क्या ट्रंप 2.0 के संभावित वैश्विक व्यापार युद्ध में WTO का अस्तित्व बच पाएगा?

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,7 अप्रैल।
2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी की संभावना ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। यदि ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं, तो क्या विश्व व्यापार संगठन (WTO) अपने अस्तित्व को बचा पाएगा? यह सवाल अब केवल सैद्धांतिक नहीं रह गया, बल्कि भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्रीय बिंदु बन चुका है।

डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल (2016-2020) में अमेरिका ने WTO के प्रति अपने रवैये में तीखी असहमति दिखाई थी। उन्होंने WTO को “अमेरिका विरोधी” और “पुराना ढांचा” कहकर खारिज किया, और चीन, यूरोपीय संघ, भारत समेत कई देशों पर टैरिफ लगा दिए। इसके साथ ही अमेरिका ने WTO के अपील अदालत (Appellate Body) को जजों की नियुक्ति से रोक दिया, जिससे वैश्विक व्यापार विवाद समाधान प्रणाली ठप पड़ गई।

अगर ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने, तो WTO को फिर से गंभीर संस्थागत संकट का सामना करना पड़ सकता है।

ट्रंप की “America First” नीति WTO के बहुपक्षीय ढांचे के बिल्कुल विपरीत है। WTO का मूल उद्देश्य नियम आधारित, निष्पक्ष और पारदर्शी व्यापार को बढ़ावा देना है, जबकि ट्रंप का नजरिया द्विपक्षीय सौदों और टैरिफ हथियारों पर केंद्रित रहा है।

इस बार ट्रंप ने संकेत दिया है कि वे 10% टैरिफ हर देश पर लगाने का विचार कर सकते हैं। यह कदम WTO के सिद्धांतों पर सीधा हमला होगा, और वैश्विक व्यापार युद्ध को और भड़का सकता है।

अगर अमेरिका WTO को कमजोर करता है, तो अन्य आर्थिक ताकतें — जैसे चीन, यूरोपीय संघ, भारत और ब्रिक्स देश — WTO को पुनर्जीवित करने या वैकल्पिक तंत्र खड़ा करने की कोशिश कर सकते हैं।

भारत पहले ही WTO में ई-कॉमर्स, कृषि सब्सिडी और बौद्धिक संपदा अधिकारों पर अमेरिकी नीतियों के विरोध में खड़ा रहा है। यूरोपीय संघ ने भी WTO Appellate Body को बचाने के लिए “Multi-Party Interim Appeal Arbitration Arrangement” (MPIA) जैसी पहल की है।

आज की वैश्विक परिस्थिति में WTO को सुधार और पुनर्गठन की आवश्यकता है। उसके नियम पुराने हो चुके हैं, तकनीक और ई-कॉमर्स जैसे नए व्यापार क्षेत्रों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी है।

यदि अमेरिका ट्रंप 2.0 में WTO को और कमजोर करता है, तो या तो WTO एक प्रतीकात्मक संस्था बनकर रह जाएगा, या अन्य देश मिलकर इसका नया रूप गढ़ सकते हैं — संभवतः अमेरिका के बिना।

WTO का अस्तित्व डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और वैश्विक प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा। यह एक नाजुक मोड़ है जहां बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था या तो टूट सकती है, या नए स्वरूप में निखर सकती है

अंतरराष्ट्रीय सहयोग, राजनीतिक इच्छाशक्ति, और विकासशील देशों की एकजुटता ही तय करेगी कि WTO भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका निभा पाएगा या नहीं।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.