’वह कहीं दूर जो एक दीया अब भी जल रहा है
तेरी नामुराद हवाएं हर तरफ पहुंची नहीं हैं अभी’
आखिरकार केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजुजु को अपनी अपरिक्वता और बड़बोलेपन की कीमत चुकानी ही पड़ी, उन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में भेज कर पीएम ने उन्हें एक तरह से यह समझाने की कोशिश की है कि ’वे जरा ‘ग्राउंडेड’ ही रहें।’ उनकी जगह लेने वाले अर्जुन राम मेघवाल की बस दो खूबियों ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, एक तो वे पीएम के बेहद करीबी मंत्रियों में शुमार होते हैं, दूसरा वे उतना ही बोलते और करते हैं जितना उनसे कहा जाता है। रिजुजु के यूं अचानक जाने की पटकथा तब लिखी गई जब नए सीबीआई चीफ के चयन को लेकर प्रधानमंत्री, देश के मुख्य न्यायाधीश और नेता विपक्ष अधीर रंजन चौधरी की एक महत्वपूर्ण बैठक आहूत थी। शुरूआती रूझानों में पीएम का आग्रह इस बात को लेकर दिखा कि ’क्यों नहीं सीबीआई के मौजूदा डायरेक्टर सुबोध जायसवाल को ही एक एक्सटेंशन दे दिया जाए।’ सूत्र बताते हैं कि इस मामले में सीजेआई की राय बिल्कुल स्पष्ट थी कि ’अभी अदालत में ईडी डायरेक्टर के सेवा विस्तार पर इतने सवाल खड़े किए हैं, ऐसे में सीबीआई डायरेक्टर इससे अलग कैसे हो सकते हैं?’ इसके बाद 1987 बैच के दिनकर गुप्ता के नाम की चर्चा हुई, जो वर्तमान में एनआईए चीफ हैं। पर मुख्य न्यायाधीश की स्पष्ट राय थी कि ’ऐसी नियुक्तियों में हमेशा वरिष्ठता का भी ध्यान रखा जाना चाहिए,’ इस नाते 1986 बैच के प्रवीण सूद सबसे सीनियर थे और उनके नाम पर मुहर लग गई। इसके बाद चाय के दौरान पीएम और सीजेआई में न्यायपालिका और विधायिका के बीच परस्पर सौहार्द्र का जिक्र आया। और जब बात निकली तो बात दूर तलक गई। मुख्य न्यायाधीश ने सरकार के मंत्री के उन बयानों की ओर पीएम का ध्यान आकृष्ट कराया जहां वे बात-बेबात कॉलिजियम सिस्टम को गरियाते रहे हैं, रिजुजु का वह बयान भी न्यायपालिका के लिए खासा संवेदनशील था जिसमें उन्होंने कुछ रिटायर्ड जजों को ’एंटी इंडिया’ गतिविधियों में संलिप्त बता दिया और यह भी कहा कि ’ये रिटायर्ड जज गण विपक्ष का ’रोल प्ले’ करने की कोशिश कर रहे हैं।’ जाहिर है इतने बड़े और संवेदनशील बयान सिर्फ रिजुजु के मन में तो नहीं पनपा होगा? सो, 2024 के चुनाव की आहटों की बेला में परस्पर सहयोग के कसीदे पढ़े गए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी से अडानी को क्लीनचिट भी मिल गई, सेबी को भी तीन महीने का वक्त मिल गया और बदले में रिजुजु की कानून मंत्रालय से छुट्टी हो गई।
हनी ट्रैप में कैसे फंस गए कुरूलकर?
देश की नामचीन संस्था डीआरडीओ के डायरेक्टर प्रदीप कुरूलकर को देश की सुरक्षा से जुड़ी अहम जानकारियां एक पाकिस्तानी लड़की के साथ शेयर करने के आरोप में एटीएस ने गिरफ्तार कर लिया और एजेंसी यह जानने की कोशिश कर रही है कि ’वे और कितनी लड़कियों के ‘हनी ट्रैप’ के जाल में फंसे थे।’ 59 वर्षीय कुरूलकर इसी वर्ष नवंबर में अपनी डीआरडीओ की नौकरी से रिटायर होने वाले थे। सूत्रों की मानें तो यह कुरूलकर ही थे जो हनी ट्रैप से बचने के गुर अपने विभाग वालों को सिखाते थे। बीते वर्ष पुणे के डीआरडीओ परिसर में ऐसा ही एक कार्यक्रम आयोजित था जिसमें कुरूलकर ने बतौर विशेषज्ञ हनी ट्रैप से बचने के तरीकों पर प्रकाश डाला था। फिलहाल डीआरडीओ ने अपने इस डायरेक्टर का प्रोफाइल अपनी साइट से हटा दिया है। चंद नग्न तस्वीरों के एवज में अपने देश की संवेदनशील जानकारियां एक अनजान लड़की के साथ शेयर करने की ऐसी क्या मजबूरी थी, जब उनसे यह पूछा गया तो कुरूलकर ने कहा कि वे ’अकेलेपन’ के शिकार थे। जबकि कुरूलकर और उनकी 4 पीढ़ियां देशभक्ति के रंग में पगी है, इनका और इनके परिवार का संघ से नाता बेहद पुराना है। उनका एक इंटरव्यू भी इन दिनों वायरल हो रहा है जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ दिख रहे हैं और कह रहे हैं कि ’बीते 14 वर्षों से वे संघ के विभिन्न कार्यक्रमों में सेक्सोफोन बजाते रहे हैं।’ सनद रहे कि 2000 के दशक के मध्य में डीआरडीओ ने अपना एक ‘इलिट थिंक टैंक’ बनाया था-’जी फास्ट’ जिसमें 6000 वैज्ञानिकों में से सिर्फ 12 वैज्ञानिक इस थिंक टैंक को चलाने के लिए चुने गए थे, कुरूलकर इनमें से एक थे।
12 तुगलक लेन छोड़ना राहुल के लिए ‘लकी’ रहा
नियति के गर्भ में कई अन्चीहने फैसले कैद रहते हैं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी भाजपा के बुने जाल में फंस गए और अपने जिस सरकारी निवास 12 तुगलक लेन में वे पिछले 19 साल से रह रहे थे, सूरत कोर्ट के एक अनचाहे फैसले की वजह से उन्हें यह अपना घर छोड़ना पड़ा और वे अपनी मां के घर 10 जनपथ में शिफ्ट हो गए। मुंबई के एक नामचीन ज्योतिष पंडित राजकुमार शर्मा ने पिछले दिनों 12 तुगलक लेन की परिक्रमा लगाई और वहां के वास्तुदोष को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियां शेयर की हैं। पंडित शर्मा के मुताबिक 12 तुगलक लेन दक्षिणमुखी घर है, जो वास्तु के लिहाज से अच्छा नहीं है, इससे इस घर में ‘निगेटिव एनर्जी’ व्याप्त रहती है। यही वजह थी कि पिछले कई वर्षों से कांग्रेस को पराभव का मुंह देखना पड़ा। राहुल अमेठी हार गए। लोकसभा में कांग्रेस की सीटें लगातार कम हुई, पार्टी के कई कद्दावर नेता कांग्रेस छोड़ अन्यत्र चले गए। एक वक्त पार्टी में ही राहुल का इकबाल काफी कम हो गया। पंडित शर्मा कहते हैं कि ’जिस दिन से राहुल ने 12 तुगलक लेन छोड़ा है उनका उदय काल शुरू हो गया है।’ कांग्रेस ढोल-नगाड़े के गूंज के साथ कर्नाटक जीत गई, आने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी इसकी संभावनाएं बेहतर दिख रहीं है। पंडित जी कहते हैं कि ’राहुल गांधी की राशि वृश्चिक है और लग्न कर्क है। दिसंबर 2022 से राहुल की चंद्रमा की महादशा शुरू हुई है जो 2032 तक चलेगी। यह दशा एक सकारात्मक बदलाव की ओर इशारा कर रही है। आने वाले दिन राहुल के लिए चमकदार और आशा से भरे हो सकते हैं, इस अवधि में उनका 10 जनपथ शिफ्ट कर जाना भी एक शुभ बदलाव के लक्षण हैं, क्योंकि 10 जनपथ का वास्तु राहुल के लिए पॉजिटिव एनर्जी लेकर आएगा।’
सिद्दारमैया को कुर्सी मिलने में देर क्यों हुई?
यह तो कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने से पहले ही सबको पता था कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आई तो ताज सिद्दारमैया के सिर ही सजेगा। एक तो वे प्रदेश की 36 फीसदी ओबीसी जातियों के सबसे बड़े नेता हैं, वे जिस कुरूबा जाति से आते हैं राज्य में इस जाति का प्रतिशत भी 7 फीसदी से ज्यादा है। और सौ बात की एक बात कि वे मुख्यमंत्री के रूप में राहुल गांधी की पहली पसंद हैं। पर कांग्रेस का एक गुट ऐसा भी था जो लगातार डीके शिवकुमार की वकालत करता रहा। उसके पक्ष में लगातार कदमताल करता रहा। इस गुट की अगुवाई राहुल प्रिय के सी वेणुगोपाल और कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला कर रहे थे। यह देख कर्नाटक कांग्रेस के विधायक जी परमेश्वर अपने समर्थकों के साथ मैदान में उतर आए और डिप्टी सीएम पद की मांग करने लगे। कांग्रेस ने इन सारी परिस्थितियों को भांपते हुए अपने आब्जर्वर सुशील कुमार शिंदे को यह जिम्मेदारी सौंपी कि ’वे तत्काल इस मामले को निपटाएं।’ शिंदे ने आनन-फानन में अपनी रिपोर्ट हाईकमान को सौंप दी और कहा कि ’यदि जल्दी ही सिद्दारमैया का नाम सीएम के लिए घोषित नहीं किया गया तो वे बागी हो सकते हैं क्योंकि भाजपा व जेडीएस के कुछ नेता उनके निरंतर संपर्क में हैं, सो कांग्रेस के कुल 135 में से 96 विधायक लेकर वे अलग हो सकते हैं और भाजपा के समर्थन के साथ अपनी सरकार बना सकते हैं।’ ऐसे में डीके के साथ गिनती के 32 विधायक ही रह गए थे। इसके साथ ही राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अपने संन्यास की घोषणा करने वाले महाराष्ट्र के दलित नेता सुशील कुमार शिंदे की कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में वापसी भी हो गई है।
2000 के नोट बंद होने का समय यह क्यों?
कयास तो पहले से लगाए जा रहे थे कि दो हजार के नोट पर नोटबंदी की मार पड़ने वाली है, क्योंकि सरकार की प्रेस ने काफी समय पहले से ही ये नोट छापने बंद कर दिए थे, इसका प्रचलन भी बड़े लेन-देन तक सीमित हो गया था। पर जैसे ही कर्नाटक चुनाव के नतीजे आए और वहां भगवा किला धराशयी हो गया सरकार ने आनन-फानन में यह बड़ा फैसला ले लिया। ये नोट 30 सितंबर 2023 तक बैंकों में जमा कराने हैं और इसके ठीक दो महीने बाद पांच राज्यों यानी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलांगना व मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं। जरा गौर से देखिए एक मध्य प्रदेश छोड़ कर बाकी चारों राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं। सो, इतना तो तय है कि एक बार दो हजार के नोट बंद होने से विपक्षियों का फंड मैनेजमेंट चरमरा सकता है, भाजपा का क्या उसके पास तो सबसे बड़े ‘इलेक्ट्रॉल बांड’ का जखीरा है। जब पहली बार नवंबर 2016 में नोटबंदी का ऐलान हुआ था, उसके बाद भी अगले ही साल यानी 2017 में यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर इन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने थे। अभी तो एक साल बाद ही यानी 2024 में देश में आम चुनाव भी होने हैं।
मथुरा में कांग्रेस की एक गलती
उत्तर प्रदेश के हालिया निकाय चुनाव में कांग्रेस की एक गलती की वजह से मथुरा-वृंदावन में उसका मेयर बनते-बनते रह गया। दरअसल, 16 अप्रैल को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने श्याम सुंदर उपाध्याय बिट्टू को चुनाव के लिए पार्टी सिंबल देने के साथ फॉर्म 7ए भी दे दिया, बिट्टू चुनाव की तैयारियों में जुट गए, इसी बीच राजकुमार रावत बसपा छोड़ कांग्रेस में आ गए, खाबरी ने तब बिट्टू से चुनाव चिन्ह लौटाने को कहा चूंकि अब वे रावत को उम्मीदवार बनाना चाहते थे। पर बिट्टू कोर्ट चले गए, अदालत ने उनका चुनाव चिन्ह कायम रखा तो कांग्रेस को रावत को निर्दलीय मैदान में उतारना पड़ा। वहीं कांग्रेस ने सपा और रालोद से भी रावत का समर्थन करवा दिया। रावत का मुख्य मुकाबला सुनील बंसल के रिश्तेदार और भाजपा उम्मीदवार विनोद अग्रवाल से था। जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो भाजपा चुनाव जीत गई, बसपा 35,191 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रही, श्याम सुंदर निर्दलीय होकर भी 35,173 वोट ले आए, जबकि रावत 30,247 वोट के साथ चौथे नंबर पर रहे, भाजपा उम्मीदवार को रिकार्ड 1,45,720 वोट मिले यानी बाकियों की जमानत जब्त हो गई।
…और अंत में
दिल्ली के भाजपा महारथियों के लिए दिल्ली दूर होने वाली है। संघ से जुड़े महत्वपूर्ण सूत्र खुलासा करते हैं कि दिल्ली में भाजपा अपने सातों जीते हुए सांसदों को बदल देगी, नए चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा। सूत्रों की मानें तो पूर्वी दिल्ली से गौतम गंभीर और उत्तर पश्चिम दिल्ली से हंसराज हंस के टिकट कट जाएंगे। चांदनी चौक के सांसद हर्षवर्द्धन का मामला भी अधर में बताया जाता है। वहीं उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी को लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए बिहार भेजा जा सकता है। नई दिल्ली से मीनाक्षी लेखी की जगह भाजपा के दिल्ली प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा को मैदान में उतारा जा सकता है। पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा को हरियाणा या पश्चिमी यूपी के किसी जाट बहुल सीट से मैदान में उतारा जा सकता है। दक्षिण दिल्ली से रमेश विधूड़ी को भी बदला जा सकता है।
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