विपक्ष इसे विचारधारा की जंग के रूप में देख रहा है। ऐसे में यह मुकाबला केवल एक संवैधानिक पद के लिए नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक धारा और संदेश तय करने वाला चुनाव भी साबित हो सकता है।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.