ओउम् (ॐ) या ओंकार ईश्वर का वाचक है। ईश्वर के साथ ओंकार का वाच्य-वाचक-भाव सम्बन्ध नित्य है, सांकेतिक नहीं। संकेत नित्य या स्वाभाविक सम्बन्ध को प्रकट करता है। सृष्टि के आदि में सर्वप्रथम ओंकाररूपी प्रणव का ही स्फुरण होता है। तदनन्तर सात करोड़ मन्त्रों का आविर्भाव होता है। इन मन्त्रों के वाच्य आत्मा के देवता रूप में प्रसिद्ध हैं। ये देवता माया के ऊपर विद्यमान रह कर मायिक सृष्टि का नियन्त्रण करते हैं। इन में से आधे शुद्ध मायाजगत् में कार्य करते हैं और शेष आधे अशुद्ध या मलिन मायिक जगत् में। इस एक शब्द को ब्रह्माण्ड का सार माना जाता है, 16 श्लोकों में इसकी महिमा वर्णित है।
ब्रह्मांड में जो ध्वनि हमेशा गुंजायेमान रहती हैं उसी ध्वनि को ही ॐ कहा गया है। यह बात कई वैज्ञानिक शोधों से सत्य भी प्रमाणित हो चुकी हैं। वर्षो पहले हमारे ऋषि मुनियों ने इस शब्द की व्याख्या कर दी थी और बता दिया था कि इसका संबंध सीधे ब्रह्मांड अर्थात ईश्वर से हैं जो सर्वत्र विद्यमान हैं।
कठोपनिषद में यह भी लिखा है कि आत्मा को अधर अरणि और ओंकार को उत्तर अरणि बनाकर मंथन रूप अभ्यास करने से दिव्य ज्ञानरूप ज्योति का आविर्भाव होता है। उसके आलोक से निगूढ़ आत्मतत्व का साक्षात्कार होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी ओंकार को एकाक्षर ब्रह्म कहा है। माण्डूक्योपनिषत् में भूत, भवत् या वर्तमान और भविष्य–त्रिकाल–ओंकारात्मक ही कहा गया है। यहाँ त्रिकाल से अतीत तत्व भी ओंकार ही कहा गया है। आत्मा अक्षर की दृष्टि से ओंकार है और मात्रा की दृष्टि से अ, उ और म रूप है। चतुर्थ पाद में मात्रा नहीं है एवं वह व्यवहार से अतीत तथा प्रपंचशून्य अद्वैत है। इसका अभिप्राय यह है कि ओंकारात्मक शब्द ब्रह्म और उससे अतीत परब्रह्म दोनों ही अभिन्न तत्व हैं।
वैदिक वाङ्मय के सदृश धर्मशास्त्र, पुराण तथा आगम साहित्य में भी ओंकार की महिमा सर्वत्र पाई जाती है। इसी प्रकार बौद्ध पन्थ तथा जैन सम्प्रदाय में भी सर्वत्र ओंकार के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति देखी जाती है। प्रणव शब्द का अर्थ है– प्रकर्षेणनूयते स्तूयते अनेन इति, नौति स्तौति इति वा प्रणव:।
प्रणव का बोध कराने के लिए उसका विश्लेषण आवश्यक है। यहाँ प्रसिद्ध आगमों की प्रक्रिया के अनुसार विश्लेषण क्रिया का कुछ दिग्दर्शन कराया जाता है।
महत्व तथा लाभ
ओउ्म तीन अक्षरों ‘अ’ ‘उ’ ‘म’ से मिलकर बना है जो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा त्रिलोक भूर्भुव: स्व: भूलोक भुव: लोक तथा स्वर्ग लोक का प्रतीक है।
लाभ
पद्मासन में बैठ कर इसका जप करने से मन को शांति तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है, वैज्ञानिकों तथा ज्योतिषियों को कहना है कि ओउ्म तथा एकाक्षरी मंत्र का पाठ करने में दाँत, नाक, जीभ सब का उपयोग होता है जिससे हार्मोनल स्राव कम होता है तथा ग्रंथि स्राव को कम करके यह शब्द कई बीमारियों से रक्षा तथा शरीर के सात चक्र (कुंडलिनी) को जागृत करता है।
धर्म… ओम की उत्पत्ति भगवान शिव के मुख से ही हुई है।
आष्टा मूर्ति में सभी देवताओं की पूजा होती है पर भगवान महादेव की पूजा मूर्ति व लिंग दोनों में होती है। क्योंकि एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्म रूप होने के कारण निश्कल कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण उन्हें सकल भी कहा गया है अर्थात शिव लिंग शिव के निराकार स्वरुप का प्रतीक है। इसी तरह साकार विग्रह उनके साकार स्वरुप का प्रतीक है। यह बातें नगर के सुभाष नगर में साहू निवास पर चल रहे महाशिव पुराण के दूसरे दिन पंडित डॉ. दीपेश पाठक ने कही। उन्होंने कहा कि सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव, अनुग्रह यह पांचों कार्य महादेव के हैं। प्रथम चार कृत्य संसार के विस्तार करने वाले हैं। पांचवां कार्य अनुग्रह मोक्ष के लिए है। ओम की उत्पत्ति भगवान शिव के मुख से ही हुई है जो भी इस ओंकार मंत्र का जप प्रति दिन करता है वो शिव कृपा का भागी होता है।
परंपरागत रूप से ‘ओम’ तीन ध्वनियों से बना है, ‘आ-उउ-उम्म’ शब्द बनाने के लिए। कहा जाता है कि इन तीनों में से प्रत्येक ध्वनि शरीर में अलग-अलग कंपन पैदा करती है। एए आपकी नाभि के चारों ओर कंपन करता है और आपके जागने की स्थिति के बारे में जागरूकता पैदा करता है, यूयू आपके सीने में कंपन करता है और स्वप्न की स्थिति से संबंधित होता है, और ईईएमएम आपके गले में कंपन करता है, गहरी नींद से संबंधित है। विचार यह है कि इन तीन ध्वनियों का जाप आपके जीवन में इन लाभों को प्रकट करने में मदद करता है।
लोग ओम चिन्ह क्यों पहनते हैं?
ओम समग्रता के लिए माना जाता है – हर चीज में दिव्य एकता – यदि आप किसी को ओम टी-शर्ट या ओम टैटू में देखते हैं, तो अब आप जानते हैं कि वे ब्रह्मांड के प्रति अपना आभार व्यक्त कर रहे हैं और सभी चीजों में सामंजस्य के बारे में जागरूकता व्यक्त कर रहे हैं।
ओम जप कैसे मदद करता है।
कक्षा की शुरुआत और अंत में ओम का जाप करने से आपको अपने और अपने साथी योगियों को संकेत मिलता है कि यह प्रतिबिंब और शांति का समय है। ओम का जप करने से आपको अपने आप में जांच करने का समय मिलता है, शांत कमरे की शांति में कंपन के अलावा कुछ भी नहीं पैदा होता है।
इस तरह करें ॐ का जाप:
ॐ का जाप करने के लिए शान्ति की आवश्यकता होती है। इसके लिए सुबह के समय जल्दी उठना चाहिए। अगर आप सुबह जल्दी न उठ पाएं तो रात को सो ने से पहले भी इस पवित्र मंत्र का जाप कर सकते हैं।
इसके लिए पूजा घर या धूप-दीप की जरुरत नहीं होती है। साफ जगह पर जमीन पर आसन बिछाएं और उस पर बैठ जाएं। इस मंत्र का उच्चारण तेज आवाज में करना चाहिए। आसन पर पद्मासन लगाकर बैठें। आंखें बंद करें और पेट से आवाज खींचकर निकालते हुए ॐ का उच्चारण करें।
जितना हो सके उतना लंबा ॐ को खींचें। जब सांस भर जाए तो यही प्रक्रिया दोबारा दोहराएं।
जब इसका उच्चारण हो जाए तो 2 मिनट तक ध्यान लगाकर ही बैठें। अगर इस मंत्र का नियमित रूप से जाप किया जाए तो शरीर तनाव से मुक्त हो जाता है।
ॐ शब्द की विशेषता
ॐ एक ऐसा शब्द हैं जिसका उच्चारण करने से हम अपने आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार देख सकते हैं। यदि इसका उच्चारण किसी शांत स्थल पर किया जाये तो हम अपने अंदर किसी अद्भुत ऊर्जा का संचार देख सकते हैं।
योग में भी इसको बहुत ज्यादा महत्त्व दिया गया हैं क्योंकि ॐ शब्द के उच्चारण के बिना योग अधूरा माना जाता हैं। पुराने समय में भी ऋषि मुनि जब पर्वतों पर जाकर तपस्या करते थे तो वे इस शब्द का उच्चारण करके स्वयं को ब्रह्मांड से जोड़ने का यत्न करते थे।
ॐ जाप के फायदे:
1.यह आपके शरीर में रक्त के सुचारू प्रवाह में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका निरंतर व प्रतिदिन जाप करने से आपके शरीर में रक्त संचार सुचारू रूप से बना रहता है जिससे आपको कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं।
2.यदि आप नींद ना आने या कम नींद आने की समस्या से परेशान हैं तो इसमें भी यह मंत्र आपकी मदद कर सकता हैं। रात को सोते समय आप इस मंत्र का शांत मन से उच्चारण करे व इसे 10 मिनट तक करे। इससे आपको नींद तो आएगी ही बल्कि आप नकारात्मक स्वप्नों से भी दूर रहेंगे।
3.जब हम ॐ मंत्र का जाप करते हैं तो इससे हमारा मन मस्तिष्क एकाग्र होता हैं व हमारी बुद्धि तेज बनती है। इसका निरंतर जाप करते रहने से आपकी याददाश्त में बढ़ोत्तरी होती हैं व आपकी चेतना मजबूत होती हैं।
4. इस मंत्र में आप जिन अक्षरों का उच्चारण करते हैं वे हमारे कंठ, ह्रदय व नाभि में कम्पन्न करते हैं जो हमारे शरीर के अंगों को स्वस्थ रखते हैं। इससे आपके फेफड़े पहले की अपेक्षा में मजबूत बनते हैं व आपका ह्रदय स्वस्थ रहता हैं।
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