नीतीश भाजपा की मजबूरी क्यों हैं?

त्रिदीब रमण 
त्रिदीब रमण

त्रिदीब रमण
’कहां तो हौसला था कि आसमां से सूरज उतार लाएंगे
तेरी जुल्फों में उलझे सावन से हम भी बहार लाएंगे
पर नए दौर का यह मौसम नया है
दोस्त मैं तुझमें हूं पर मुझमें तू कहां है’
भाजपा 2024 के आम चुनावों के लिए अभी से कमर कस चुकी है, सो येन-केन-प्रकारेण किसी भांति नीतीश को मनाने का भगवा उपक्रम जारी है। प्रदेश भाजपा के कई नेता नीतीश कुमार के खिलाफ खुल कर बयानबाजी कर रहे थे, इस बात को लेकर नीतीश भाजपा से किंचित खफा-खफा चल रहे थे। नीतीश को मनाने का जिम्मा पार्टी हाईकमान ने धर्मेंद्र प्रधान को सौंपा है, प्रधान पिछले दिनों नीतीश से मिलने यूं अचानक पटना पहुंच गए, सूत्रों की मानें तो दोनों नेताओं की बंद कमरे में घंटों बात हुई। नीतीश को भाजपा हाईकमान ने यह भरोसा दिया है कि ’वे बिहार में अपने हिसाब से सरकार चलाएं, भाजपा की ओर से किसी भी प्रकार का कोई व्यवधान नहीं होगा।’ नीतीश ने दो लोगों को बदले जाने की मांग की है इनमें से एक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल हैं जो नीतीश को फूटी आंखों नहीं सुहाते, दूसरे व्यक्ति हैं राज्य विधानसभा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा। नीतीश को आश्वासन दिया गया है कि आने वाले वक्त में इन दोनों को बदल दिया जाएगा। कहते हैं प्रधान ने नीतीश से कहा है कि ’राष्ट्रपति चुनाव के बाद जायसवाल को बदल दिया जाएगा।’ सूत्रों की मानें तो भाजपा फॉरवर्ड जाति के किसी युवा नेता को यह पद देना चाहती है, सीपी ठाकुर के पुत्र विवेक ठाकुर जो भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं, वे प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष हो सकते हैं। पिछले कुछ समय में तेजस्वी यादव ने भाजपा के परंपरागत वोट बैंक भूमिहार को तोड़ने में सफलता हासिल की है, इस दफे के विधान परिषद चुनाव में तेजस्वी की पहल पर तीन भूमिहार नेता चुनाव जीत गए हैं। भाजपा को यह चिंता भी सता रही है कि अगर नीतीश को खुला छोड़ दिया गया तो वे 2015 की तरह फिर से लालू से हाथ मिला सकते हैं, इससे 2024 के आम चुनाव में बिहार में भाजपा की संभावनाओं को ग्रहण लग सकता है।
गोयल क्यों हुए गोल?
योगी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए राज्य के डीजीपी मुकुल गोयल को विभागीय और शासकीय कार्यों की अवहेलना का दोषी ठहराते हुए उन्हें उनके पद से हटा दिया है, उनकी जगह डीएस चौहान को राज्य का नया डीजीपी बनाया गया है। आज से ग्यारह महीने पहले योगी के प्रथम शासन काल में गोयल जब डीजीपी बन कर लखनऊ आए तो उन्हें संघ और भाजपा के बड़े नेताओं की पसंद बताया गया। योगी ने भी अपनी फौरन नाराज़गी जाहिर कर दी नतीजन जब वे बतौर सीएम विभाग की मीटिंग लेते थे तो उसमें डीजीपी को बुलाया ही नहीं जाता था, पर गोयल अपने काम में जुटे रहे। उन्होंने मुख्यमंत्री को एक गुप्त रिपोर्ट सौंपी, जिसमें राज्य के पुलिस विभाग के कई वैसे अधिकारियों के नाम थे जो भ्रष्टाचार में संलिप्त थे, कहते हैं इस लिस्ट में योगी के कई भरोसेमंद और मुंहलगे अधिकारियों के नाम भी शामिल थे। इसमें योगी के उस मुंहलगे अफसर का नाम भी शामिल था जिसने नोएडा में करीब 30 करोड़ की लागत से अपनी एक कोठी बनवा ली है। सूत्र बताते हैं कि तिलमिलाए सीएम ने अवनीश अवस्थी को बुला कर उनसे कहा कि वे गोयल को तुरंत सस्पेंड करना चाहते हैं, तब अवस्थी ने सलाह दी कि यह डीओपीटी को मंजूर नहीं होगा, सो इनका ट्रांसफर कर दिया जाए। अब सुना जा रहा है कि मुकुल गोयल को केंद्र में कोई महत्वपूर्ण पोस्टिंग मिल सकती है।
नए अवतार में महाराज
मोदी सरकार के कई मंत्री सोशल मीडिया पर खासे एक्टिव रहते हैं, पर रंग बदल कर नए-नए भाजपाई हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात ही कुछ अलग है। पिछले दिनों एक यात्री ने जो स्पाइस जेट की विमान से सफर रहा था, जब विमान में सवार होने के बाद वह अपनी सीट पर बैठने लगा तो उसने पाया कि उसकी खिड़की आंशिक रूप से डैमेज है। उस व्यक्ति ने फौरन उस टूटी खिड़की की फोटो खींच कर नागरिक उड्डयन मंत्री यानी सिंधिया को ट्विटर पर टैग करते हुए लिखा कि ’यह सुरक्षा में गंभीर चूक है।’ सिंधिया ने फौरन हरकत में आते हुए अपने अधिकारियों को तलब किया, फिर स्पाइस जेट के उच्च अधिकारियों को लाइन पर लेकर मंत्री महोदय ने साफ हिदायत दी कि ’जब तक खिड़की दुरूस्त नहीं होगी, विमान टेकऑफ नहीं करेगा।’ विमान कंपनी के अधिकारी गण मंत्री महोदय को समझाने की कोशिश करते रहे कि खिड़की के शीशे में मामूली क्रेक है, इसे ठीक करवा लिया जाएगा। पर मंत्री महोदय नहीं माने, नतीजन विमान कंपनी को उस रनवे पर ही अपने इंजीनियर भेज खिड़की की मरम्मत करानी पड़ी, इस पूरी प्रक्रिया में 10-12 घंटे लग गए, तब ही विमान वहां से टेकऑफ कर पाया। इसके बाद मंत्री महोदय ने निर्देश दिए हैं कि इस विमान सेवा के सभी विमानों की जांच कर उन्हें रिपोर्ट भेजी जाए।
यह पूजा सिंघल क्या बला है
झारखंड की आईएएस अफसर पूजा सिंघल सियासत और नौकरशाही के मनचाहे घालमेल की ही एक तस्वीर है, जो यह बताने की कोशिश करती है कि नेताओं को भ्रष्टाचार की राह दिखाने वाली नौकरशाही खुद इसके अंदर किस हद तक लिप्त है। झारखंड में जब भाजपा के तथाकथित एक ईमानदार मुख्यमंत्री का दौर था पूजा सिंघल की उसमें तूती बोलती थी। वैसे तो पूजा अनगिनत घोटालों की सूत्रधार रही हैं, पर जब खूंटी में बड़े पैमाने पर मनरेगा घोटाला हुआ तो उसमें मैडम आईएएस की लिप्तता को लेकर एक जांच कमेटी बिठा दी गई, पर उस कमेटी की अगुआ रही झारखंड की तत्कालीन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा और प्रिंसिपल सेक्रेटरी एपी सिंह ने पूजा सिंघल को इस मामले में क्लीन चिट दे दी। जबकि सरकार में सचिव रही निधि खरे ने पूजा को क्लीन चिट देने का खुल कर विरोध किया था। आज निधि खरे दिल्ली में पोस्टेड हैं और निधि के पति अमित खरे जो खुद भी एक आईएएस अफसर हैं, पीएमओ में एक बेहद ताकतवर अफसर हैं। सनद रहे कि उस दौर में राजबाला वर्मा और एपी सिंह पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे और तब पीएमओ ने रघुबर दास से कहा था कि वे वर्मा और सिंह दोनों की जांच कराएं। पर कंबल ओढ़ घी पीने में सिद्दहस्त रघुबर दास ने किंचित चतुराई से यह मामला दबा दिया। हेमंत सोरेन शुरू से भाजपा के निशाने पर रहे हैं और पूजा सिंघल हेमंत की किचेन कैबिनेट की एक अहम सदस्य हो गई थीं, सो सिंघल के बहाने सोरेन को भी नापने की तैयारी है। रही बात रघुबर दास की तो वे राज्यसभा में आने के लिए ताबड़तोड़ हाथ-पैर मार रहे थे, उनकी नज़र सीएम की कुर्सी पर भी थी। कहते हैं ईडी ने अपनी कड़ी पूछताछ में पूजा सिंघल से कई अहम राज उगलवा लिए हैं, इससे यह भी पता चला है कि सिंघल ने रघुबर दास के संग अपना ’बनिया कनेक्शन’ भिड़ा कर अपने रिश्ते किंचित बहुत मधुर कर लिए थे।
सिंघल पर सीबीआई जांच हो सकती है
पूजा सिंघल के कई ठिकानों पर जब ईडी ने छापा डाला तो उसे वहां से कई अहम दस्तावेज और सुराग हासिल हुए। सिंघल के ठिकानों पर छापों के साथ ही ईडी ने कोलकाता के एक बड़े बिल्डर अभिजीत साहा के यहां भी छापा मारा, सूत्र बताते हैं कि बिल्डर के यहां से ईडी को कुछ ऐसे दस्तावेज हासिल हुए हैं जिसके तार सीधे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से जुड़ रहे हैं। सो, इस मामले को और भी गंभीरता के साथ खंगाला जा रहा है। कहते हैं अभिजीत साहा ने ईडी से पूछताछ में सीएम के एक करीबी व्यवसायी का नाम उगला है। सिंघल और उसके पति अभिषेक झा के सीए सुमन कुमार ने ईडी के समक्ष कई नए रहोस्योद्घाटन किए हैं। साथ ही वह सरकारी अप्रूवर बनने के लिए अपनी सहमति जता रहा है। सूत्र यह भी खुलासा करते हैं कि पूजा सिंघल के करप्शन की जांच षीघ्र ही सीबीआई को सौंपी जा सकती है। सिंघल पर खनन घोटाले के भी कई गंभीर आरोप हैं, सीएम सोरेन की करीबी होने के नाते उनके पास तीन-चार अहम विभागों का जिम्मा था। वह राज्य की खनन सचिव भी थीं, राज्य का खनन मंत्रालय सीधे सीएम के अधीनस्थ है, इसीलिए केंद्र चाहेगा कि इस मामले में सीबीआई अपनी सघन जांच करें और अगर पूजा सिंघल सरकार की अप्रवूर बनने को तैयार हो जाती हैं तो सोरेन पर तेजी से नकेल कसी जा सकती है।
चिंता के सिवा क्या हासिल है चिंतन बैठकों से
कांग्रेस के अंदर नए बदलाव की कश्मकश जारी है, सोनिया की ज़िद भी अपनी जगह कदमताल कर रही है कि राहुल का इकबाल पार्टी जनों को स्वीकार करना ही होगा, और संगठनात्मक मजबूती की मिसाल बन चुकी भाजपा से दो-दो हाथ करने के लिए कांग्रेस को अपने चेहरे-मोहरे को बदलना ही होगा। पर उदयपुर में आहूत इस चिंतन बैठक के एजेंडे में नया क्या है? क्या यह कि परिवार के दो व्यक्तियों को पार्टी टिकट से नवाजा नहीं जाएगा, इसमें नया क्या है भगवा पार्टी ने यूपी चुनाव में हर संभव इस मंत्र को साध कर दिखाया है, मोदी ने सार्वजनिक मंचों से इस बात को दुहराया है। कांग्रेस में इस बात पर भी मंथन चल रहा है कि राजनीति में उम्र की सीमा तय हो, भाजपा यह पहले ही कर चुकी है, 75 साल से ऊपर के नेताओं को पहले ही मार्गदर्शक मंडल की राह दिखाई जा चुकी है। कांग्रेस में अब इस बात पर भी मंथन चल रहा है कि किसी भी नेता को दो टर्म से ज्यादा राज्यसभा नहीं दी जाएगी, इसमें नया क्या है सीपीएम जैसे दलों में यह परिपाटी वर्षों से चली आ रही है। सीताराम येचुरी भले ही तीसरी दफे पार्टी महासचिव बना दिए गए हों पर उन्हें राज्यसभा से वंचित रहना पड़ा है। पंचमढ़ी से लेकर शिमला तक कांग्रेस के हर चिंतन बैठक का अंजाम एक सा रहा है। आज कांग्रेस के लिए सबसे जरूरी है कि वह कुछ नया सोचे, अगर इनके नेता कुछ नया नहीं सोच सकते, तो पीके की वैचारिक जुगाली से ही कुछ मोती इकट्ठे किए जाएं।

चिंतन शिविर की असल चिंता
कांग्रेस के उदयपुर के चिंतन शिविर से पार्टी के कई बड़े नेता नदारद रहे, उन्हें शिविर में बुलाया ही नहीं गया। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की अपनी सरकार है, इसके अलावा महाराष्ट्र, झारखंड में वह गठबंधन की सरकार में शामिल है। इन सरकारों के किसी भी मंत्री को चिंतन षिविर में आमंत्रित नहीं किया गया। राज्य इकाईयों के कार्यकारी अध्यक्षों को भी बुलाने की जहमत नहीं उठाई गई, कई पार्टी प्रवक्ताओं को भी नहीं बुलाया गया जिन्हें कैमरों के आगे पार्टी लाइन सामने रखनी होती है। इस बात पर सब हैरान थे कि आमंत्रितों की सूची किसने तैयार की थी? जिग्नेश मेवाणी और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं को भले ही पार्टी में कोई पद न मिला हो, पर ये दोनों राहुल के बेहद दुलारे हैं, इस नाते इन्हें शिविर में बकायदा आमंत्रित किया गया। मेवाणी तो गुजरात से निर्दलीय विधायक हैं, उन्हें शिविर में देख कर कई कांग्रेसी हैरान थे। सोनिया गांधी को भी इस ऊहापोह का आभास हो चुका था, जिसका जिक्र अपने उद्घाटन भाषण में करते हुए उन्होंने कहा-’कई पार्टी नेता इस शिविर में रहना चाहते थे, पर कुछ कारणों से हमें भागीदारी सीमित करनी पड़ी है, पर मुझे यकीन है कि ये नेतागण हमारी मजबूरियों को समझेंगे, मैं उनसे कहना चाहती हूं कि महज़ उदयपुर में उपस्थित न रहने से संगठन में उनकी भूमिका या क्षमता का कोई अवमूल्यन नहीं हुआ है।’
…और अंत में
एक) सोशल मीडिया पर उस गुटखा व्यापारी के नाम की बहुत चर्चा है जिन्होंने राज्यसभा की अदद सीट के लिए तमिलनाडु के सीएम को 75 करोड़ रुपयों की पेशकश कर दी थी, इनका काम बन ही जाता पर सोनिया गांधी ने उसी सीट के लिए स्टालीन से पी.चिदंबरम के नाम की जोरदार पैरवी कर दी।
दो) केंद्र सरकार के एक महत्वपूर्ण मंत्री के पुत्र को देहरादून के एक नामी स्कूल में बोर्ड एक्जाम में नकल करते धर लिया गया। यह खबर इसीलिए भी रफ्तार पकड़ती गई क्योंकि स्वयं पीएम अपने मन की बात में ’परीक्षा पर चर्चा’ कर रहे थे और छात्रों से परीक्षा के दौरान संयमित रहने की सलाह दे रहे थे। (एनटीआई-gossipguru.in)

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