भारत पर आलोचना क्यों? अमेरिकी यहूदी समूह ने रूस-यूक्रेन संकट पर उठाई आवाज़

समग्र समाचार सेवा
वॉशिंगटन/नई दिल्ली, 30 अगस्त: अमेरिका में यहूदी समुदाय के एक प्रभावशाली समर्थक समूह ने भारत पर लगाए जा रहे आरोपों को अनुचित बताते हुए अमेरिकी अधिकारियों की आलोचना की है। यह समूह उन अमेरिकी अधिकारियों के खिलाफ मुखर हुआ जिन्होंने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर सवाल उठाए थे। समूह ने कहा कि रूस-यूक्रेन संकट के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराना गलत है और इस जटिल भू-राजनीतिक स्थिति की वास्तविकता को समझना ज़रूरी है।

भारत को बलि का बकरा बनाने की कोशिश?

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा की रणनीति पर चल रहा है। भारत ने कई मौकों पर स्पष्ट किया है कि उसका उद्देश्य अपनी जनता और अर्थव्यवस्था के हितों की रक्षा करना है। इसके बावजूद, अमेरिका और पश्चिमी देशों के कुछ अधिकारी भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर सवाल उठाते रहे हैं।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए यहूदी समर्थक समूह ने कहा कि भारत को “बलि का बकरा” बनाना गलत है। उन्होंने तर्क दिया कि रूस-यूक्रेन संकट की जड़ें यूरोपीय राजनीति और नाटो के विस्तार से जुड़ी हैं, न कि भारत की ऊर्जा नीतियों से।

भारत की ऊर्जा जरूरतें और वैश्विक परिदृश्य

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है। ऊर्जा की बढ़ती मांग और कीमतों के उतार-चढ़ाव को देखते हुए भारत ने रूस से किफायती दरों पर तेल खरीदने का निर्णय लिया। यह फैसला न केवल आर्थिक रूप से व्यावहारिक था बल्कि करोड़ों भारतीय उपभोक्ताओं को राहत देने वाला भी था।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह कदम किसी भी तरह से रूस-यूक्रेन संघर्ष को बढ़ावा देने वाला नहीं है, बल्कि यह उसकी ऊर्जा सुरक्षा का हिस्सा है।

अमेरिकी यहूदी समूह का रुख

समूह ने कहा कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और उसे अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने का अधिकार है। उन्होंने अमेरिकी प्रशासन से अपील की कि भारत को दोष देने के बजाय वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाए और रूस-यूक्रेन संकट का शांतिपूर्ण समाधान तलाशा जाए।

यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका की राजनीति में रूस-यूक्रेन मुद्दा लगातार चर्चा में है और राष्ट्रपति प्रशासन पर दबाव बढ़ रहा है कि वह अपने सहयोगियों और साझेदार देशों पर और सख्त रुख अपनाए।

भारत-अमेरिका संबंधों पर असर?

भारत और अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को लगातार मज़बूत कर रहे हैं। रक्षा, तकनीक, व्यापार और भू-राजनीति के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ा है। ऐसे में रूस-यूक्रेन संकट के संदर्भ में भारत पर लगातार सवाल उठाना संबंधों में अनावश्यक तनाव पैदा कर सकता है।

कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह के बयानों से दोनों देशों के रिश्तों पर सीधा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन यह ज़रूरी है कि भारत की ऊर्जा नीतियों को उसकी परिस्थितियों के हिसाब से समझा जाए।

अमेरिकी यहूदी समूह की यह प्रतिक्रिया बताती है कि भारत को दोष देने की बजाय दुनिया को व्यापक संदर्भ में स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए। भारत न तो रूस-यूक्रेन युद्ध का कारण है और न ही उसका सहयोगी; बल्कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा कर रहा है।

 

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