क्या सीआर पाटिल होंगे अगले भाजपाध्यक्ष?

त्रिदीब रमण 
  त्रिदीब रमण 

 रफ्ता-रफ्ता लौ जब इन चिरागों की जा रही थी, बुझा के ये रात हमने भी सिरहानों में रख ली थी।

तुम्हें भी ज़िद थी मेरे ख्वाबों में बसर करना है, हमें भी ज़िद थी कि हमें सूरज बन कर चमकना है।।

सियासत में जब नेपथ्य की चुगलियां आकार पाने लगती हैं तो उससे आगे के सियासी ’रोड मैप’ की थाह लगाई जा सकती है। पिछले दिनों जब पार्लियामेंट हाऊस एनेक्स में भाजपा सांसदों का जमावड़ा जुटा तो स्वयं पीएम मोदी ने गुजरात चुनाव की अभूतपूर्व जीत का श्रेय वहां के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल को देते हुए उनकी तारीफों के पुल बांध दिए। कोई पांच-सात मिनट तक पीएम पाटिल की एक रौ में तारीफ करते रहे। पाटिल वैसे तो पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का भी जिम्मा संभाल चुके हैं। संसदीय सौंध की इस बैठक से निकलने वाले हर भाजपा सांसद को किंचित इस बात का इल्म हो चुका था कि आने वाले दिनों में पाटिल को पार्टी में कुछ बड़ा मिलने वाला है। इसके तुरंत बाद पाटिल ने दिल्ली जिमखाना क्लब में एनडीए के सहयोगी दलों और भाजपा सांसदों के लिए एक डिनर रखा। और सबसे खास बात तो यह है कि सांसदों को उन्होंने इस आग्रह के साथ डिनर में आमंत्रित किया कि ‘पीएम चाहते हैं कि ’सांसद महोदय इस डिनर में शामिल हों।’ इस डिनर में भाजपा व उसके सहयोगी दलों के सांसदों को ही आमंत्रित करने का आइडिया था। पर कहते हैं पाटिल ने अपनी राजनैतिक सूझ-बूझ का इस्तेमाल करते हुए शरद पवार जैसे नेताओं को भी इस भोज में आमंत्रित कर दिया था, यह और बात है कि पवार ने अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए इस डिनर में शामिल होने से पहले ही मना कर दिया।

पाटिल को लेकर संघ के मन में क्या है?

बेहद विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह खबर मिली है कि सीआर पाटिल की उम्मीदवारी को लेकर स्वयं पीएम मोदी बेहद संजीदा हैं। सूत्रों का दावा है कि इस सिलसिले में संघ का मन जानने के लिए पीएम संघ के नंबर दो दत्तात्रेय होसाबोले से मिले थे और दत्तात्रेय के समक्ष उन्होंने अपने मन की भावनाओं को प्रकट करते हुए पाटिल को अगला भाजपाध्यक्ष बनाने के बारे में संघ की राय जाननी चाही थी। होसाबोले ने भी पाटिल की तारीफ करते हुए कहा कि ’वे भाजपा के एक सफल अध्यक्ष साबित हो सकते हैं, क्योंकि वे अच्छे संगठनकर्ता हैं, व्यवहार कुशल हैं और आम कार्यकर्ता भी उन्हें कभी भी आसानी से मिल सकता है।’ पर दत्तात्रेय होसाबोले की राय थी कि पाटिल की ताजपोशी के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना ही बेहतर रहेगा। क्योंकि अभी शीर्ष दो पदों पर वैसे नेता काबिज हैं जो गुजरात से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में भाजपाध्यक्ष भी एक ऐसे ही राज्य के नेता को बनाना उचित नहीं रहेगा, भले पाटिल का जन्म महाराष्ट्र में हुआ है, पर उनकी कर्मभूमि हमेशा से गुजरात रही है।’ सो, दत्तात्रेय की स्पष्ट राय थी कि ’कम से कम 2024 के आम चुनाव तक जेपी नड्डा को ही पार्टी अध्यक्ष लेकर चलना चाहिए, इसके बाद ही पार्टी शीर्ष पर कोई फेरबदल मुनासिब रहेगा।’ पर इस बारे में अंतिम फैसला तो भाजपा हाईकमान (मोदी-शाह) को ही लेना है।

बिहार में दिशाहीन कांग्रेस

राहुल गांधी के लिए बिहार आज भी सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा बना हुआ है। बिहार के कांग्रेस संगठन में व्यापक फेरबदल के बावजूद पार्टी का ग्राफ वहां अब भी उठ नहीं पा रहा। बिहार कांग्रेस के बड़े नेताओं की वफादारी अपने पार्टी हाईकमान से कहीं ज्यादा नीतीश या लालू के प्रति है। बिहार के कांग्रेस प्रभारी भक्त चरण दास जहां ‘नीतीश भक्त’ बताए जाते हैं, वहीं वहां के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह जाहिरा तौर पर लालू-तेजस्वी के ज्यादा प्यारे हैं। अभी गरीब दास के तौर पर बिहार यूथ कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिला है, उनकी निष्ठा भी लालू-तेजस्वी के साथ बताई जाती है। बिहार से पार्टी हाईकमान को लगातार यह शिकायतें मिल रही है कि संगठन में विभिन्न पदों के लिए बोली लग रही है। जिला अध्यक्ष, प्रखंड अध्यक्ष बनाने के नाम पर पैसे मांगे जा रहे हैं। राज्य में पार्टी को मजबूत करने के नाम पर एआईसीसी मेंबर से 25 हजार, पूर्व विधायकों से 60 हजार, विधायक से 1 लाख और मंत्रियों से 10 लाख रुपयों का डिमांड हो रही है, हाईकमान भी ऐसी खबरों पर हैरान-परेशान हैं, पर वहां से भी कोई एक्शन होता नहीं दिख रहा।

उम्मीदों की रौशनी से घिरे चिराग

इन दिनों चिराग पासवान के हौसले बम-बम है, जिस भाजपा ने नीतीश के संगत में आकर उन्हें बिसरा दिया था, आज नीतीश का साथ छूटने के बाद वही भाजपा उनकी चिरौरी कर रही है। भाजपा के नंबर दो भी इन दिनों यदा-कदा चिराग का हाल-चाल पूछ लिया करते हैं। सूत्रों की मानें तो जल्द ही चिराग के हाथ दिल्ली की कुर्सी लग सकती है। आने वाले दिनों में मोदी मंत्रिमंडल में एक बड़ा फेरबदल होने जा रहा है, सूत्रों की मानें तो चिराग से वादा हुआ है कि इस फेरबदल में उन्हें एक अहम मंत्रालय से नवाजा जाएगा। भाजपा की कोशिश है कि चिराग अपने चाचा से अपनी नाराज़गी थूक दें और पासवान परिवार फिर से एक हो जाए, ताकि बिहार में नीतीश के खिलाफ एक नयी अलख जगाई जा सके।

 

 

येचुरी की गुहार

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान माकपा महासचिव सीताराम येचुरी की गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक अनौपचारिक मुलाकात हुई। बातों ही बातों में येचुरी ने शाह के समक्ष अपना दर्द बयां करते हुए कहा-’आपने एक ऐसे व्यक्ति को राज्यसभा का सभापति बना दिया है जो सदन में विरोधी दल के नेता को बोलने ही नहीं देते। कई बार तो सदस्य की मूलभावनाएं भी आहत हो जाती हैं।’ इस पर शाह ने हंसते हुए कहा कि ’हमने सियासी अखाड़े में अपना हरियाणा का पहलवान उतारा है, जो बड़े-बड़े धुरंधरों को भी चित्त कर देगा। आपने बंगाल में तो इसका हश्र देखा ही है।’ इस पर येचुरी से कुछ कहते हुए नहीं बना।

 

 

 

 

क्यों मायूस हैं साध्वी?

साध्वी उमा भारती इन दिनों सियासी बियावां में बेतरह भटक रही हैं। साध्वी 2024 के आम चुनाव में अपने लिए एक पसंदीदा सीट की जुगाड़ में हैं, पर उनकी अपनी ही पार्टी वाले उन्हें मध्य प्रदेश में घुसने नहीं दे रहे। ले देकर उनके पास बुंदेलखंड का ही विकल्प बचता है। पर बुंदेलखंड की स्थानीय भगवा ब्रिगेड उमा को लेकर उतनी उत्साहित नहीं। सो पिछले दिनों अपना दर्द लेकर उमा भाजपा के दिग्गज नेता नितिन गडकरी से मिलीं। उमा से मुलाकात के बाद गडकरी ने उमा की दावेदारी को लेकर भाजपा हाईकमान से बात की और उनसे कहा कि ’यूपी से उमा जी को उतारने का बड़ा फायदा रहेगा, क्योंकि वहां साध्वी के सजातीय लोध वोटों की एक बड़ी तादाद हैं।’ इस पर गडकरी को हाईकमान से एक टका सा जवाब मिल गया कि ’यूपी में हमें वोट जातीय समीकरणों पर नहीं, अकेले नरेंद्र मोदी के चेहरे पर मिलते हैं, सो हमें 24 के चुनावों में जातीय कार्ड खेलने का कोई शौक नहीं।’ तो क्या साध्वी का राजनैतिक भविष्य अब भी अधर में लटका है?

 

नीतीश से नाराज़ उनके अपने ही विधायक

बिहार के छपरा जिले में शराब से 80 से ज्यादा मौतों ने खुद नीतीश की पार्टी जदयू में भी बवाल मचा दिया है। नीतीश की ’शराब नीति’ को लेकर उनके अपने विधायक भी उनसे नाराज़ चल रहे हैं। एक जदयू विधायक खम्म ठोक कर कहते हैं कि ’आज यदि बिहार में चुनाव हो जाएं तो जदयू के 10 विधायक भी जीत कर नहीं आ पाएंगे।’ नीतीश की शराब बंदी का असर उनकी सहयोगी पार्टी राजद के वोट बैंक पर भी दिखने लगा है, तेजस्वी चाहते थे कि जहरीली शराब से मरने वालों को राज्य सरकार की तरफ से मुआवजे का ऐलान हो, पर नीतीश अपनी ’ना’ पर कुंडली मारे बैठे रहे, इससे तेजस्वी भी बेबस महसूस कर रहे हैं। राज्य की महिलाओं का भी नीतीश से मोहभंग होने लगा है, इनका कहना है कि ’अगर गुजरात जैसे राज्य में शराब बंदी लागू है तो वहां बड़े पैमाने पर नशामुक्ति केंद्र भी बने हैं, जो कि बिहार में नहीं है।’ शराब बंदी से पहले के दौर में ठप्पा लगा दारू का पाउच यहां 50 रुपए में मिल जाता था, शराब बंदी के बाद इन पाउच की कीमत 200 रुपए पार कर गई। अब इस गरीब-बीमारू राज्य की जनता सस्ते दामों पर नकली पाउच खरीदने को विवश है।

 

और अंत में

एक खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन भारत में बड़े पैमाने पर अपना जासूसी नेटवर्क स्थापित कर रहा है। चीन को हिंदी भाषा की जानकारी रखने वाले वैसे नेपाली और तिब्बती नागरिकों की तलाश है जो भारत में रह कर उनके लिए खुफिया जानकारियां जुटा सके। पिछले दिनों जासूसी के आरोप में भारतीय एजेंसियों ने कई नेपाली नागरिकों की धर-पकड़ की है, इसके बाद ऐसी धारणाएं और भी मजबूत हुई हैं। भारतीय एजेंसियां भी देश के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत ‘नेपाल स्टडी सेंटर’ जैसी संस्थाओं पर कड़ी नज़र रख रही हैं।

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