
’मैंने तो समझा था कि एक वही है जो मेरे अक्स के सबसे करीब है
पर बेवफा आइने ने मेरी हर गुफ्तगू की चर्चा दीवारों से कर दी है’
सियासत के बारे कम से कम यह तो यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि ना यहां दोस्त ही हमेशा के लिए बनते हैं और न ही दुश्मनी सदा के लिए निभाई जाती है। शायद यही वजह थी कि शिवाजी पार्क की अपनी दशहरा रैली में जहां उद्धव ठाकरे 5 अक्टूबर को अपने जोशीले उद्बोधन में भाजपा को पानी-पी कर कोस रहे थे, तो नवरात्रि के मौके पर मुकेश अंबानी के घर उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे और महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की एक अहम मुलाकात हो चुकी थी, ऐसा विश्वस्त सूत्रों का दावा है। सूत्रों की मानें तो फड़णवीस लगातार इस कोशिश में जुटे हैं कि महाराष्ट्र में एक बार फिर से भाजपा और उद्धव की शिवसेना में समझौता हो जाए। कहते हैं इस नवरात्रि पार्टी का आयोजन नीता अंबानी ने किया था, चूंकि उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे नीता अंबानी की अभिन्न मित्रों में शुमार होती हैं, सो उन्हें पहले ही न्यौता भेजा जा चुका था। देवेंद्र फड़णवीस को इस आयोजन में आमंत्रित करते हुए अंबानी परिवार ने उन्हें बता दिया था कि ‘रश्मि भी आने वाली हैं।’ सूत्रों की मानें तो इस पर फड़णवीस ने कहा-’चलो अच्छा है।’ कहते हैं इसके बाद अंबानी के घर में फड़णवीस और रश्मि ठाकरे की यह मुलाकात कोई डेढ़ घंटे तक चली। सूत्रों के मुताबिक फड़णवीस ने रश्मि से कहा कि ’अगर आपकी शिवसेना सीएम पद की दावेदारी छोड़ दें तो हम फिर से साथ आ सकते हैं, इसका फायदा आपको बीएमसी चुनावों में भी मिल सकता है। फड़णवीस ने आगे यह भी कहा कि ’इस गठबंधन में आदित्य ठाकरे का पूरा सम्मान रखा जाएगा, पर हमें एक-दूसरे पर निजी हमलों से बचना चाहिए।’ रश्मि ने भोलेपन से पूछा कि ’आपकी इस योजना को क्या दिल्ली से ’हां’ मिली हुई है और अगर ऐसा होता है तो आप एकनाथ शिंदे का क्या करेंगे?’ फड़णवीस ने कहा कि ’शिंदे हमारी प्राब्लॉम हैं, उन्हें हम पर छोड़ दीजिए, उनके पास विधायक हैं, जो आपके पास नहीं हैं।’ रश्मि ने फड़णवीस को आश्वासन दिया है कि वे इस बारे में उद्धव से बात करेंगी। वादा भी फिर मिलने का हुआ है यानी नई संभावनाओं के द्वार खुल चके हैं।
नीतीश की कुर्मी राजनीति के ’रोड मैप’ को अखिलेश की ‘ना’
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2024 के आम चुनाव को किंचित बहुत गंभीरता से ले रहे हैं संभावना है कि 24 के चुनाव में नीतीश की जदयू बिहार की 17 लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ेगी, शेष सीटों में 17 सीटें राजद को तो बाकी बची 6 सीटें कांग्रेस और लेफ्ट के हिस्से आ सकती हैं चुनाव लड़ने के लिए। सो, नीतीश के बेहद मुंहलगे संजय झा ने उन्हें सलाह दी है कि ’जदयू को बिहार से बाहर की 15 कुर्मी बाहुल्य सीटों पर और चुनाव लड़ना चाहिए।’ ऐसी सबसे ज्यादा सीटें झा ने यूपी में चिन्हित कर रखी है, इसके अलावा नीतीश का इरादा मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा व गुजरात से भी जदयू उम्मीदवार उतारने का है। सूत्रों की मानें तो नीतीश के विशेष दूत के तौर पर संजय झा लखनऊ पहुंचे और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से आग्रह किया कि ’वे बस्ती, श्रावस्ती, सीतापुर, मिर्जापुर और बरेली जैसे कुर्मी बहुल जिलों नीतीश के लिए सभाएं रखें।’ अखिलेश ने ध्यानपूर्वक संजय झा की बातों को सुना और कहा-’सोचने का वक्त दीजिए, बताता हूं।’ जब काफी दिनों तक अखिलेश का फोन नहीं आया तो फिर नीतीश के कहने पर तेजस्वी ने अखिलेश को फोन लगाया और उनसे पूछा कि ’इस बारे में आखिर उनकी राय क्या है?’ अखिलेश पहले से भरे बैठे थे, छूटते ही बोले-’इस वक्त हमारी पार्टी में संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं सो, जनवरी से पहले ऐसा कुछ भी कर पाना संभव नहीं होगा। वैसे भी जब मेरी पार्टी बिहार में नहीं घुस रही है तो आप लोग यूपी में क्यों आना चाहते हैं?’ तेजस्वी ने अखिलेश के कहने का मर्म भांप लिया। इस बारे में ममता बनर्जी के भी कुछ ऐसे ही विचार थे। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने काफी टाल-मटोल के बाद कहा कि ’वे समझौते के तहत नीतीश जी के लिए अपनी एक सीट छोड़ सकते हैं।’ मध्य प्रदेश का रीवां भी एक कुर्मी बाहुल्य सीट है, जहां से 1996 में बसपा के एक कुर्मी नेता बुद्दसेन पटेल पहली बार चुनाव जीत कर आए। पर नीतीश के हाथ से यूपी फिसल रहा है जहां बिहार के बाद सबसे ज्यादा कोई 9 प्रतिशत कुर्मी आबादी है। संजय झा को भी उम्मीद है कि वे आज न कल अखिलेश को इसके लिए मना ही लेंगे।
केसीआर फैमिली में तनाव, गाज पीके पर
भले ही तेलांगना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की सियासी महत्वाकांक्षाएं राष्ट्रीय फलक पर कुलांचे भर रही हों पर उनके घर में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा। उनके बेटे केटीआर और बेटी कविता के दरम्यान की तल्खियां अब सार्वजनिक तौर पर भी दिखने लगी हैं। पिछले दिनों जब केसीआर ने अपनी क्षेत्रीय पार्टी ‘टीआरएस’ का नाम बदल कर ‘बीआरएस’ कर दिया और अपने मंसूबे भी साफ कर दिए कि अब उनकी निगाहें नेशनल पॉलिटिक्स पर हैं, तो उस पूरे समारोह से उनकी दुलारी बेटी के. कविता नदारद थीं, तेलांगना के मोनोगोड़े विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार और प्रबंधन के लिए बनी 87 इंचार्ज नेताओं की टीम में भी कविता को जगह नहीं मिली है। स्वयं केटीआर इसका दोश चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के मत्थे मढ़ रहे हैं, उनका दावा है कि पीके हैदराबाद में आकर उनकी बहन कविता और उनके चचेरे भाई हरीश राव से मिले थे, केटीआर को शक है कि पीके ने उनकी बहन और भाई के कान भर दिए कि पार्टी में उन्हें ‘साइडलाइन’ किया जा रहा है। इसके बाद से ही कविता का विद्रोह आकार लेने लगा है। वैसे भी जब दिल्ली के शराब घोटाले में भाजपा के एक सांसद ने कविता का नाम घसीटा तो पार्टी उनके बचाव में सामने नहीं आई। केटीआर ने भी पीके से अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए उनकी कंपनी ‘आईपैक’ के एक साथ इस कांट्रेक्ट को रिन्यू नहीं किया है, यह कांट्रेक्ट पिछले दिनों ही समाप्त हुआ है, वादे के अनुसार इसे अगले तीन साल के लिए रिन्यू होना था।
फिर भी कांग्रेस सुधरती नहीं
कांग्रेस के पार्टी संविधान को धत्ता बताते हुए आनन-फानन में उत्तर प्रदेश कांग्रेस को एक नया अध्यक्ष दे दिया गया है, वे हैं बृजलाल खाबरी, प्रियंका करीबी संदीप सिंह की अपरंपार महिमा की वजह से ऐसा संभव हो पाया है। जबकि कांग्रेस में इस वक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और घोषित मानकों के अनुसार जब भी संगठन का कोई ऐसा महत्वपूर्ण चुनाव चल रहा होता है, इसके अधबीच नई नियुक्तियों की परंपरा नहीं है। वैसे भी खाबरी की नियुक्ति को लेकर यूपी कांग्रेस में कोई नए उत्साह का संचार नहीं हुआ है, इसके विपरीत उन्हें प्रदेश की कमान दिए जाने से पार्टी कैडर में व्यापक रोश देखा जा सकता है। खाबरी पिछले दो चुनावों में लगातार अपनी जमानत जब्त करा चुके हैं, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में महरौनी सीट पर इन्हें मात्र 4 हजार 344 वोट आए थे। खाबरी कांग्रेस में आने से पूर्व बसपा के जोनल कोऑर्डिनेटर भी रह चुके हैं, जब ये बसपा में थे तो भू-माफिया से सांठगांठ के आरोप में मायावती ने इन्हें पार्टी से निकाल दिया था, इसके बाद ही इन्होंने कांग्रेस का दामन थामा था।
चुनाव लड़ेंगे सतपाल मलिक
अपने बागी तेवरों से भगवा खेमे को लाल-पीला करने वाले मेघालय के पूर्व गवर्नर सतपाल मलिक यूपी के मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में अभी से जुट गए हैं। मलिक ने पहले ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे कि ’राज्यपाल पद से सेवा निवृत्ति के बाद वे किसानों के हक की लड़ाई लड़ेंगे।’ सूत्रों की मानें तो इस बारे में मलिक की अखिलेश यादव और जयंत चौधरी से भी बात हो चुकी है कि वे सपा और रालोद के समर्थन से बतौर निर्दलीय मुजफ्फरनगर सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। जबकि वे सार्वजनिक रूप से यह बयान दे रहे हैं कि ’किसी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर उनकी चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं है।’ वहीं भाजपा से जुड़े सूत्रों का दावा है कि भगवा पार्टी की सरकार भी उन्हें इतनी आसानी से छोड़ने वाली नहीं, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते उनके तीन-चार मामलों को सरकार ने खंगाला है, अब वे संवैधानिक पद से हट गए हैं तो अगले साल तक ये मामले खुल सकते हैं।
गहलोत से सोनिया ने क्या कहा?
जब राजस्थान का ड्रामा अपने पूरे शबाब पर था तब अशोक गहलोत केसी वेणुगोपाल को साथ लेकर सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे थे। सोनिया इस मुलाकात के लिए जब कमरे में आईं तो उन्होंने इशारों में वेणुगोपाल को कमरे से बाहर जाने को कहा, फिर उन्होंने गहलोत से दो टूक बात की। सूत्रों की मानें तो उस मौके पर भावुक हो गईं सोनिया ने गहलोत से कहा-’मैंने सिर्फ दो लोगों पर हमेशा आंख मूंद कर भरोसा किया, एक थे अहमद पटेल, दूसरे हैं आप। पर आपने तो मेरे भरोसे से दगा किया है, आपने तो गांधी परिवार को अपमानित करने का भी कार्य किया है।’ गहलोत ने सफाई पेश करते हुए कहा-’मैडम, गलती आपके लोगों ने की है, अजय माकन बेहद जल्दबाजी में थे। मैं तो अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से पहले ही सीएम पद छोड़ने को तैयार था, पर आपके लोगों ने विधायकों पर पहले से दबाव बनाना शुरू कर दिया कि उन्हें अपना नया नेता अभी चुनना है या कम से कम अपनी भावनाओं से हाईकमान को अवगत कराना है, मैंने कोशिश की कि माकन और खड़गे जी से मिल कर उन्हें समझा पाऊं, पर उन दोनों ने तो मुझसे मिलना भी जरूरी नहीं समझा। जबकि अजय माकन ने उस दिन कम से कम दस बार सचिन पायलट से बात की। तो क्या मैं अपना बचाव भी नहीं करता?’ इस पर सोनिया ने कहा कि ’राजस्थान में कांग्रेस को ‘फेस सेविंग’ करनी होगी, ‘डैमेज कंट्रोल’ भी करना होगा।’ सो, दोनों नेताओं के बीच तय हुआ है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद दिल्ली से राजस्थान केंद्रीय पर्यवेक्षक भेजे जाएंगे जो 5-5 के ग्रुप में वहां के विधायकों से बात करेंगे, उनका मन टटोलेंगे तब ही नए नेतृत्व के बारे में कोई फैसला होगा।
…और अंत में
देवेंद्र फड़णीस इन दिनों राज्य में घूम-घूम कर भाजपा का द्वार अन्य दलों के नेताओं के लिए खोल रहे हैं। सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों भंडारा में उनकी मुलाकात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नाना पटोले से हुई। कहते हैं इसके बाद फड़णवीस कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और कांग्रेसी नेता विजय वडेट्टीवार से भी मिले। शायद इन नेताओं को यह भी आश्वासन मिला है कि अगर एक बार इन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया तो इनके पुराने मामले भी खुद ब खुद रफा-दफा हो जाएंगे। महाराष्ट्र में ‘आपरेशन लोट्स’ चालू आहे।
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