ऐसा क्या हुआ कि रातो-रात उप-राज्यपाल की पद से हटाई गई हिंदुस्तान की पहली दबंग महिला आईपीएस किरण बेदी
अक्सर तमाम चर्चाओं कहिये या फिर विवादों में रहने वाली, हिंदुस्तान की पहली दबंग-हरफनमौला महिला आईपीएस किरण बेदी पुडुचेरी में अचानक कैसे फेल हो गयीं? वो खुद फेल हो गयीं या फिर करवा दी गयीं?
संजीव चौहान। अक्सर तमाम चर्चाओं कहिये या फिर विवादों में रहने वाली, हिंदुस्तान की पहली दबंग-हरफनमौला महिला आईपीएस किरण बेदी पुडुचेरी में अचानक कैसे फेल हो गयीं? वो खुद फेल हो गयीं या फिर करवा दी गयीं? क्यों पुडुचेरी के लेफ्टिनेंट गवर्नर का सिंहासन रातों-रात अचानक ही खींच लिया गया. क्यों उनके आईंदा के करियर पर लेफ्टिनेंट गवर्नर की कुर्सी ने बाकी बची तमाम उम्र के लिए, लगवा डाला “बर्खास्तगी” का दाग? जबसे पुडुचेरी के उप-राज्यपाल की कुर्सी से किरण बेदी उतारी गयी हैं, उसके तुरंत बाद से ही पुडुचेरी की राजनीति में “घमासान” क्यों मचा है? ऐसे सैकड़ों सवाल लोगों के जेहन में कुलबुला रहे हैं.
बतौर महिला आईपीएस किरण बेदी की दबंगई, ईमानदारी, काबिलियत पर शायद ही जमाने में किसी को शक रहा हो. तिहाड़ को “जेल” से “सुधार-आश्रम” में तब्दील करने का सेहरा आज तलक किरण बेदी के ही सिर बंधा हुआ है. तिहाड़ जेल में कैदियों के उद्धार हेतु लिये गये उनके फैसले, आज भी मिसाल के तौर पर पेश किये जाते हैं. सिर्फ तिहाड़ में ही नहीं, दुनिया भर की बाकी तमाम जेलों में भी. जहां तक बात उनकी दबंगई या जिद्दी-मुंहफट होने की है तो, इन्हीं किरण बेदी ने दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस से, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार ही, दिल्ली पुलिस की नौकरी के दौरान, ट्रैफिक पुलिस की क्रेन से उठवा ली थी. उसके बाद वे “क्रेन-बेदी” कही जाने लगीं.
अतीत या वर्तमान सब बराबर समझो
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, डीआईजी मिजोरम, दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर की स्पेशल सेक्रेट्री, आईजी चंडीगढ़, दिल्ली पुलिस में स्पेशल कमिश्नर इंटेलिजेन्स, यू.एन. मिशन में सामान्य पुलिस सलाहकार, होम गार्ड और नागरिक रक्षा विभाग में डायरेक्टर जनरल, महानिदेशक पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (Director General, Bureau of Police Research and Development यानि BPR & D) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी यही किरण बेदी रहीं. अपनी शर्तों और अपने स्टाइल पर काम के लिए परिचित किरण बेदी के वश की शायद वो “राजनीति” कमांड कर पाना नहीं था, जो इन दिनों पुडुचेरी में चल रही है. दिल्ली के राजनीतिक-अखाड़े में किये पहले ही अटेंप्ट में (विधानसभा इलेक्शन) हार का स्वाद चख चुकीं किरण बेदी को, खुद की “एडमिनिस्ट्रेटिव” काबिलियत पर विश्वास था. लिहाजा उस हार के बाद वे चुप्पी साधकर सही वक्त के इंतजार में बैठ गयीं. इस उम्मीद में कि, हिंदुस्तानी हुकूमत उनकी ईमानदार और दबंग छवि को ध्यान में रखेगी. उन्हें खुद ही दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बना देगी. तब भी पासा रातों-रात पलट गया. किरण बेदी की उम्मीदें पानी के रेले में बहा दी गयीं. बेदी, दिल्ली कमिश्नर बनने की चिट्ठी मिलने की बाट ही जोहती रह गयीं.
एक के बाद एक मुसीबतों भरा इतिहास
हिंदुस्तानी हुकूमत ने उस वक्त भी उन्हें जाने-अनजाने नजरंदाज कर दिया. तब आईपीएस डॉ. के.के. पॉल के दिल्ली पुलिस कमिश्नर पद से हटते ही, कमिश्नर की कुर्सी पर जेसिका लाल जैसे बदनाम हत्याकांड में चर्चाओं में आये, वाईएस डडवाल (युद्धवीर सिंह डडवाल) बैठा दिये. जोकि किरण बेदी से आईपीएस बैच में जूनियर थे. मतलब, किरण बेदी की जिंदगी में वो एक और झटका लग गया. उससे पहले किरण बेदी को जिंदगी का पहला झटका 17 फरवरी सन् 1988 को यानि अब से करीब 33 साल पहले लगा था. जब उन्होंने उत्तरी दिल्ली जिले में स्थित तीस हजारी कोर्ट कांड में वकीलों को बुरी तरह पुलिस से घिरवा डाला था. बाद में वकीलों ने बाजी पलट दी. जिसके चलते दिल्ली के वकीलों ने, बेदी के सिर पर ही पूरे बवाल का लबादा लाद दिया था. मतलब बेदी के जीवन का पहला था तीस हजारी कांड. दूसरा दिल्ली के पुलिस कमिश्नर की कुर्सी पर बैठने से चूकना. तीसरा राजनीति के अखाड़े में उतरने की तमन्ना में विधायकी के पहले इलेक्शन में ही चुनाव हार बैठना. अब चौथा तमाशा सामने तब आया जब उनसे, पुडुचेरी के लेफ्टिनेंट गवर्नर की “कुर्सी” भी, हिंदुस्तानी हुक़ूमत ने शोर-शराबा मचने से पहले धीरे से ले ली. हिंदुस्तानी हुक़ूमत किसे गवर्नर बनाये, किसे हटाये? यह उसका अपना ह़क या फिर संवैधानिक अधिकार है. इसमें दखलंदाज़ी का ह़क किसी को नहीं है.
ढलती उम्र में भला ऐसा सलूक क्यों?
अब से पहले तक यानि पीछे (अतीत में) जो हुआ सो हुआ. उस पर धूल डाल दीजिए. मौजूदा हालातों में सौ टके का सवाल यह है कि, किरण बेदी से अब पुडुचेरी की “लेफ्टिनेंट गवर्नरी” में ऐसा क्या कसूर या कांड हो गया, जो, हिंदुस्तानी हुक़ूमत ने उन्हें संभलने तक का मौका नहीं दिया. रातों-रात राष्ट्रपति भवन से उनको हटाये जाने का फरमान जारी हो गया. आदेश में यह तक साफ-साफ लिख दिया गया कि वे, यानि किरण बेदी पुडुचेरी के उप-राज्यपाल की कुर्सी तुरंत, तमिलिसाई सौंदर्यराजन को सौंप दें. हमेशा बेहद सोच के मगर सटीक और खरा-खरा बोलने वाली किरण बेदी भले ही, हाल-फिलहाल के इस रद्दो-बदल पर बेहद सधे हुए शब्दों में ही बोल रही हों.खुलकर कुछ न बोलें. या फिर उन्हें हुकूमत ने इससे भी ज्यादा बेहतर, भविष्य का “लॉलीपॉप” दे दिया हो! यह सब अपनी जगह है. सवाल यह है कि, आखिर किरण बेदी की ढलती उम्र के 72वें पड़ाव पर उनके साथ, यह सब इस तरह अचानक क्यों? राजनीतिक गलियारों में हो रही चर्चाओं पर अगर गौर किया जाये तो, इस हार में भी हिंदुस्तानी हुकूमत और किरण बेदी को खुद की “जीत” दिखाई दे सकती है.
बेदी के वश की नहीं पॉलिटिकल-मैनेजरी!
किरण बेदी बेहतर आईपीएस या एडमिनिस्ट्रेटर हो सकती हैं. बेहतर पॉलिटिकल “मैनेजरी” शायद उनके बूते की बात कतई नहीं है. जहां (दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी पर) वे अपने आईपीएस अनुभव का बेहतर रिजल्ट दे सकती थीं, वहां उन्हें हुकूमत ने मौका नहीं दिया. जहां मौका दिया, वहां वे कुर्सी संभालते ही कथित तौर पर तमाम बयानबाजियों में फंस-उलझ गयीं. यानि पुडुचेरी की लेफ्टिनेंट गवर्नर बनने के कुछ दिन बाद से ही, किरण बेदी और पुडुचेरी के मुख्यमंत्री (राज्य की हुकूमत)आमने-सामने आ गये. पुडुचेरी की लेफ्टिनेंट गवर्नर की कुर्सी से किरण के हटते ही, उस पर जैसे ही तमिलिसाई सौंदर्यराजन बिराजीं. उसके दो-तीन बाद से ही नई लेफ्टिनेंट गवर्नर ने, राज्य विधानसभा में “फ्लोर-टेस्ट” का ऐलान कर दिया. इससे साफ जाहिर होता है कि दरअसल, किरण बेदी को हटाकर, तमिलिसाई सौंदर्यराजन को रातों-रात पुडुचेरी का लेफ्टीनेंट गवर्नर बना डालने की असल वजह क्या थी? मतलब और मंशा दोनो साफ हैं कि, शायद राज्य में बदलने वाले राजनैतिक हालातों को “मैनेज” करना, हिंदुस्तान की इस दबंग पूर्व महिला आईपीएस और पुडुचेरी की तत्कालीन उप-राज्यपाल किरण बेदी के बूते की बात नहीं रही होगी!
साभार- www.tv9hindi.com
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