क्या होता है लीप ईयर? हर चौथे साल फरवरी में क्‍यों होते हैं 29 दिन

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 1जनवरी।नए साल की शुरुआत हो गई है और यह साल एक ‘लीप ईयर’है. एक सामान्य वर्ष में अगर आपको जनवरी से लेकर दिसंबर तक एक कैलेंडर में दिन गिनने हों, तो आप 365 दिन गिनेंगे, लेकिन अगर आप इसे हर 4 साल में गिनेंगे तो आपको आंकड़ा बदला हुआ मिलेगा. अब आपको 365 दिन की बजाय 366 दिन दिखाई देंगे. दरअसल में ऐसा लीप ईयर की वजह से होता है. लगभग हर चार साल में फरवरी में 28 के बजाय 29 दिन होते हैं.

इस प्रकार, वर्ष में 366 दिन होते हैं, जिसे लीप ईयर कहा जाता है. एक्‍सट्रा दिन को फरवरी के महीने में जोड़ा जाता है और हर चार साल बाद फरवरी का महीना, 28 दिनों की बजाय 29 दिनों का हो जाता है. ऐसा क्यों होता है इसके पीछे की गणित आज हम आपको अपने इस लेख में समझाएंगे.

क्या होता है लीप ईयर 
ग्रेगोरियन कैलेंडर में आमतौर पर 365 दिन होते हैं, लेकिन लीप ईयर में इसमें 366 दिन होते हैं. लीप ईयर तब होता है जब ग्रेगोरियन कैलेंडर में एक अतिरिक्त दिन जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ है कि वर्ष में सामान्य 365 के बजाय 366 दिन होंगे. दरअसल में पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने में लगभग 365.242 दिन का समय लगता है.

चूंकी एक साल में 365 दिन होते हैं, ऐसे में 0.242 दिन का बचा हुआ समय चार वर्ष में जुड़कर एक दिन हो जाता है. यही एक दिन हर चार वर्ष में फरवरी में जुड़ जाता है, जो 28 से 29 दिन का हो जाता है और वह साल 365 के बजाय 366 दिन का हो जाता है. नासा के अनुसार, सरल भाषा में कहें तो ‘एक दिन का बचा हुआ टुकड़ा.

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा आखिर फरवरी में ही क्‍यों होता है तो चलिए इसका जवाब भी हम आपको देते हैं. पहला लीप डे जूलियस सीज़र द्वारा जूलियन कैलेंडर में पेश किया गया था, जिसे 45 ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था. जूलियन कैलेंडर में साल का पहला महीना मार्च और आखिरी फरवरी था, तभी कैलेंडर में लीप ईयर की व्यवस्था की गई थी.

उन दिनों लीप ईयर के एक्‍सट्रा दिन को आखिरी महीने में जोड़ दिया जाता था. हालांकि ग्रेगोरियन कैलेंडर आने के बाद कुछ बदलाव हुए जिसके बाद पहला महीना जनवरी हो गया. ऐसे में एक्‍सट्रा दिन को फरवरी में ही जोड़ा गया, क्‍योंकि पहले से ये क्रम चलता आ रहा था और फरवरी का महीना सबसे छोटा था इसीलिए ऐसा किया गया.

आप सोच रहे होंगे कि आखिर लीप ईयर को क्यों जरूरी है? देखा जाए तो एक वर्ष में 5 घंटे, 46 मिनट और 48 सेकंड को अंदेखा करना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन अगर आप कई सालों तक हर साल लगभग 6 घंटे घटाते रहेंगे, तो वास्तव में इसका असर आगे चलकर दिख सकता है.

उदाहरण के लिए, मान लें कि आप जहां रहते हैं वहां जुलाई गर्मी का महीना होता है, अगर लीप ईयर न हो तो ये सभी गायब घंटे दिन, सप्ताह और यहां तक ​​कि महीनों में जुड़ जाएंगे और फिर मौसम परिवर्तन का जरा भी ज्ञान नहीं रहेगा. कुछ सौ वर्षों में जुलाई गर्मी की जगह ठंड यानी सर्दियों का महीना होने लगेगा. 2024 के बाद आने वाले वर्षों में 2028, 2032, 2036, 2040, 2044 और 2048 लीप ईयर होंगे.

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