
“तेरी आंखों में ही हर शाम गुजारी है
पर, अपने हिस्से का उजाला मैं साथ लाया हूं”
देश के प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक एक गंभीर मामला है, पर आलोचना की जद में सिर्फ पंजाब सरकार या उनकी पुलिस ही क्यों? हमारी खुफिया एजेंसियां क्या कर रहीं थीं, जबकि पीएम के लिए आईबी का खास खुफिया नेटवर्क तैयार किया जाता है, आईबी का एक बड़ा अफसर पीएम के दौरों के लिए अधिकृत होता है, उनके कारवां में साथ चलता है। दूसरा, बड़ा सवाल एसपीजी क्या कर रही थी, जिस एजेंसी की एकमेव चिंता व दायित्व पीएम की सुरक्षा से जुड़ा है और देश अकेली इस एजेंसी पर सालाना 592.5 करोड़ रुपए खर्च करता है। एसपीजी का सारा फैसला उनकी ’ब्लू बुक’ के हिसाब से होता है, अगर पीएम सड़क मार्ग से यात्रा तय करते हैं तो यह सारा रूट एसपीजी के निर्देशन में तय होता है, यहां तक कि ’ब्लू बुक’ में यह भी लिखा जाता है कि पीएम के काफिले की गाड़ियां किस स्पीड से चलेंगी। अभी हाल में ही मोदी सरकार ने कानून में बदलाव कर बीएसएफ के 15 किलोमीटर के नियंत्रण के दायरे को बढ़ा कर 50 किलोमीटर कर दिया है। तो फिर सवाल उठता है कि फिर बीएसएफ क्या कर रही थी? पीएम ने 5 जनवरी को पीआईबी की एक प्रेस रिलीज को ट्वीट किया था जिसमें उनका हुसैनीवाला राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाने का कोई कार्यक्रम नहीं था। पाकिस्तान की सीमा से लगे हुसैनीवाला की भठिंडा एयरपोर्ट से सड़क मार्ग से दूरी लगभग 140 किलोमीटर है। हुसैनीवाला की रैली स्थल से दूरी मात्र 12 किलोमीटर है। सवाल सौ टके का है कि क्या वाकई बीएसएफ को पता था कि पीएम हुसैनीवाला आ सकते हैं? जहां अक्सर सीमा पार से ड्रोन हमले की खबरें आती रहती हैं। अगर खराब मौसम में सड़क मार्ग से जाने का फैसला आनन-फानन में लिया गया था तो क्या सुरक्षा एजेंसियों ने इसका पहले कोई ड्रिल किया था? पीएम का जहां भी कार्यक्रम लगा होता है सुरक्षा एजेंसियां कई दिन पहले से वहां की स्थानीय पुलिस को भी अपने कंट्रोल में ले लेती हैं। और जब पीएम सड़क मार्ग से सफर कर रहे होते हैं तो एसपीजी इस बात को सुनिश्चित करती है कि उनके काफिले में राज्य के प्रमुख सचिव, डीजीपी, जिले के कलेक्टर और एसपी साथ चलें। जहां तक सवाल किसानों के प्रदर्शन का है तो यह प्रदर्शन पहले से जगह-जगह पंजाब में चल रहे थे और 2 जनवरी को ही किसानों ने ऐलान कर दिया था कि उनका प्रदर्शन आगे भी यूं बदस्तूर जारी रहेगा। पूर्व में भी कोई मौकों पर (एक बार नोएडा में जब पीएम का कारवां रास्ता भटक गया था, पश्चिम बंगाल में 2 बार, एक बार महाराष्ट्र में) पीएम की सुरक्षा में चूक हो चुकी है, देश अगर अपनी गाढ़ी कमाई का 592.5 करोड़ रुपए अपने पीएम की सुरक्षा पर खर्च कर रहा है तो ऐसी बार-बार की चूक बर्दाश्त के काबिल नहीं।
क्या नकवी को बिहार से मिलेगी राज्यसभा?
भाजपा के तीन बड़े मुस्लिम चेहरों यानी केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, पत्रकार टर्न राजनेता व पूर्व मंत्री एम जे अकबर और सैय्यद जफर इस्लाम की राज्यसभा की मियाद इस वर्ष पूरी होने वाली है। नकवी इन दिनों अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के चहेते बने हुए हैं, उनके द्वारा संकल्पित ’हुनर हाट’ की स्वयं पीएम कई मौकों पर तारीफ कर चुके हैं और वे मोदी मंत्रिमंडल के एकमात्र मुस्लिम चेहरे में शुमार होते हैं सो उन्हें फिर से राज्यसभा मिलना तय माना जा रहा है। फिलवक्त वे झारखंड से राज्यसभा में हैं। फिर सूत्र बताते हैं कि उन्हें अगली बार बिहार से राज्यसभा में भेजा जा सकता है, बिहार से राज्यसभा की दो सीट भाजपा के हिस्से आने वाली है। वैसे भी नकवी पार्टी के पॉपुलर प्रोग्रेसिव चेहरा हैं, सो भाजपा को लगता है कि उन्हें बिहार में लालू के मुस्लिम-यादव समीकरण की काट के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। जफर इस्लाम यूपी से राज्यसभा में आते हैं, खाड़ी देशों से उनकी मित्रता को भुनाने के लिए मोदी सरकार उन्हें फिर से यूपी से ही राज्यसभा में ला सकती है। वैसे भी उन्हें पहली बार में राज्यसभा का ‘मिड टर्म’ मिला था सो अगली दफा उन्हें पूरे छह वर्षों के लिए राज्यसभा मिल सकती है। रही बात एमजे अकबर की तो वे कालांतर में पीएम मोदी के खासे दुलारे रह चुके हैं, इस नाते उन्हें मोदी सरकार के पहले टर्म में विदेश राज्य मंत्री की अहम जिम्मेदारी मिली थी, पर महिला पत्रकारों द्वारा उन पर लगाए गए ’मी टू’ के गंभीर आरोपों की वजह से न केवल उन्हें अपना मंत्रिपद छोड़ना पड़ा, बल्कि मोदी दरबार में भी उनकी पूछ बेहद कम हो गई। बीच में यह चर्चा चली थी कि खाड़ी देशों से उनके गहरे ताल्लुकात को देखते हुए उन्हें किसी ऐसे ही देश का राजदूत नियुक्त किया जा सकता है, पर ’मी टू’ के आरोपों की आंच जब ठंडी नहीं पड़ी तो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें ठंडे बस्ते में डालने का फैसला कर लिया। ऐसे में इस बात की उम्मीद बेहद कम है कि इन्हें फिर से राज्यसभा में भेजा जा सकता है।
क्या केसी त्यागी का वनवास खत्म होगा?
बिहार से राज्यसभा की छह सीटें खाली होने वाली है। 7 जुलाई को केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह और राजद की मीसा भारती का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। भाजपा के दो अन्य नेता यानी सतीश चंद्र दुबे और गोपाल नारायण सिंह के कार्यकाल भी तब ही खत्म होने वाले हैं, पर पार्टी इन दोनों को फिर से राज्यसभा में भेजने को तैयार नहीं बताई जाती है। मीसा भारती को फिर से राज्यसभा में भेजना तेजस्वी के लिए मजबूरी होगी क्योंकि वे और पारिवारिक कलह को बढ़ाना नहीं चाहते। नीतीश कुमार के सजातीय आरसीपी सिंह फिलहाल मोदी मंत्रिमंडल में केंद्रीय इस्पात मंत्री हैं, सो उन्हें दुबारा राज्यसभा देना नीतीश की मजबूरी हो सकती है। किंग महेंद्र के निधन से खाली हुई सीट से केसी त्यागी को ऊपरी सदन में भेजने की तैयारी है, 2018 से 2022 तक के लंबे इंतजार का फल अब जदयू के मुखर वक्ता केसी त्यागी को मिलने जा रहा है। राजद और कांग्रेस के संयुक्त हिस्से में दो सीटें आने वाली हैं, एक सीट अगर मीसा भारती को चली गई तो दूसरी सीट से तेजस्वी किसी मालदार आसामी को ऊपरी सदन में भेजना चाहते हैं। वे राहुल गांधी पर इस सीट को छोड़ने का लगातार दबाव बना रहे हैं, पर राहुल अभी इसके लिए तैयार नहीं बताए जा रहे। वहीं झारखंड में भी झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के हिस्से एक सीट आने वाली है, जिस पर कांग्रेस अभी से अपना दावा ठोक रही है। क्योंकि पिछली बार कांग्रेस ने यह सीट झामुमो नेता गुरुजी यानी शिबू सोरेन के लिए छोड़ दी थी। वैसे भी इस दफे हेमंत सोरेन सरकार कांग्रेस के 18 विधायकों के समर्थन के दम पर टिकी हुई है। सो माना जा रहा है कि हेमंत इस दफे यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ देंगे। इस सीट पर अभी से कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और पार्टी के बड़े नेता तारिक अनवर अपना दावा ठोक रहे हैं। राजेश ठाकुर आरपीएन और तारिक दोनों के ही गुड बुक में हैं। ठाकुर झारखंड के पूर्व गवर्नर सैय्यद सिब्ते रजी के वे पर्सनल स्टॉफ में रह चुके हैं। पर झारखंड में तो फिलहाल कांग्रेस के लिए एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है।
भगवा हुए दीक्षित
पिछले दिनों सपा के राष्ट्रीय सचिव रहे राजेश दीक्षित ने भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा और धर्मेंद्र प्रधान की उपस्थिति में साइकिल से उतर कर अपने हाथों में कमल थाम लिया, एक नए भगवा उद्घोष के साथ। राजेश दीक्षित सत्ता के गलियारों में एक जाना-पहचाना चेहरा हैं, कभी वे मुकेश अंबानी के कॉरपोरेट मीडिया को संचालित करते थे, चूंकि उनके मुलायम सिंह यादव से भी बेहद करीबी रिश्ते थे, सो वे बाद में अंबानी की नौकरी छोड़ फुल टाइम सपाई हो गए। वे प्रोफेसर राम गोपाल यादव के बेहद भरोसेमंदों में शुमार होते थे, 2017 की अखिलेश सरकार के दौरान दिल्ली में उनकी तूती बोलती थी। वक्त बदला तो वे अमर सिंह के भी करीबी हो गए, पर वह रिश्ता ज्यादा दिनों तक चला नहीं। जैसे ही इन्होंने भाजपा का दामन थामा प्रोफेसर साहब ने इन्हें अपनी कांटेक्ट लिस्ट से डिलीट कर दिया। हां, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने जरूर दीक्षित से फोन करके कहा-’आपने निर्णय लेने में जल्दी कर दी।’
रामलला के बाद अब श्यामलला
पश्चिमी यूपी में पार्टी को संबल देने और वहां के 40 फीसदी मुसलमानों के खिलाफ हिंदू वोटरों को एकजुट करने के लिए भाजपा अपने हिंदुत्व के नए पुरोधा योगी आदित्यनाथ को मथुरा से चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है। किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी यूपी में भाजपा की दरक चुकी जमीन को मरम्मत करने के ख्याल से ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन’ को धार दिया जा रहा है। वैसे भी अयोध्या का सुप्रीम कोर्ट के जरिए और काशी का राजनैतिक इच्छा शक्ति के जरिए उद्धार हो चुका है, अब बारी मथुरा की है। मथुरा-वृंदावन में चाहे कोई भी बड़ा धार्मिक आयोजन क्यों न हो योगी की उपस्थिति उसमें देखी जा सकती है। अब तक सीएम रहते योगी कोई 19 बार मथुरा का दौरा कर चुके हैं। ’जन विश्वास यात्रा’ को ब्रज क्षेत्र में योगी ने ही हरी झंडी दिखाई थी, वैसे भी यह पहला मौका होगा जब योगी कोई विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे, यही वजह है कि भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव और मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने भाजपा नेतृत्व से योगी को मथुरा से चुनाव लड़ाने का आह्वान किया है। इतना ही नहीं कांग्रेस के मथुरा से चार बार के विधायक रहे, पूर्व सीएलपी लीडर प्रदीप माथुर भी योगी के लिए अंदरखाने से मथुरा में जमीन तैयार करने में जुटे हैं। वैसे भी रामलला के बाद अब श्यामलला के नाम पर वोट मांगने की पूरी भगवा तैयारी है।
क्या मान पर मान जाएंगे केजरीवाल?
पंजाब के आम आदमी पार्टी का सीएम फेस कौन होगा इसको लेकर वहां पेंच फंसा हुआ है। भगवंत मान काफी पहले से इसके लिए अपना दावा ठोक रहे थे, पर मान की छवि को देखते हुए आप सुप्रीमो केजरीवाल को यह कतई मंजूर न था, क्योंकि उनकी पसंद विधायक दल के नेता हरपाल सिंह चीमा हैं, जो पार्टी के एक प्रमुख दलित चेहरा हैं। पर केजरीवाल को यह डर भी सता रहा है कि चीमा का नाम घोषित करने से मान कोई पंगा न खड़ा कर दें। पर अगर सीएम का चेहरा पार्टी घोषित नहीं करती है तो जनता में यह मैसेज जा सकता है कि केजरीवाल की नज़र स्वयं पंजाब के सीएम पद पर है। सो मजबूरी में ही सही, केजरीवाल पंजाब में अपनी पार्टी के सीएम फेस का ऐलान कर सकते हैं, हरपाल सिंह चीमा इसीलिए भी उनके लिए मुफीद चेहरा हैं कि पंजाब में दलितों की आबादी कोई 34 फीसदी के आसपास है और वहां कांग्रेस के मौजूदा सीएम चरणजीत सिंह चन्नी भी दलित हैं जो रामदासी संप्रदाय से आते हैं।
…और अंत में
सियासी स्वांग भरने में सिद्दहस्त बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 22 दिसंबर से ही अपने ’समाज सुधार अभियान’ यात्रा का आगाज़ कर चुके हैं, घोषित तौर पर इस यात्रा का उद्देश्य शराब के खिलाफ एक माहौल बनाना है, और दहेज एवं बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ अपनी जनता को जागरूक करना है। पर राज्य सरकार में नीतीश के गठबंधन साथी भाजपा ने मुख्यमंत्री की इस यात्रा से एक दूरी बना रखी है, भाजपा का कहना है कि यह जदयू का कार्यक्रम है, इसे एनडीए की सहमति हासिल नहीं है? भाजपा ने बस इस बात पर हामी भर दी है कि जहां से सीएम की यात्रा गुजरेगी अगर वहां से भाजपा का कोई मंत्री सरकार में हैं तो वह उसमें उपस्थित रहेगा, पर वह मंत्री अपनी ओर से सीएम के समर्थन में कोई बयान जारी नहीं कर सकता, क्योंकि भाजपा की सोच है कि सीएम की यह यात्रा एक ढकोसला है, जिसका एकमात्र ध्येय जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाना है।
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