जहां हिंदू विवाह पद्धति जीवन का पूर्ण संस्कार है, वही हिंदू विवाह क़ानून में संशोधन जरुरी!

जिया मंजरी
जिया मंजरी

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सनातन धर्म शास्त्रों में संपूर्ण हिंदू जीवन पद्धति के उदात्त और श्रेष्ठ आधार एवं आदर्श दिये गए हैं। विवाह के विषय में भी शास्त्रों में स्पष्ट निर्देश है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार किसी भी प्रकार का विवाह या किसी भी प्रकार का नर नारी संबंध अवैध नहीं होता और किसी भी प्रकार का शिशु अवैध नहीं होता। सिर्फ उसके स्वरूप के आधार पर उसका स्तर यानी उसकी कैटेगरी का निर्धारण अवश्य होता है।

अभी ईसाइयों की नकल में जो हिंदू मैरिज एक्ट बना है वह तत्काल रद्द होना चाहिए और हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार हिंदू विवाह कानून बनने चाहिए। हिंदू स्त्रियों के लिए ही हिंदू विवाह विधियां निर्धारित होनी चाहिए जो हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुरूप ही होंगी।

हिंदू धर्म शास्त्रों में और संपूर्ण हिंदू जीवन दर्शन में सेक्स नाम की अलग से कोई चीज नहीं कही गई है। क्योंकि स्त्री इन्द्रिय और पुरुष इन्द्रिय के बीच के संबंध को अलग से परिभाषित करना मनुष्य को पशु योनि के समान मानना है ।

इसीलिए हिंदू शास्त्र में ऐसा कोई शब्द या कॉन्सेप्ट ही नहीं है।।
नर नारी के बीच जो भी काम संबंध है, वह मूल में प्रेम संबंध है और प्रेम संपूर्ण व्यक्तित्व के साथ ही संभव है।
यही धर्म शास्त्रों का प्रतिपादन है।

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इसीलिए कोई भी पुरुष जब जिस क्षण मिलने की कामना से भर कर किसी अविवाहित कन्या, युवती या स्त्री का हाथ पकड़ता है, उस क्षण ही आधार रूप में वह विवाह संपन्न हो जाता है। गंधर्व विवाह तो तत्काल ही संपन्न हो जाता है। क्योंकि दोनों का परस्पर प्रीति पूर्वक मिलन की कामना से एक दूसरे के निकट होना और पुरुष का स्त्री का हाथ पकड़ना तथा स्त्री का उससे प्रीति भाव से उत्तर देना- यही गंधर्व विवाह के आधारभूत तत्व को पूरा कर देता है।

इस प्रकार नर नारी का काम भाव अर्थात रति भाव अर्थात प्रेम पूर्ण मिलन की भावना से किया गया प्रत्येक संबंध हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार विवाह संबंध है। इसीलिए जहां जो पुरुष केवल एक ही पत्नी से विवाह करें अर्थात जीवन में एक ही पत्नी की ओर रति भाव से देखें ,उसकी बहुत महिमा है,उसे ब्रह्मचारी के समान सम्मान मिलता है, वह अत्यंत आदरणीय माना जाता है।परंतु मानव स्वभाव को जानते हुए और मानव जीवन के अब तक के इतिहास और व्यवहार को देखते हुए अन्य संबंधों कोछिपा कर रखने की ,दबाकर रखने की कोई भी प्रवृत्ति हिंदू धर्म शास्त्रों में नहीं है।

इसीलिए विधान किया गया है कि जब भी इस तरह के संबंध बनते हैं तो वह प्रत्येक संबंध वैवाहिक है और उस स्थिति में किसी स्त्री से पुरुष ने यह संबंध बनाया हैतो वह उसकी पत्नी ही हो गई और पुरुष की संपत्ति में उस पत्नी का पूरा अधिकार होगा ,उचित अधिकार होगा, जैसा कि धर्म शास्त्रों में निर्धारण है ।

इस प्रकार संबंधों को होने देना और फिर उनका निषेध करना और इस प्रकार एक अच्छे स्वस्थ सहज मानवीय संबंध को पाप कहकर ,चोरी का दर्जा दे देना, उसको दबाना और फिर दोनों लोग उसे पाप या क्राइम मानकर ,अपराध मान कर, चोरी का काम मान कर उसे दबाने के लिए ,छिपाने के लिए तरह-तरह की उल जलूल हरकतें करें ,झूठ बोले, झूठे बयान दें या कोई अन्य मजहब आदि अपनाएं जिसमें कि पुरुषों को अनेक विवाह की छूट हो और इस प्रकार हिंदू पुरुषों को और स्त्रियों को झूठ बोलने के लिए विवश करना तथा शास्त्र प्रतिपादित, शास्त्र सम्मत सब प्रकार से उचित संबंधों को भी छुपाने को मजबूर करना और उन्हें उस संबंध के निर्वाह के लिए हिंदू धर्म त्याग कर मुस्लिम मजहब आदि अपना कर उसे कानूनी रूप देने की गंदी स्थिति में पुरुषों को और स्त्रियों को ले जाने को विवश करना ,यह महापाप है और हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए यह महापाप किया गया है। यह तत्काल बंद होना चाहिए।

निश्चय ही वपुरुष जीवन में एक ही स्त्री से रति भाव और संबंध रखें, यह हर प्रकार से सम्मान के योग्य स्थिति है परंतु अगर मानवीय इतिहास और मानवीय जीवन को देखते हुए एक पुरुष अन्य स्त्रियों से संबंध बनाता है तो इसे चोरों की तरह छिपाना अथवा संबंध बनाकर उसका बार-बार नकार करना,ना ना करना, उसे दबाना और इस प्रकार स्त्री को उसके उचित अधिकार से वंचित करना या फिरस्त्री को विवश करना कि वह कानून की शरण में जाकर उसी पुरुष को दंडित करें जिससे कि उसे सचमुच प्रेम हो गया है ,,यह सब महापाप की स्थिति है और इसमें विशेषकर भारत में हिंदुओं को डाल दिया गया है ,जबकि मुसलमानों को इससे मुक्त रखा गया है ।

किसी भी सच्चे निष्पक्ष शासन को ऐसा कोई भी भेदभाव पूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए कि जो संबंध एक मुस्लिम पुरुष के लिए उचित माने जाएं ,वह उचित संबंध होने पर भी हिंदू पुरुष और हिंदू स्त्रियों के लिए छिपाने योग्य यानी चोरी जैसे माने जाएं ।
ऐसा कानून बनाना हिंदुओं को जबरन इस्लाम कबूलने या मुसलमान बनने को विवश करने का काम है जो मध्ययुगीन बर्बरता की ही पुनरावृत्ति है ।

हिंदू पुरुषों को इस बर्बरता से मुक्त किया जाना चाहिए और उन्हें अपने धर्म शास्त्र के पालन की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।जो व्यक्ति एक ही संबंध बनाएं, उनका सब प्रकार से सम्मान हो परंतु यदि अन्य संबंध बने तो उन संबंधों को पाप या गलत काम या अवैध काम कहकर छुपाया नहीं जाए अपितु उसको सम्मान पूर्वक स्थान मिले पुरुष की संपत्ति में स्त्री को उचित अधिकार मिले, हक मिले जैसा कि धर्म शास्त्रों में प्रतिपादित है ।

इस प्रकार प्रत्येक हिंदू पुरुष को कितने भी विवाह करने का अधिकार है परंतु उन सभी विवाहों में सभी स्त्रियों का भरण पोषण करना और उनको संपत्ति मेंअधिकार अवश्य देना यह पुरुष का वैधानिक ,नैतिक ,सामाजिक और धार्मिक कर्तव्य है l

यही हिंदू धर्म शास्त्र है और इसलिए हम हिंदू स्त्रियों हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार विवाह कानून बनाए जाने की मांग करती हैं ताकि मानवीय स्वभाव ,मानवीय जीवन और मानव इतिहास को देखते हुए जो 1 से अधिक संबंध बन जाते हैं उनको छुपाया न जाए ,उन्हें चोरी न माना जाए ,उन्हें अवैध न माना जाए और इससे स्त्री और पुरुष को छिपकर अथवा झूठ बोलकर अथवा किसी अन्य मजहब की शरण में जाकर अपने सहज स्वाभाविक प्रेम को छिपाना नहीं पड़े l

जब हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसे विवाहों की स्पष्ट धार्मिक व्यवस्था है, और विधान है तो हिंदू विवाह कानून उसके अनुसार ही होना चाहिए।
*जिया मंजरी
स्वतंत्र स्तंभकार

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