समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 29 जुलाई: लोकसभा के मॉनसून सत्र में पिछले दिनों कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और अन्य सदस्यों ने सरकार पर हमला बोला कि जब भारत की सेना मजबूत स्थिति में थी, तब युद्ध क्यों नहीं किया गया? उन्होंने सवाल उठाया कि क्या PoK पर कब्जा नहीं करना चाहिए था। अब जब उत्तर गृह मंत्री अमित शाह देने के लिए खड़े हुए, तो उन्होंने चुन-चुनकर विपक्षी सवालों का जवाब देते हुए इतिहास की कड़वी सच्चाई सामने रख दी।
‘इतिहास का विद्यार्थी’ अमित शाह का जवाब
अमित शाह ने सहज अंदाज में कहा कि युद्ध का निर्णय करना आसान नहीं होता, इसके भारी परिणाम होते हैं। उन्होंने 1948 की घटना का हवाला देते हुए बताया कि उस समय भारत की सेनाएँ रणनीतिक स्थिति में थीं, लेकिन विदेश मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एकतरफा युद्धविराम कर दिया था। शाह ने स्पष्ट किया कि PoK का आज का अस्तित्व इसी दरारभरी निर्णय की देन है, जिस समय सरदार पटेल जैसे नेता इसके खिलाफ थे, लेकिन फिर भी शांतिपूर्ण समझौता प्राथमिकता दी गई।
लोकसभा में सरकार पक्ष के सदस्यों ने ‘शेम-शेम’ के नारे लगाकर निष्कर्ष व्यक्त किया कि आखिर क्यों PoK को हासिल नहीं किया गया। शाह ने कहा, “अगर उस समय PoK लिया गया होता, तो आज हमें वहां शिविरों पर ऑपरेशन न करने पड़ते।”
कांग्रेस पर हमला: PoK और सिंधु समझौते
अमित शाह ने आगे बताया कि कांग्रेस की नीतियों ने कई अवसर गंवाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 1960 में सिंधु नदी का लगभग 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को लेकर दिया, और 1971 के शिमला समझौते में PoK से संबंधित मुद्दों को भूल कर आगे बढ़ गए। शाह ने सवाल किया कि क्या यह भूल सम्पूर्ण भारत के लाभ में थी?
उनका आरोप था कि कांग्रेस की अपनी प्राथमिकताएँ थीं—कहीं चीन से बेहतर रिश्ते, कहीं हिंदुस्तानी संसदीय राजनीति के लिए राजनीतिक स्वीकार्यता। उन्होंने बताया कि कांग्रेस ने आतंकवाद से निपटने के लिए भी कोई निर्णायक नीति नहीं अपनाई: “पोटा कानून को विरोध किया गया, बाटला हाउस ऑपरेशन पर कुछ विरोध किया गया, लेकिन परिणाम शून्य।”
ऑपरेशन सिंदूर: कांग्रेस की चुप्पी और शाह की तीखी प्रतिक्रिया
शाह ने कांग्रेस नेताओं की सेना और सुरक्षा एजेंसियों पर किए गए सवालों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि जब पराजित आतंकवादियों के पीछे की सूची पढ़ी गई — उनमें से 8 नाम “चिदंबरम और कंपनी” के समय की घटनाओं से जुड़े थे, जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरी ताकत से समाप्त किया। उन्होंने पूछा, “क्या यह गर्व का विषय नहीं है?”
दूसरी ओर चिदंबरम ने सवाल उठाया कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे, इसका क्या प्रमाण है? शाह ने पूछा, “अगर चिदंबरम जी जैसे नेता सवाल उठा सकते हैं, तो क्या वे पाकिस्तान को बचाना चाहते हैं?” इस बात की तीखी आलोचना की कि विपक्ष बार-बार सरकार की बयानबाजी पर शक करता है।
प्रधानमंत्री की जिम्मेदार भूमिका
शाह ने यह भी चर्चित मुद्दा उठाया कि विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री मोदी दुर्घटना के समय कहाँ थे—जब हमला हुआ था, क्या वे सार्वजनिक रैली कर रहे थे? शाह ने बताया कि उस समय मोदी जी विदेश में थे और राहुल गांधी मात्र एक ही थे जिन्होंने घटना के समय लोकसभा परिसर में मौजूद थे। इसके बाद उन्होंने पीएम का वही भाषण पढ़ा जिसमें कहा गया था कि “अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा”।
लोकसभा में अमित शाह का भाषण न केवल विपक्षी आरोपों का जवाब था, बल्कि राष्ट्रीय आत्मसम्मान की रक्षा का आग्रह भी था। विरोध करना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना सही नहीं। PoK से जुड़े सवाल अब केवल भू-राजनीति तक सीमित नहीं, यह भारत की सैन्य निर्णय क्षमता और राजनीतिक विजन पर सवाल खड़े करते हैं।
जब सरकार और सेना के माननीय सदस्य संविधान और जनता की उम्मीदों को लेकर एकजुट रूप से खड़े हैं, तो विपक्षी बयानदारी में राष्ट्रीय सुरक्षा को हथेली पर तौलना क्यों? अमित शाह ने उस तरफ़ इशारा किया कि केवल सवाल करना पर्याप्त नहीं, उत्तरदायित्व की लाइन को भी समर्थन करना जरूरी है।
लोकसभा की यह बहस केवल ऐतिहासिक गौरव या राजनीतिक आरोपों का टकराव नहीं था; यह भविष्य के लिए एक पाठ था—कि युद्ध, PoK, और सुरक्षा जैसे विषय सिर्फ राजनीतिक हथियार नहीं, मानवीय तथा राष्ट्रीय मूल्यों के संरक्षण के मुद्दे हैं। यदि इतिहास से सबक नहीं लिया गया, तो भारत को फिर से उन कहर को सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, जब सेना प्रश्न पूछे, उत्तर सुनना जरूरी है; और जब गृह मंत्री सच्चाई बताएँ, उसका सम्मान करना भी ज़रूरी है।
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