तेजप्रताप की जगह डिंपल क्यों उतरीं मैदान में?

त्रिदीब रमण।
’घर-घर में आज भी चल रही राम कथा है
विभीषण जिंदा है, सीता की वही पुरानी व्यथा है’
यादव परिवार की इस चिंता ने कि ‘घर का भेदी अगर लंका ढाह सकता है’ तो फिर मैनपुरी का उप चुनाव किस खेत की मूली है, इस ख्याल ने अखिलेश को सपा प्रत्याशी बदलने पर मजबूर कर दिया। मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी संसदीय सीट पर 5 दिसंबर को उप चुनाव होने हैं। भाजपा को जैसे ही पता चला कि अखिलेश यहां से तेजप्रताप यादव को मैदान में उतारना चाहते हैं, भगवा पार्टी ने अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव पर दांव लगाने का मन बना लिया, स्वयं योगी ने शिवपाल को फोन कर दिया, शिवपाल उस वक्त दिल्ली में थे, वे भागे-भागे लखनऊ पहुंचे, मुख्यमंत्री के संग उनकी मुलाकात में फिर यह तय हो गया कि वे मैनपुरी से भाजपा के उम्मीदवार होंगे। जब यह बात अखिलेश को पता चली तो उन्होंने आनन-फानन में तेजप्रताप की जगह मैनपुरी के मैदान में डिंपल को उतारने का फैसला कर लिया। पर सूत्रों की मानें तो डिंपल चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं थी, उन्हें कन्नौज और फिरोजाबाद में मिली हार का दंश अभी भी परेशान कर रहा था। अखिलेश ने बमुश्किल उन्हें चुनाव लड़ने को मनाया, यह कहते हुए कि यह परिवार की इज्जत का सवाल है। डिंपल मान गईं तो चाचा शिवपाल के समक्ष धर्मसंकट पैदा हो गया, उन्होंने योगी को फोन कर के कहा कि ’माफ कीजिएगा मैं बहू के सामने चुनाव नहीं लड़ सकता।’ योगी ने समझाना चाहा, पर शिवपाल नहीं माने, यानी अखिलेश का ‘मास्टर स्ट्रोक’ चल निकाला।
प्रियंका की सभाएं कम क्यों हो गईं?
कहां तो तय था कि ‘चिरागा हर एक घर के लिए और अब मुयस्सर नहीं शहर के लिए।’ प्रियंका गांधी के हाथों जब हिमाचल की बागडोर आई थी तो उन्होंने कैडर से जोश ही जोश में कह दिया था कि ’वह घूम-घूम कर पूरे हिमाचल में कांग्रेस का प्रचार करेंगी और यहां की हर विधानसभा सीट को टच करेंगी।’ कांग्रेस संगठन ने भी उनके लिए हिमाचल चुनाव में कोई 68 जनसभाओं का खाका तैयार कर लिया। पर इसके बाद प्रियंका हिमाचल के मशोबरा स्थित अपने घर चली गईं, दो दिनों तक उनका मोबाइल फोन भी बंद आ रहा था। प्रदेश कांग्रेस में हलचल मच गई, तब वीरभद्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह प्रियंका से मिलने उनके घर मशोबरा जा पहुंचे। इस मीटिंग में तय हुआ कि 68 नहीं बल्कि प्रियंका सिर्फ 15 जनसभाएं करेंगी, पर हिमाचल चुनाव में प्रियंका की सिर्फ आठ जनसभाएं ही हो पाईं। इस पर नाराज़ रानी साहिब यानी सांसद प्रतिभा सिंह का कहना था-’भाजपा में नेता पार्टी को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं, पर कांग्रेस में नेता को कंधों पर ढोना पड़ता है।’

धामनगर की डगर पर भाजपा
ओडिशा के धामनगर उप चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद पूरी भाजपा बम-बम हो गई, यहां भाजपा के एक बड़े नेता रहे बिष्णु चरण सेठी के निधन से यह सीट खाली हुई थी, इस सीट पर भाजपा ने सेठी के पुत्र सूर्यबंशी सुराज को मैदान में उतारा था जिन्होंने अपने निकटतम बीजद प्रत्याशी को 9,881 वोटों से शिकस्त दे दी, सूर्यबंशी को यहां 80,351 वोट हासिल हुए। इसके बाद भाजपा में इस बात को लेकर मंथन तेज हो गया कि आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने सीएम फेस के तौर पर किस चेहरे के साथ मैदान में उतरे। फिर पार्टी की ओर से संभावित सीएम चेहरों की एक लिस्ट तैयार की गई, इस लिस्ट में धर्मेंद्र प्रधान, जुआल ओरांव, अपराजिता सारंगी, जय पांडा जैसे नेताओं के नाम शामिल थे। फिर पार्टी के लिए काम करने वाली एक पसंदीदा एजेंसी की ओर से एक जनमत सर्वेक्षण करवाया गया, पर ये तमाम चेहरे लोकप्रियता के पैमाने पर अपनी उपयोगिता सिद्ध नहीं कर पाए। फिर पार्टी के संगठन महासचिव बीएल संतोष ने दिल्ली में ओडिशा के भाजपा नेताओं के साथ एक मंथन बैठक कर उसमें यह जानना चाहा कि आखिर ओडिशा में इन नेताओं की सक्रियता इतनी कम क्यों हैं कि आम जनता इन्हें ठीक से जानती पहचानती नहीं।

दिल्ली के भाजपा सांसदों से संतोष का असंतोष
दिल्ली के भाजपा सांसदों से पार्टी के शक्तिशाली संगठन महासचिव बीएल संतोष नाराज़ बताए जाते हैं। दरअसल पार्टी के कई स्थानीय सांसदों ने, जिसमें मनोज तिवारी, प्रवेश वर्मा और हंसराज हंस के नाम भी शामिल बताए जाते हैं, कहा जाता है कि दिल्ली के निकाय चुनावों को लेकर इन सांसदों ने अपनी ओर से दावेदारों की जो लिस्ट पार्टी हाईकमान को सौंपी थी इनमें से ज्यादातर की फील्ड रिपोर्ट निगेटिव आई, पार्टी के जनमत सर्वेक्षणों में इनकी जीत की संभावनाएं भी धूमिल बताई गईं। संतोष के पास शिकायतों के अंबार जमा होने लगे, जिसमें ज्यादातर शिकायतें पैसे लेकर टिकट दिलाने के थे। नाराज़ संतोष ने दिल्ली भाजपा के तमाम जिलाध्यक्षों से आनन-फानन में इस्तीफा मांग लिया और दिल्ली के सांसदों को भी सुधरने की चेतावनी जारी करते हुए कहा कि ’आप सुधर जाओ वरना दिल्ली में भी 24 में छत्तीसगढ़ मॉडल लागू करना पड़ जाएगा।’

माकन को क्यों देना पड़ा इस्तीफा?
मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का नया अध्यक्ष बनने पर उन्हें बधाई देने के लिए राहुल कोटरी के एक अहम सदस्य भंवर जितेंद्र सिंह पहुंचे। बातों ही बातों में भंवर जितेंद्र ने खड़गे को बताया कि आपके तमाम समझाने के बावजूद अजय माकन फिर से जयपुर पहुंच गए हैं। भंवर का इशारा था कि इस पर गहलोत की प्रतिक्रिया फिर से सामने आ सकती है। खड़गे ने फौरन माकन को संदेशा भिजवाया कि वे जयपुर छोड़ कर दिल्ली आ जाएं। पर माकन नहीं माने, उल्टे उन्होंने पार्टी की अनुशासन समिति को पत्र लिख कर गहलोत समर्थक तीन विधायकों पर कड़ी कार्यवाई की मांग कर दी। पर यह चिट्ठी लीक हो गई और माकन जिन तीन विधायकों पर कार्यवाई चाहते थे उनमें से एक विधायक राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का इंचार्ज बन गया। माकन ने दीवार पर लिखी इबारत पढ़ ली और उन्होंने कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया।

राहुल की यात्रा क्यों बिहार ले जाना चाहते हैं दिग्विजय
दिग्विजय सिंह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को बिहार ले जाने का सारथी बनना चाहते हैं। दिग्विजय की दिली इच्छा है कि राहुल की यात्रा बिहार में दिग्विजय के ननिहाल गिठौर (बांका) से शुरू होकर 1023 किलोमीटर का सफर तय कर बोधगया में समाप्त हो। बिहार में इस यात्रा की जिम्मेदारी दिग्विजय और जयराम रमेश ने वहां के पूर्व मंत्री अवधेश सिंह को सौंपी है। पर बिहार कांग्रेस के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि राहुल की बिहार यात्रा का खर्चा कौन उठाएगा, क्योंकि बिहार में कांग्रेस वर्षों से सत्ता से बाहर रही है और थैलीशाहों ने भी पार्टी से एक दूरी बना रखी है। वैसे भी राहुल की यात्रा का एक अहम नियम है कि उनकी यात्रा जिस राज्य में पहुंचती है, उस राज्य के पार्टी नेता ही इस यात्रा का पूरा खर्च उठाते हैं, कहते हैं यात्रा के एक दिन का खर्च भी करोड़ों में होता है। सो कुछ पार्टी नेताओं के सुझाव आए कि यात्रा पटना तक ही सीमित रखी जाए, पर अवधेश सिंह इसे गया लेकर जाना चाहते हैं, क्योंकि 2024 का चुनाव वह गया से लड़ने के इच्छुक हैं।

मीडिया मंडी में खोते कत्ल के अहम सुराग
दिल्ली के छत्तरपुर में जिस बर्बर तरीके से मुंबई की श्रद्धा वाल्कर की हत्या हुई उसे लेकर दिल्ली का मीडिया बाजार में कूद गया है। खबर ब्रेक करने की ऐसी होड़ मची है कि चैनल वाले आरोपी आफताब पूनावाला के घर के बाथरूम, किचन और कमरे से चिपक कर ‘पीस टू कैमरा’ कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस अब तक हत्या के सारे सबूत नहीं जुटा पाई है, ऐसे में इस बात को लेकर चर्चा गर्म है कि क्या मीडिया, उसके कैमरे और पत्रकार अनजाने में कत्ल के अहम सुराग से छेड़छाड़ कर रहे हैं? कुछ उत्साही मीडिया मंडली तो महरौली के जंगलों में श्रद्धा के शरीर के टुकड़े ढूंढने में जुटी है। इन बातों से दिल्ली के पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा काफी परेशान हैं, अरोड़ा तमिलनाडु कैडर के आईपीएस अफसर हैं, जो वीरप्पन को पकड़ने के लिए गठित टास्क फोर्स के एक अहम सदस्य थे। वे आईटीबीपी के डीजी भी रह चुके हैं। अरोड़ा के कैडर की वजह से कहते हैं दिल्ली पुलिस के बड़े अफसर उन्हें पूरा सहयोग भी नहीं कर रहे हैं।
…और अंत में
क्या संघ का चेहरा-मोहरा बदल रहा है? सूत्रों की मानें तो अक्टूबर के अंत में संघ के कोई प्रमुख 35 नेतागण अपनी मंडली के साथ एक विशेष विमान से मालदीव पहुंचे, कहते हैं वहां इनके लिए ताज एक्जोटिका के ऑलीशान होटल में 35 कमरे बुक थे। यह भी मालूम चला कि वे 5 दिन मालदीव में जहां उन्होंने 2024 के बाद की रणनीति बुनने के लिए मंथन बैठक की। फिर वे एक चार्टर्ड विमान से वापिस दिल्ली लौट आए। सूत्रों से यह भी पता चला कि इस पूरी यात्रा का खर्च संघ के एक शीर्ष नेता से जुड़े दिल्ली के एक बड़े कारोबारी ने उठाया।
(एनटीआई-gossipguru.in)

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