क्या अशोक गहलोत होंगे कांग्रेस के अगले अध्यक्ष?

त्रिदीब रमण
     त्रिदीब रमण

यह रिश्ता जो मैंने मुद्दतों से संभाला हुआ है, यही तो है जिससे दिलों में उजाला हुआ है

रुकना गवारा नहीं मुझे, चलूंगा दूर तक, मेरी इसी बात ने तुम्हें मुश्किल में डाला हुआ है’

 

 

 

राहुल गांधी अपनी ’भारत जोड़ो यात्रा’ की अनुगूंज को सहेजने में लगे हैं, वहीं उनकी मां, बहन और उनके करीबी नेताओं ने उन पर निरंतर दबाव बनाया हुआ है कि कांग्रेस की अध्यक्षीय बागडोर उन्हें ही संभालनी चाहिए। पर राहुल अपने करीबियों की इस राय से इत्तफाक नहीं रखते। राहुल को लगता है कि ’अगर कांग्रेस का नेतृत्व फिर से उनके हाथों में आया तो पीएम को उन पर परिवारवाद के तीर छोड़ने के मौके मिल जाएंगे।’ आसन्न विधानसभा चुनावों के परिप्रेक्ष्य में गुजरात में कांग्रेस की हालत पतली है, वहां भाजपा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकती है, भाजपा का संख्या बल माधव सिंह सोलंकी के वक्त के रिकार्ड को भी तोड़ सकता है। गुजरात और हिमाचल में अगर हार हुई तो इसका ठीकरा भी राहुल के सिर ही फोड़ा जाएगा। सो, राहुल अपनी पसंद का नया अध्यक्ष चाहते हैं, जिनकी व्यवहार कुशलता और वरिष्ठता को पार्टी में कोई चुनौती न मिल सके। हालिया एआईसीसी अधिवेशन में कांग्रेस के तीन वर्षों के अध्यक्षीय कार्यकाल को भी 5 वर्षों का कर देने का प्रस्ताव है। राहुल और सोनिया ने अपनी ओर से अशोक गहलोत का नाम चुपचाप आगे किया है, बावजूद इसके कि गहलोत अभी भी राजस्थान छोड़ना नहीं चाहते, पर राहुल से जुड़े करीबी सूत्रों का दावा है कि इसके लिए गहलोत को मना लिया जाएगा। दरअसल, राहुल अपने परंपरागत विरोधी राजनैतिक पार्टी को डंके की चोट पर यह संदेश देना चाहते हैं कि ’गांधी परिवार किसी पद का भूखा नहीं है।’ सनद रहे कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव 17 अक्टूबर को होना है, जिसके लिए 22 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी हो सकता है। अध्यक्ष पद के लिए नामांकन 24 से 30 सितंबर तक होना है। सो, गहलोत के लिए भी अब सोचने के लिए ज्यादा वक्त बचा नहीं है।

ऐसे बिसरा दिए गए वासनिक

कांग्रेस के अंदर दो वरिष्ठ नेता ऐसे थे जो बढ़-चढ़ कर अपने को अध्यक्ष पद का सबसे मुफीद चेहरा घोषित करने में जुटे थे, राहुल मंडली ने इन दोनों नेताओं की उद्दात महत्वाकांक्षाओं को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है। इन दो नामों में आप कृपया शशि थरूर या दिग्विजय सिंह का नाम न लें, क्योंकि पार्टी के अंदर इन्हें कोई भी नेता किंचित इतनी गंभीरता से नहीं लेता है। दरअसल, पिछले 25 वर्षों से लगातार कांग्रेस के किसी न किसी पद पर रहे मुकुल वासनिक और दक्षिण भारत से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे अपने आप को परोक्ष व अपरोक्ष तौर पर अध्यक्ष पद के मजबूत दावेदारों के तौर पर पेश कर रहे थे। मल्लिकार्जुन के बारे में लगातार यह दक्षिण के अखबार छाप रहे थे कि ’उनको अध्यक्ष बनाने से उत्तर व दक्षिण दोनों राज्यों में कांग्रेस के जनाधार बढ़ेगा।’ मुकुल वासनिक ने तो दो कदम आगे बढ़ कर 4 सितंबर को संपन्न हुई कांग्रेस की रैली के आलोक में एआईसीसी में अपना शक्ति प्रदर्शन कर दिया था। रैली में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में पार्टी नेता और कार्यकर्ता 2 दिन पहले से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार व राजस्थान से वासनिक के पक्ष में लामबंद हो रहे थे। पर मुकुल के पर कतरे जाने की पूरी रूप-रेखा कांग्रेस के चिंतन शिविर में ही तय हो गई थी। सो, अभी पिछले दिनों वासनिक से मध्य प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य का प्रभार वापिस लेकर यह जिम्मेदारी जय प्रकाश अग्रवाल को दे दी गई है। चिंतन शिविर में ही मुकुल नीत कमेटी से ही शीर्ष नेतृत्व ने चालाकी से यह प्रस्ताव पारित करवा लिया कि ’किसी भी नेता को लगातार 5 साल तक पदाधिकारी रहने के बाद उन्हें यह पद छोड़ना होगा।’ यानी एक तरह से अब तय हो गया है कि राहुल बिना किसी पद पर काबिज हुए रिमोट कंट्रोल से पार्टी चलाएंगे और पार्टी पर भी उनका ही पूरा नियंत्रण होगा।

क्या राज ठाकरे शिंदे का हाथ थामेंगे?

यह पिछले सप्ताह की ही तो बात है जब मनसे प्रमुख राज ठाकरे देर रात कोई ग्यारह बजे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मिलने पहुंचते हैं। दोनों नेताओं के बीच एक लंबी बातचीत होती है। शिंदे राज ठाकरे के समक्ष प्रस्ताव रखते हैं ’चूंकि आप ठाकरे हैं सो मेरी नवगठित पार्टी के आप अध्यक्ष बन जाइए और इसे संभालिए। आपका नाम पार्टी से जुड़ने से शिव सैनिकों का भरोसा भी पार्टी में बहाल होगा और हम उद्धव ठाकरे के समक्ष एक मजबूत चुनौती भी उछाल पाएंगे।’ सूत्रों की मानें तो यह बात बन सकती है, बदले में राज ठाकरे की पत्नी शर्मिला को शिंदे की पार्टी राज्यसभा दे सकती है और राज्यसभा में वह पार्टी की नेता भी हो सकती हैं। राज ने शिंदे से एक वादा अपने पुत्र के लिए भी लिया है कि ’2024 में शिंदे उन्हें अपनी पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़वाएंगे।’ राज ठाकरे के इन दोनों प्रस्तावों पर एक तरह से शिंदे की हरी झंडी है, बस उन्हें एक बार दिल्ली जाकर इस पर भगवा सहमति की आखिरी मुहर लगवानी है।

संजय नाम की गफलत में गहलोत

गुलाम नबी आजाद ने जब कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए अपना एक पांच पन्नों का पत्र जारी किया था, तब उस पर राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक चौंकाने वाला बयान दिया था, बकौल गहलोत-’आज की 80 फीसदी कांग्रेस संजय गांधी द्वारा तैयार किए गए नेताओं की है, जिनमें से एक मैं भी हूं। भले ही राजनीति में मैं संजय गांधी की वजह से आया पर उनसे मेरे विचार मेल नहीं खाते थे।’ शाम को गहलोत को उनके कुछ मुंहलगे पत्रकारों ने घेर लिया। उनमें से एक ने उनसे पूछा-’आप संजय गांधी की उपज हैं, पर उनसे आपके विचार मेल नहीं खाते थे आपका यह बयान क्या कुछ अटपटा नहीं है।’ इस पर गहलोत ने उस पत्रकार को चुप कराते हुए कहा-’भाई अब इस बयान पर मिट्टी डालो, मुझे अंदाजा नहीं था कि लोगों को यह बात इतनी चुभेगी, कोई भी राज्य नहीं बचा है जहां से मेरे इस बयान के विरोध में फोन न आया हो। पर आप मेरी मजबूरी समझ सकते हैं, मैं कांग्रेस आलाकमान को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकता।’ बात पत्रकारों को समझ में आ गई।

 

 

 

चौटाला की द्विविधा

इंडियन नेशनल लोकदल के महासचिव अभय चौटाला और उनके पिता ओम प्रकाश चौटाला आगामी 25 सितंबर को ताऊ देवीलाल की जयंती पर फतेहाबाद में एक बड़ी रैली कर रहे हैं, ‘सम्मान दिवस’ नामक इस रैली में विपक्षी एकता का उद्घोष भी छिपा है। इस रैली में बड़े विपक्षी सूरमाओं के शामिल होने की संभावना है, फेहरिस्त लंबी है, मसलन शरद पवार, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, एचडी देवेगौड़ा, तेजस्वी यादव, प्रकाश सिंह बादल और मेघालय के गवर्नर सतपाल मलिक इस रैली के कुछ चमकते चेहरे हो सकते हैं। अभय चौटाला ने तेलांगना के मुख्यमंत्री केसीआर से फोन कर उनसे रैली में शामिल होने का अनुरोध किया। केसीआर ने तपाक से कहा कि ’वे जननायक जनता पार्टी की रैली में जरूर शामिल होंगे।’ इस पर अभय चौटाला ने उन्हें टोकते हुए कहा कि ’जननायक पार्टी तो हमारे भतीजे दुष्यंत की पार्टी है, हमारी पार्टी तो इनेलोद है, जो ताऊ देवीलाल के आदर्शों को समर्पित है।’ फिर अभय चौटाला ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को फोन किया और उन्हें रैली में आने का आमंत्रण दिया। ममता ने भी लगभग वही सवाल पूछा कि ’क्या आप लोग अब भी हरियाणा के भाजपा सरकार के पार्टनर हैं?’ अभय ने कहा-’नहीं-नहीं वह तो मेरा भतीजा दुष्यंत चौटाला है।’

उत्तर-पूर्व के दो सीएम बदले जा सकते हैं

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उत्तर-पूर्व के दो राज्यों का सीएम बदलना चाहता है, इसमें से एक हैं पी संगमा के पुत्र कॉनरेड संगमा और दूसरे हैं अरूणाचल के सीएम पेमा खांडू। स्वर्गीय संगमा के पुत्र कॉनरेड को भाजपा की ओर से कहा गया है कि ’क्यों नहीं वे अपनी क्षेत्रीय पार्टी एनपीपी का विलय भाजपा में कर देते हैं।’ इस प्रस्ताव को कॉनरेड ने यह कहते हुए ठुकरा दिया है कि ’ऐसा कर पाना उनके लिए संभव नहीं होगा क्योंकि उनकी पार्टी को क्रिश्चियन समुदाय का ही सबसे बड़ा समर्थन हासिल है और भाजपा एक हिंदूवादी पार्टी के तौर पर जानी जाती है।’ अरूणाचल की पेमा खांडू सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। इन बातों से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व परेशान हैं। वहीं केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू जो भाजपा के नंबर दो के बेहद करीबियों में शुमार होते हैं, उनकी एक पुरानी इच्छा है अरूणाचल का सीएम बनना। सो, पेमा खांडू के खिलाफ चल रहे तमाम खबरों को वे सीधे भाजपा शीर्ष तक पहुंचाते हैं, क्योंकि जब खांडू गद्दी खाली करेंगे तब ही तो उनका नंबर लग पाएगा।

 

 

 

और अंत में

अपनी नानी के इंतकाल के बाद राहुल जब इटली से स्वदेश लौटे तो उन्होंने पार्टी के तीन-चार बड़े नेताओं को, मसलन पी. चिदंबरम, कमलनाथ व भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तलब किया और उनसे जानना चाहा कि ’गुलाम नबी राहुल और गांधी परिवार को लेकर इतना कुछ कह गए पर आप लोगों की ओर से कोई खंडन भी नहीं आया। जबकि मैंने जयराम को इस बारे में मैसेज भी दिया था।’ इस पर चिदंबरम ने कहा कि ’आपने यही तो गलती की, जयराम से नहीं कहलवाना चाहिए, वे मुझसे बहुत जूनियर हैं। जब मैं देश का वित्त मंत्री था तो वे मेरे ऑफिस में चाय-पानी का इंतजाम देखा करते थे।’ कमलनाथ ने भी लगभग इसी बात को दुहराया और कहा कि ‘इनका भी दर्द बहुत हद तक चिदंबरम वाला ही है, इनका आदेश मैं कैसे ले सकता था।’ राहुल हतप्रभ थे कि आखिरकार पार्टी में यह चल क्या रहा है?  

 

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