![त्रिदीब रमण](https://www.samagrabharat.com/wp-content/uploads/2022/06/Tridib-Raman-227x300.jpg)
त्रिदीब रमण
’आसमां से कुछ तूने भी तो मांगा होगा
यूं ही चांद उतर नहीं आया है तेरे रुखसार पर’
चूंकि भाजपा के लिए बंगाल में अपनी उपस्थिति बनाए रखना बेहद जरूरी है, सो उसे सौरव गांगुली जैसे एक जीवित बंगाली प्रतिमान को गहरे भगवा रंग में रंगने की आवश्यकता आन पड़ी, ममता बनर्जी के उस चैलेंज को भी भाजपा किंचित गंभीरता से ले रही है जब दीदी ने खुल्लम खुल्ला भाजपा को ललकारा है कि ’अब बीजेपी के लिए बंगाल में ‘नो एंट्री’ है’ सो भाजपा के लिए गांगुली एक तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं।’ भाजपा भले ही उन्हें राज्यसभा में मनोनीत कोटे से ला रही हो पर गांगुली व भाजपा में कोई खिचड़ी पक चुकी है इसका खुलासा इस क्रिकेटर के उस हालिया ट्वीट से सामने आता है जिसमें उन्होंने इशारों-इशारों में कह दिया है ’वह कुछ नया करने की योजना बना रहे हैं’ पिछले दिनों जब गृह मंत्री अमित शाह बंगाल के दौरे पर थे तो बकायदा उन्हें पूरे दल-बल के साथ बंगाल टाईगर के नाम से मशहूर गांगुली ने उन्हें अपने घर खाने पर न्यौता था। दरअसल, गांगुली के पीछे कई वर्षों से भाजपा हाथ धोकर पीछे पड़ी थी कि वे पार्टी में शामिल हो जाएं, पर गांगुली टस से मस नहीं हो रहे थे। इस बार गांगुली की बदली भाव-भंगिमाओं के पीछे उनकी मजबूरियां ज्यादा दिख रही हैं। गांगुली का बीसीसीआई का अध्यक्षीय कार्यकाल इस 27 जुलाई को खत्म हो रहा है। बीसीसीआई यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का अध्यक्ष बनने से पहले वे ‘कैब’ यानी क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष थे, फिर उन्होंने 2019 में बीसीसीआई का कार्यभार संभाला। लोधा कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक किसी भी शख्स को लगातार छह साल अध्यक्ष रहने के बाद 3 साल का अनिवार्य ब्रेक लेना ही होगा। गांगुली ने 3 साल कैब फिर 3 साल निरंतर बीसीसीआई का अध्यक्ष पद संभाला है पर इस बार गांगुली के लिए 3 साल के ’कूलिंग पीरियड’ को ’वेव ऑफ’ करने के लिए बीसीसीआई कोर्ट चली गई है। बीसीसीआई का कहना है कि गांगुली इतना बड़ा नाम है कि उन्हें इस नियम के एक अपवाद के तौर पर देखा जाना चाहिए, यह मामला कोर्ट में लंबित है। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव आदित्य वर्मा जो इस पूरे मामले को कोर्ट में लेकर गए थे, उन्होंने भी अब गांगुली के समर्थन में अपने रंग बदल लिए हैं, उन्होंने भी कुछ नामों पर कंप्रोमाइज करने की कोर्ट में दलील दी है। अपने अनिश्चित भविष्य को देखते हुए गांगुली भी भगवा होने को राजी हो गए हैं, भाजपा की असली दिक्कत 2024 के आम चुनावों में अपनी मौजूदा 18 सीटों को बचाए रखने की है, गांगुली अगर फ्रंट पर आकर खेलें तो यकीनन राज्य में भगवा संभावनाओं को वृहतर आयाम मिलेगा।
क्या संदीप सिंह से नाराज़ हैं प्रियंका?
पिछले दिनों प्रियंका गांधी दो दिनों के दौरे पर लखनऊ आई थी, जहां उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं की एक अहम मीटिंग लेनी थी। तयशुदा स्थान पर एंट्री से पहले हर कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता से आग्रह किया गया कि वे अपने फोन बाहर रिसेप्शन पर जमा कर दें फिर सभागार में दाखिल हों। सभागार में भी उम्मीद से कम पार्टी कार्यकर्ता जुटे। कार्यकर्ताओं की अपनी प्रियंका दीदी से शिकायत थी कि यूपी चुनाव के बाद उन्होंने कार्यकर्ताओं की सुध लेना जरूरी नहीं समझा। कुछ लोग अपनी नाराज़गी दिखाने के लिए मीटिंग छोड़ कर जाने लगे तो प्रियंका ने भी आवेश में आकर कह दिया-’वैसे भी बहुत लोग पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं, आप लोग भी जाना चाहें तो जा सकते हैं।’ इसके बाद उन्नाव से आए पार्टी कार्यकर्ताओं ने प्रियंका से अनुरोध किया कि वे 2024 का चुनाव रायबरेली से लड़ने की न सोचें, चूंकि उनका जिला रायबरेली से लगता है इसीलिए वे वहां के लोगों का मिजाज बता सकते हैं। इस पर वहां मौजूद संदीप सिंह जो प्रियंका के सचिव हैं, उन्होंने उन्नाव के कार्यकर्ताओं को डपटते हुए कहा कि ’आप सभी शांत होकर बैठ जाइए।’ इस पर कुछ पार्टी कार्यकर्ता उखड़ गए और उन्होंने संदीप को आड़े हाथों लेते हुए प्रियंका से कहा-’दीदी ये जो हमें चुप करा रहे हैं, इन्होंने ही राज्य में सबसे ज्यादा पार्टी का भट्टा बिठाया है। इनसे पूछो इन्होंने इतना पैसा अचानक से कहां से कमा लिया?’ इसके बाद प्रियंका ने कहा इस बार प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव गुप्त वोटिंग से किया जाएगा, पर कार्यकर्ताओं की इस बात में अब कम ही दिलचस्पी बची थी। प्रियंका ने भी मीटिंग के बाद संदीप सिंह को खूब खरी-खोटी सुनाई और जहां उन्हें दो दिन लखनऊ रूकना था, एक दिन में ही दिल्ली वापिस लौट आईं।
नकवी को क्यों हटना पड़ा
भाजपा की चाहतों के सफर को सुर्ख ख्वाब देने और मुकम्मल शब्दावलियों को रोशन करने में मुख्तार अब्बास नकवी की महती भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता। उनकी मीडिया फ्रेंडली शख्सियत कई-कई दफे भाजपा के काम आई है, सो जब इस दफे उन्हें राज्यसभा नहीं दी गई तो हैरतों ने जैसे आसमां सिर पर उठा लिया, 22 सीटें खाली थीं, कई ऐसे नामों की भी लॉटरी लग गई जिन्होंने ऊपरी सदन की कल्पना नहीं की थी, पर नकवी का नंबर नहीं लगा। जबकि उन्होंने अल्पसंख्यक मंत्रालय को भी इस अंदाज में चलाया कि मंत्रालय के हौसले चमक उठे। नकवी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ’हुनर हाट’ ने सरकार की लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए। जब से ज्ञानवापी विवाद ने तूल पकड़ा है संघ और भाजपा ने एक नया ‘हिंदू नैरेटिव’ तैयार करने की कोशिश की है यानी मुस्लिम मुक्त पार्टी, संसद और सरकार। पर पार्टी में एक वर्ग ऐसा भी है जो नकवी को रामपुर उप चुनाव में उतारना चाहता था। रामपुर में 47 फीसदी हिंदू, 4 फीसदी सिख और 49 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। ओवैसी भी यहां से अपनी पार्टी का उम्मीदवार उतारने की सोच रहे हैं। अगर आजम खान की पत्नी या बेटे में से कोई मैदान में नहीं उतरता है तो वे भी जाने-अनजाने यहां भाजपा की मदद करेंगे। और यह मोदी सरकार की नाक का सवाल भी होगा सो सीएम योगी समेत पूरा प्रशासन भी यहां मुस्तैद रहेगा। पर इतने पर भी नकवी को रामपुर से मैदान में नहीं उतारा गया, भाजपा ने उनकी जगह घनश्याम लोधी को मैदान में उतारा है। क्या यह शालीन और मीडिया फ्रेंडली नकवी के लिए विदाई काल है?
राहुल कहां हैं?
भारत की झुलसा देने वाली गर्मी से दूर राहुल गांधी विदेश में अभी कहां हैं इस बात का किसी को कोई इल्म नहीं। हां उन्हें 2 जून को ईडी के समक्ष पेश होना था तो उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने उनके विदेश में होने का हवाला देकर 13 जून का समय मांग लिया है। यहां भारत में राहुल की मां सोनिया और बहन प्रियंका कोरोना संक्रमित हो गई हैं, वहीं राज्यसभा चुनावों में क्रॉस वोटिंग से बचाने के लिए पार्टी विधायकों को छत्तीसगढ़ की सैर कराई जा रही है, पर राहुल गांधी इन बातों से बेपरवाह हैं। वे अपनी रौ में हैं और अपनी यायावरी को समर्पित हैं। लंदन में उनकी मुलाकात तेजस्वी यादव और उनकी नव विवाहिता राजश्री से हुई। तेजस्वी भी वहां कैंब्रिज में बोलने को आए थे। राहुल जैसे ही राजश्री से मिले तो सबसे पहले उनका नाम पूछा, जवाब मिला-’राजश्री’, राहुल ने हौले से चुटकी ली-’पर शादी से पहले तो आपका नाम रचेल था?’ राजश्री चुप रहीं, तेजस्वी भी असहज हो रहे थे तो फिर राहुल ने कहा-’शादी के बाद नाम बदलने की या हिंदू नाम रखने की आपको कोई जरूरत नहीं थी, आप मेरी मां को देखो, शादी से पहले भी उनका नाम सोनिया था, अब भी सोनिया है।’ राहुल के इस बिंदासपन से असहज हो गए तेजस्वी ने अपनी पत्नी के साथ फौरन वहां से खिसकना ही मुनासिब समझा। इसके बाद राहुल सीताराम येचुरी के साथ कांफ्रेंस हॉल में दाखिल हो गए, और वे येचुरी के पीछे जाकर बैठ गए। कुछ देर बाद राहुल ने येचुरी से पूछा-’मैं जानता हूं कि अभी आप क्या सोच रहे हैं?’ येचुरी ने जानना चाहा-’क्या?’ राहुल ने कहा-’यही कि बाहर निकल कर एक सिगरेट सुलगा लूं।’ येचुरी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए।
जफ़र इस्लाम क्यों हुए तमाम
भाजपा में जफ़र इस्लाम ने सफलता की सीढ़ियां बहुत जल्दी-जल्दी चढ़ीं। उन्हें हालिया दिनों में पार्टी ने इस बात का ईनाम दिया कि वे ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के करीब लेकर आए, ईनाम के तौर पर उन्हें दो साल के लिए राज्यसभा मिल गई। पर पिछले कुछ समय में हाईकमान को उनके खिलाफ कई शिकायतें मिली थीं। इनमें से एक शिकायत लूटियंस जोन में रहने वाले एक जज़ साहब की बताई जाती है, सूत्रों की मानें तो उन्होंने जफ़र को लेकर भाजपा में एक शीर्ष नेता को चिट्ठी लिख दी थी जिसमें इस बात का जिक्र था कि कैसे यह भाजपा के सांसद उनके पास एक काम लेकर आए थे और आते ही यह तुर्रा उछाल दिया कि उनकी पहुंच सीधे प्रधानमंत्री तक है। इस चिट्ठी के बाद उस शीर्ष नेता ने फौरन जफ़र को तलब कर इस मसले पर उनका जवाब चाहा, कहते हैं जफ़र ने सफाई देते हुए कहा कि ’उन्होंने पीएम का नाम नहीं लिया, बस इतना कहा था कि उनके लायक कोई काम होगा तो वे कर देंगे।’ इसके बाद ही भगवा पार्टी ने उन्हें ठंडे बस्ते में डालने का फैसला किया।
संगरूर किसका तोड़ेगा गुरूर
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के इस्तीफे से खाली हुई संगरूर लोकसभा सीट पर इस 23 जून को उप चुनाव होना है। पर एक हालिया सर्वेक्षण के नतीजों में इस सीट पर आप मुश्किल में दिख रही है। इस सीट पर पूरा विपक्ष आप को घेरने में जुटा है और मशहूर पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला उर्फ शुभदीप सिंह की सरेआम गोली मार कर हत्या कर देने का असर भी यहां दिखने लगा है। कांग्रेस ने तो फिलहाल अपने प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा बरार (वडिंग) को यहां से उतारने का मन बनाया है। पर अगर मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह यहां से चुनाव लड़ने को राजी हो जाते हैं तो कांग्रेस उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है, वैसे भी जब शनिवार को यूं अचानक अमित शाह मूसेवाला के पिता से मिले तो कयासों के बाजार को और भी रोचक बना दिया। आप की ओर से पहले यहां भगवंत मान की बहन मनप्रीत कौर चुनाव लड़ना चाहती थीं, पर बदले सियासी रुख को भांपते हुए आप ने यहां से संगरूर जिला इंचार्ज गुरमैल सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। वहीं अकाली दल की ओर से सिमरनजीत सिंह मान मैदान में हैं।
…और अंत में
कांग्रेस के बागी गुट ’जी-23’ के सिरमौर गुलाम नबी आजाद को जब यह बात पता चली कि उन्हें राज्यसभा नहीं दी जा रही है तो उन्होंने कोई दो बार राहुल गांधी को फोन किया, पर राहुल ने उनका फोन नहीं उठाया। तब उन्होंने थक-हार कर सोनिया गांधी को फोन लगाया। सोनिया ने उनसे कहा कि ’वे फिलहाल राज्यसभा की न सोचें उन्हें पार्टी संगठन में कोई अहम जिम्मेदारी दी जाएगी, मसलन पार्टी संगठन में कार्यकारी अध्यक्ष का पद भी उन्हें दिया जा सकता है।’ गुलाम नबी ने सोनिया से माफी मांगते हुए इस प्रस्ताव को ’ना’ कह दिया, यह कहते हुए कि ’जब युवा पीढ़ी ही मेरे साथ काम नहीं करना चाहती तो मैं संगठन में क्या करूंगा।’ इसके बाद उन्होंने कुछ कश्मीरी पत्रकारों से मिल कर अपना दर्दे दिल बयां किया-’राहुल गांधी जब कांग्रेस का मर्सिया ही लिखना चाहते हैं तो फिर मैं कांग्रेस में रह कर क्या करूंगा।’ (एनटीआई-gossipguru.in)
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