क्या इस आपदा को अवसर में बदल पाएंगे राहुल?

त्रिदीब रमण 
त्रिदीब रमण 

जंग लगी जंजीरों में छटपटाती आजाद रूहें

इनकी पुकार अब तलक हर चौखट से लौट आई थी

पर क्या अब खुलेंगे वे बंद खिड़की दरवाजे

जो आतुर आस्थाओं की पोटली वैसे ही संभाले हुए हैं

जैसे हम-आपने सबने संभाल रखी है अपनी जुबानें’

सियासी उथल-पुथल के इस आलम में राहुल गांधी को अपनी संसद की सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ा है, पर यह राहुल और कांग्रेस दोनों के लिए एक बराबर की चुनौती है कि ’वे इस बड़ी सियासी आपदा को अपने लिए नए अवसर में तब्दील करने की कितनी कूवत रखते हैं।’ वैसे भी सियासत घात-प्रतिघात का एक अंतहीन सिलसिला है, विपक्ष ने इस मौके को लपकने की तेजी दिखाई है। ममता हो, केजरीवाल या फिर अखिलेश इनकी समवेत प्रतिध्वनियां इस बात की जुगाली करती हैं कि ’सत्तारूढ़ भाजपा के इस बड़े कदम ने संयुक्त विपक्ष को इकट्ठा होने का एक बहाना दे दिया है।’ इससे पहले जब ममता और अखिलेश मिले थे या फिर ममता नवीन पटनायक से मिलने ओडिशा गई थीं तो ये सारे उपक्रम तीसरे मोर्चे के चेहरे-मोहरे को नया रूप-रंग देने से जुड़ा था। इनकी कोशिश कांग्रेस को बाहर रख कर विपक्षी एका की धूनी रमाने की थी। पर नए बदले परिदृश्य में इन विपक्षी नेताओं को भी राहुल गांधी के समर्थन में आगे आना पड़ा है। कहते हैं इन विपक्षी नेताओं के साथ अपनी ताजा बातचीत में राहुल एंड कंपनी ने भी साफ कर दिया है कि ’जिन राज्यों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है वहां वह विपक्ष का झंडाबरदार बनेगी और जिन राज्यों में कांग्रेस गठबंधन सरकारों में शामिल है, वहां वह जूनियर पार्टनर बनने को भी तैयार है।’ अब कांग्रेस चाहती है कि ’भाजपा के जवाब में हर एक सीट पर संयुक्त विपक्ष का सिर्फ एक ही उम्मीदवार उतारा जाए तो भगवा पार्टी के समक्ष एक महती चुनौती उपस्थित कर सके। बाकी पीएम पद के लिए भी कांग्रेस का अपनी ओर से कोई दावा नहीं होगा, यह चुनाव के बाद विपक्षी पार्टियां आपसी रजामंदी से कोई एक नाम तय कर सकती हैं।’ कांग्रेस की इन बदली भंगिमाओं ने विपक्षी खेमे में एक नई आशा का संचार कर दिया है।

ऐसे गई राहुल की संसद सदस्यता

अगर सिर्फ कांग्रेस रणनीतिकारों की बात सुनें तो उनका पक्के तौर पर मानना है कि ’सिर्फ अदानी प्रकरण को प्रमुखता से उठाने की कीमत राहुल गांधी को चुकानी पड़ी है।’ कांग्रेस नेता इसके पीछे की क्रोनोलॉजी समझाने की कोशिश कर रहे हैं। इनका कहना है कि सूरत की सीजीएम कोर्ट में पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के 2019 में कर्नाटक के कोलार में दिए गए उनके भाषण के ’मोदी टिप्पणी’ को लेकर 16 अप्रैल 19 को स्थानीय सूरत कोर्ट में यह मामला दर्ज कराया था। जनवरी 2021 में सीजीएम एएम दवे की कोर्ट में राहुल गांधी अपना बयान दर्ज कराने के लिए पेश हुए। इसके बाद पूर्णेश ने सीजीएम दवे की कोर्ट में कहा कि ’राहुल के सामने उनकी यह तीन सीडी प्ले की जाए ताकि वे सुन सके कि उन्होंने आखिरकार कहा क्या था।’ पूर्णेश की इस मांग को जस्टिस दवे ने एक सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद पूर्णेश ने गुजरात हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग करते हुए कहा कि ’चूंकि सबूतों का अभाव है सो राहुल से व्यक्तिगत तौर पर अदालत में पेश होने को कहा जाए और तब तक किसी भी सुनवाई पर रोक लगा दी जाए।’ इस पर पूर्णेश को स्टे मिल गया। इसके एक साल बाद पूर्णेश पुनः हाई कोर्ट गए और कहा कि ’ट्रायल कोर्ट के रिकार्ड पर पर्याप्त सबूत है और चूंकि स्टे के कारण यह मामला लंबित है सो याचिका वापिस लेने की अनुमति दी जाए।’ तब तक सीजीएम दवे का यहां से ट्रांसफर हो गया था। इसके बाद 16 फरवरी 2023 को सूरत की ट्रायल कोर्ट में सुनवाई पर लगा स्टे हट गया और यहां के नए सीजीएम हरीश हसमुखभाई वर्मा ने राहुल गांधी को सजा सुना दी। बेहद भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि ’सूरत कोर्ट का फैसला आने के बाद लोकसभा स्पीकर के कमरे में पीएम मोदी, राजनाथ सिंह और किरण रिजिजू की दो घंटे तक एक अहम बैठक चली, इसके बाद लोकसभा स्पीकर ने राहुल की संसद सदस्यता रद्द करने का ऐलान कर दिया।’

मजे में है भाजपा

राहुल गांधी के मुद्दे पर जन मानस की आम प्रतिक्रियाओं को लेकर भाजपा किंचित भी चिंता में नहीं है। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि ’अभी आम चुनाव में एक साल से ज्यादा का वक्त बचा है और उनके पास मोदी जैसा ‘मैजिक मैन’ है जो जन भावनाओं को कभी भी पलट सकने का माद्दा रखते हैं।’ वैसे भी मोदी ने अपने पिटारे में कई ऐसे मुद्दे बचा रखे हैं जो खेल पलटने का दमखम रखते हैं। जैसे नए साल के शुरूआत में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन का मौका, जो आर्कियोलॉजिकल सर्वे लगातार चल रहे हैं उसमें से नए मंदिर निकलने की संभावनाएं लगातार बन रही हैं, सामान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर भी केंद्र सरकार कृतसंकल्प जान पड़ती है, अभी से देश में जी-20 का शोर मचा हुआ है जो मोदी को विश्व पटल पर एक बड़े वैश्विक लीडर के तौर पर स्थापित करने की बड़ी कवायद हो सकती है, रूस-यूक्रेन के जंग में मोदी शनैःशनैः अपने शांति दूत की भूमिका को और भी मजबूती देने में जुटे हैं। इसके अलावा भाजपा नेतृत्व को भरोसा है कि एक बिखरा विपक्ष भाजपा को सबसे ज्यादा मजबूती देने वाला है।

छत्तीसगढ़ में भाजपा

छत्तीसगढ़ के आगामी चुनाव को देखते हुए अभी से भाजपा यहां अपना बिखरा कुनबा एक करने के प्रयासों में जुट गई है। भाजपा की ओर से यहां सीएम फेस कौन होगा, इसको लेकर राज्य के पूर्व सीएम रमन सिंह ने एक तरह से सस्पेंस खत्म कर दिया है। अपनी स्वास्थ्यगत परेशानियों से जूझ रहे रमन सिंह ने पिछले दिनों इस बात को लेकर स्थितियां साफ कर दी है कि ’छत्तीसगढ़ का आने वाला विधानसभा चुनाव सिर्फ नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा और चुनाव के बाद ही पार्टी हाईकमान यहां का सीएम तय करेगा।’ सूत्रों की मानें तो इस बार यहां भाजपा हाईकमान रमन सिंह से अलहदा किसी नए चेहरे को मौका देने की सोच रहा है। इस रेस में सबसे पहला नाम नंद कुमार साय का आ रहा है, दूसरा नाम मोदी की पसंद के एक ब्यूरोक्रेट का है। वहीं भाजपा के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी खम्म ठोक कर अपना दावा पेश कर रहे हैं। पर अग्रवाल के नाम को लेकर एक समस्या है कि पूर्व में जब मोदी छत्तीसगढ़ के प्रभारी हुआ करते थे तो अग्रवाल तब उनसे भिड़ गए थे। दरअसल, तब अग्रवाल का दावा नेता प्रतिपक्ष बनने को लेकर सबसे बड़ा था, पर मोदी ने एक सटीक दांव चलते हुए तब राज्य के नेता प्रतिपक्ष के लिए नंद कुमार साय का नाम आगे कर दिया था।

क्यों आनंद से नहीं हैं शर्मा जी

कांग्रेस में जी-23 के एक अहम सदस्य आनंद शर्मा एक बिसरा दिए गए अध्याय में शामिल होते जा रहे हैं, सो अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखने के लिहाज से शर्मा जी पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलने पहुंचे। सूत्रों की मानें तो शर्मा जी ने अपने पार्टी अध्यक्ष को सूचित करते हुए बताया कि उनके पास पाकिस्तान के संयुक्त प्रेस क्लब की ओर एक आमंत्रण आया है, जिसके तहत उन्हें लाहौर और इस्लामाबाद जाकर ’अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के मुद्दे पर बोलना है, दुनिया भर के कई नेता इसके लिए पाकिस्तान पहुंच रहे हैं। शर्मा जी ने पार्टी के 5 अन्य नेताओं की एक लिस्ट भी तैयार कर रखी थी जिनको साथ लेकर वे पाकिस्तान जाना चाहते थे। सूत्रों की मानें तो आनंद शर्मा के इस प्रस्ताव पर खड़गे बेतरह भड़क गए, बोले-’आप पार्टी के इतने वरिष्ठ नेता हैं, आपको इतना तो समझना ही चाहिए कि पाकिस्तान जाकर आप कांग्रेस का नहीं बल्कि एक देश के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं और आपको बोलने के लिए जो टॉपिक दिया गया है इससे हमारे देश की ही आलोचना होनी है, सो मेहरबानी करके आप वहां न जाइए और न ही अपने साथ पार्टी के किसी अन्य नेता को ले जाने की सोचिए।’ अपना सा मुंह लेकर रह गए शर्मा जी।

पवार के तार कहां जुड़े हैं

राकांपा नेता शरद पवार विपक्षी एका का नया सिरमौर बनने की चाहे कितनी भी कवायद कर लें पर अब भी कहीं न कहीं सियासी खेल खेलते हुए वे अपने ही खेमे में गोल दाग रहे हैं। एक ऐसे राज्य हरियाणा की बात करें जहां पवार की पार्टी एनसीपी का शायद ही कोई वजूद हो, पर पिछले दिनों पवार ने करनाल के धीरज शर्मा को राष्ट्रीय युवा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया है साथ ही सोनिया दोहन को अखिल भारतीय छात्रसभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। इन दोनों के कहने पर 22 मार्च को शरद पवार करनाल में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंचे, जहां बमुश्किल 100 लोग भी नहीं जुट पाए। भले ही पवार राहुल व कांग्रेस की जितनी भी तारीफ कर लें, जब भी उन्हें मौका मिलता है वे कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने का ही काम करते हैं, जैसा कि इन दिनों वे हरियाणा में कर रहे हैं।

 

 

और अंत में

भाजपा के दिल्ली से एक युवा सांसद हैं जो अक्सर सियासत की उबड़-खाबड़ पिच पर बैटिंग करते घायल हो जाते हैं, यदा कदा हिट विकेट भी। भले ही वे पहली बार के सांसद हों पर नज़र उनकी केंद्रीय कैबिनेट पर थी। जब उनकी तमाम उम्मीदें धराशयी हो गई तो अब वे टीम बदलने की सोचने लगे हैं। आम आदमी पार्टी के ताजातरीन सांसद राघव चड्डा उनके पुराने मित्रों में शुमार होते हैं। सो, पिछले हफ्ते उनकी राघव चड्डा के साथ एक लंबी मीटिंग हुई, सुना तो यह भी जा रहा है कि राघव ने उन्हें अपने लीडर केजरीवाल से मिलवाने का वायदा किया है। इन दोनों की मीटिंग की खबर भाजपा नेतृत्व तक पहुंच चुकी है, देखना है किसकी ओर से पहला कदम उठता है।

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