आंदोलनों के नाम पर सरकारी व निजी सम्पत्तियों का नुकसान क्यों ?

MANISHA SINGH
MANISHA SINGH
*मनीषा सिंह
और कब तक ? क्यों ? किसलिए ? क्यों आरक्षण ?कभी जाति के नाम पर ये रास्ता रोको आन्दोलन तो कभी ओछी
राजनीति के नाम पर ? क्यों ? क्योंकि आरक्षण व अन्य मांगो को लेकर शुरू गयी की जन मानस की जंग हर बार
राजस्थान ही नहीं पूरे देश को हिलाकर रख देती है
आख़िर क्यों वह तरीक़ा ,वही हथकंडा अपनाया जाता है जिससे किसी नेता या सरकारी अफ़सर को कोई नुक़सान व
परेशानी उठानी नहीं पड़ती है? क्यों हर बार आम जनता को ही इसकी भरपाई करनी पड़ती है ?? ये सवाल जहां में
हर बार उठते है ?क्यों आम जनता हर बार इसका हर्जाना भरे??
राजस्थान का एक समुदाय जो हमेशा यह आंदोलन कई बार उठा चुका है , अपने आरक्षण को लेकर आंदोलन में
हमेशा पटरियों का उखाड़ना, सड़क जाम करना पथराव करना , नारेबाज़ी करना , रेल रोकना, सरकारी सम्पत्ति व
आम जनता को परेशान करना शामिल है।
इस आंदोलन को हर बार उग्र आंदोलन व उपद्रवी आंदोलन की तरह देखा गया है। यह आंदोलन राजस्थान में ही
नहीं हरियाणा से लेकर पूरे देश को प्रभावित करता रहा है ।
मेरा मानना है कि सरकार के किसी भी नीतिगत फ़ैसले में खामियाँ या अंतर्विरोध को लेकर असहमति जताने का
अधिकार हमारे लोकतंत्र में हर किसी को है ,मगर संवैधानिक मूल्यों के अनुसार यहाँ विरोध जताने का तरीक़ा भी
लोकतांत्रिक होना चाहिए।
जबकि लगता है राजनीतिक दल और नागरिक संगठन अब इसकी परवाह नहीं करते.इसी का नतीजा है कि हर छोटे
छोटे मसलों पर भी राजनीतिक दल सामाजिक दल आंदोलन का आह्वाहन कर देते हैं .बाज़ार बंद,  देश बंद की
घोषणा कर देते हैं । इसमें देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुक़सान पहुँचता है ,लोगों की रोज़ी रोटी पर क्या असर
पड़ता है इसका आकलन शायद किसी को ज़रूरी नहीं जान पड़ता ।
हम कह सकते हैं कि किसी को इसमें और अब कोई असर नहीं पड़ता॥ पिछले दिनों केंद्र सरकार ने कृषि क़ानून
बनाया पास किया तो विभिन्न राज्यों में उसके विरोध में आंदोलन शुरू हो गए ख़ासकर ग़ैर भाजपा दलों में इस मुद्दे
को को तूल दिया था उसमें भारी संख्या में नुक़सान ,सड़कों पर धरना प्रदर्शन , आम जनता को परेशानी का सामना
करना पड़ा आदि ।तक़रीबन कृषि क़ानून के विरोध में अकेले पंजाब में रेलवे को क़रीब 12 सौ करोड़ का नुक़सान
भुगतना पड़ा था ।
पिछले दिनों गुर्जर आंदोलन से राजस्थान में को काफी कुछ झेलना पड़ा.नुकसान भी उठाना पड़ा.गुर्जर आरक्षण
आंदोलन के दौरान भी लंबे समय से रेल की पटरियों को बाधित रखा, जिसके कारण अनेक गाड़ियों का रास्ता
बदलना पड़ा तो कई गाड़ियों को बंद करना पड़ा.यहाँ जगह जगह रेल पटरियों पर प्रदर्शन धरना शुरू किया गया. वह
कई पटरियां उखाड़ दी गई.ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब आंदोलनकारियों ने सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुक़सान
पहुँचाया है ।इसके लिए जिम्मेदार कौन ?सरकार या वो कथित आन्दोलनकारी? ये एक बड़ा सवाल है.
रेलवे की स्थिति पहले से ही अच्छी नहीं हैं फिर कोरोना संक्रमण की वजह से उसकी ओर से पूर्णबंदी के दौरान पूरे
देश में रेल यातायात ठप रहा. इससे इस महकमें पर भारी वित्तीय बोझ बढ़ा है बस इस केवल एक आंदोलन के चलते
उसे करोड़ों का नुक़सान उठाना पड़ रहा है यह उसकी सबसे बड़ी क्षति मानी जाएगी ।सार्वजनिक परिवहन में
तोड़फोड़ और आवाजाही को रोका जाना देश के वासी के साथ साथ सरकारों को कितना नुक़सान उठाना पड़ता है
यह अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता ।
आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाना , कई आंदोलनों में राजनीतिक दलों और लोकतांत्रिक
मर्यादा के लोकतांत्रिक उच्च न्यायालय ने भी यह आदेश दिया था कि आंदोलनों के दौरान नुक़सान की भरपाई
संवैधानिकता संबंधित सारे वैधानिक दलों से कराई जानी चाहिए मगर राजनीतिक दलों की प्रवृति में कोई बदलाव
नहीं आया एक सुझाव यह भी था कि शहरों की गतिविधियों में बाधा न पहुँचे. इसलिए हर एक शहर में एक स्थान
तय होना चाहिए, जहाँ आंदोलनकारी अपनी जायज मागो के लिए धरना प्रदर्शन कर सके, मगर अफ़सोस हैं कि ऐसा
भी इंतज़ाम नहीं अभी तक नहीं किया जा सका है.
दिल्ली में तो पहले बोट क्लब था ,ऐसे धरनो व प्रदर्शनो के लिए.जिसे अब जंतर मंतर रोड की ओर शिफ्ट कर दिया
गया हैं.मेरा मानना है कि दिल्ली की तर्ज़ पर पूरे देश में जिले वार एक ऐसा स्थान निर्धारित किया जाये ,जिससे है
विभिन्न राजनैतिक दलों व और संगठनो को अपनी अपनी बातों को ज़ाहिर करने का अवसर मिल सके .
विरोध का लोकतांत्रिक अधिकार होने का यह अर्थ क़तई नहीं माना जाता है आम जनता को विला वजह परेशानी
झेलनी पड़े . आंदोलन, सरकार के ख़िलाफ़ व सिस्टम के ख़िलाफ़ करें ,कोई बात नहीं ,परन्तु इसका खामियाजा व
परेशानियाँ आम जनता को क्यों झेलनी पड़े .इस मसले को लेकर संभी राजनीतिक दलों को सोचना चाहिए .सोचना
होगा.
राजस्थान की बात करे तो हाल के आन्दोलन से जन जन को कष्ट पहुचायां है .इस 5-6 फ़ीसदी आबादी  के साथ साथ
वह हर इंसान मायने रखता है ।  पिछली दफ़ा भी तक़रीबन 80 से अधिक जानें गई थी.इस बार भी काफी नुकसान
हुआ.जिसका नाम लेकर आन्दोलन करे और उसी समाज को मुश्किलें झेलनी पड़े ,ये कहाँ का न्याय है ?
इस समुदाय के लोग नौजवान पीढ़ी ही अपने बुजुर्गों पर इतना विश्वास इतना अंध विश्वास करती है कि उन्हें जो
बोला जाता है. वहीं वह करते हैं .कौन परेशान है किसको कितनी परेशानी होगी नुक़सान होगा देश को कितना
नुक़सान होगा इसकी जागरूकता जरुरी है. आम जन किसी के परिवार वाले बीमार है किसी ने कैसे करके टिकट
करवाया होगा, यह सोचने तक कि फ़ुरसत नहीं कि नुक़सान किसका हो रहा हैं ।
क्या यही लोकतंत्र है .क्या यही सभ्य समाज का परिचायक है ?
सभ्य समाज का दावा करने वाला ये एक खास वर्ग नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़ करने में क्यों लगा है ? क्या
इसी तरह अवैध आरक्षण की माँग कर अपनी नाजायज़ माँग  मनमाना  जायज़ है ?इस पर सबको मिलजुलकर चिंता
व चिंतन करना होगा .अभी एक नया रास्ता व ठोस उपाय निकल सकेगा पाने समाज के चतुर्दिक विकास के लिए ..
*मनीषा सिंह ,वरिष्ठ समाज सेविका व लेखिका हैं .सम सामयिक विषयों पर निरंतर चिन्तन व लेखन .कई
सामाजिक संस्थानों से जुडी है .बेटी बचाओ –बेटी पढाओ को लेकर राजस्थान में काफी कार्य किया है और निरंतर कर
रही हैं .उसके अलावा महिला व बाल विकास ,पर्यावरण व ग्रामीण विकास के कई आयामों से भी जुडाव हैं .

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