अपने नारों से ही कांग्रेस चारों खाने चित्त!

जिया मंजरी
जिया मंजरी

जिया मंजरी

प्रियंका गाँधी इण्डियन नेशनल कांग्रेस की शीर्ष नेत्री जब ये बात कहती हैँ  “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ”  तब मुझे  कांग्रेस के दोहरे चरित्र की याद बखूबी आजाती है जब तीन तलाक़ और हलाला जैसे महिला विरोधी विषय पर कानून का प्रस्ताव लोकसभा में रखा गया तब कांग्रेस मुस्लिम लॉ बोर्ड के साथ सुर में सुर मिला रही थी, और बिल का विरोध करने के लिए यहाँ तक धार्मिक मान्यताओं से छेड़ छाड़ तक का आरोप लगा पूरे दम ख़म से बेटियों को उनके हक़ से मेहरूम रख उनसे उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने का हक़ भी छीनना चाहती थी इस प्रकार कांग्रेस की महिला विरोधी विचारधारा से हम सभी भलीभांति परिचित हैँ l

वही प्रियंका गाँधी ने जब “लड़की हूँ  लड़ सकती हूँ” नामक महिला वोटर को आकर्षित करने वाला यह कैम्पेन लांच किया तो उन्होंने सोचा नहीं होगा कि उन्हें इसी कैम्पेन के चलते उसी लड़की से ही लड़ना पड़ेगा जो कैम्पन का मुख्य चेहरा बनाई गई, और उनका उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का सपना आरोप-प्रत्यारोप में बदल जाएगा। दरअसल इस कैम्पेन की लाँचिंग में जिस लड़की के चेहरे का प्रयोग किया गया उसने प्रियंका सहित पूरी कांग्रेस पार्टी और उसकी महिलाओं के प्रति सोच को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता डॉ. प्रियंका मौर्या; जो इस कैम्पेन की पोस्टर गर्ल भी हैं, ने यह दावा दिया है कि प्रियंका गाँधी के सचिव संदीप सिंह (जेएनयू वाले) ने उनसे पार्टी टिकट के बदले घूस की मांग की। कांग्रेस को महिला और ओबीसी विरोधी बताते हुये डॉ. प्रियंका मौर्या ने कहा, ‘बात की गई कि लड़की हूँ लड़ सकती हूँ। हमें मेहनत करने और आगे बढ़ने के लिए कहा गया। हमने बहुत मेहनत भी की। जब टिकट देने की बारी आई तो ये पार्टी महिला और ओबीसी विरोधी पार्टी निकली। सरोजनीनगर से टिकट रूद्रदमन सिंह को देना तय कर लिया गया तब हमें लगा कि ये गलत हुआ है। कैम्पेन के पोस्टर में मेरा चेहरा आगे करना सिर्फ एक लॉलीपॉप जैसा है। मेरे चेहरे का इस्तेमाल कांग्रेस ने ओबीसी समाज और महिलाओं को लुभाने के लिए किया। जब पहले से ही टिकट किसी और को देना तय था तब स्क्रीनिंग का ड्रामा क्यों किया गया?’ डॉ. प्रियंका मौर्या ने कैम्पेन की आड़ में हो रही मैराथन पर भी सवाल उठाया कि हम पर अधिक संख्या में लड़कियों को लाने का दबाव बनाया गया और हम लाये भी लेकिन उन लड़कियों को 5 किलोमीटर दौड़ाने के बाद भी किसी ने रिफ्रेशमेंट के लिये नहीं पूछा।

डॉ. प्रियंका मौर्या के आरोप गंभीर हैं और कांग्रेस के साथ ही प्रियंका गाँधी की साख पर बट्टा लगाने के लिए काफी हैं। प्रियंका गाँधी के निजी सचिव संदीप सिंह पर भी आरोप गंभीर हैं। ये वही संदीप सिंह हैं जिनका नाम कोरोना की दूसरी लहर में यूपी में हुए बस विवाद में सामने आया था। वामपंथ से प्रभावित संदीप सिंह का प्रियंका गाँधी पर बड़ा प्रभाव है। वैसे भी कांग्रेस और वामपंथ एक से दिखते हैं। खासकर जब से ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के चेहरों को राहुल गाँधी ने आगे बढ़ाया है तभी से यह समझ आने लगा है कि अब यह एक नई कांग्रेस है जहाँ महिलाओं का सम्मान दूर की कौड़ी है। जैसे वामपंथ में भी महिला विरोध खुल कर चलता है, कांग्रेस में भी यह दिखने लगा है। कांग्रेस के महिला उत्थान के नारे खोखले हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो उत्तर प्रदेश में रीता बहुगुणा जोशी से लेकर अदिति सिंह तक प्रखर महिला नेतृत्व पार्टी से किनारा नहीं करता। यह आश्चर्यजनक है कि एक महिला सोनिया गाँधी के होते हुए भी पार्टी पर हमेशा महिला विरोध का ठप्पा लगता रहा है। अधिक दूर क्यों जाना, राहुल गाँधी के राजनीतिक रूप से सक्रिय होने के कारण प्रियंका गाँधी को पार्टी की कमान न मिलना इस बात को पुष्ट करता है कि कांग्रेस की महिलाओं के प्रति कथनी और करनी में अंतर होता है। क्या वर्तमान कांग्रेस में कोई कल्पना कर सकता है कि कोई महिला नेत्री स्व. सुषमा स्वराज जैसा कद और सम्मान हासिल कर सके? संभवतः नहीं।

हाल ही में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश चुनाव हेतु जो 125 उमीदवारों की घोषणा की है उसमें 40 महिलाओं को टिकट अवश्य दिये गए हैं किन्तु यह कवायद उन्हें राजनीतिक रूप से सक्षम करने से अधिक प्रतीकात्मक दिखती है क्योंकि जिन महिलाओं को टिकट दिए गए हैं उनमें से कई मोदी विरोध में झंडा बुलंद करती रही हैं किन्तु उनका इतना बड़ा राजनीतिक कद नहीं है कि वे पहली ही बार में विधायक बन सकें। ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ’ विशुद्ध राजनीतिक नारा है जिससे कांग्रेस राज्य में अपनी खोई जमीन प्राप्त करना चाहती है पर इसमें अभी बहुत पेंच हैं। स्वयं प्रियंका गाँधी की कार्यशैली इसकी गवाही देती है। हाथरस सहित उन्नाव के मामलों में प्रियंका गाँधी गजब की तत्परता दिखाती हैं वहीं कांग्रेसनीत राजस्थान के अलवर में एक बच्ची के साथ हुई अमानवीयता पर उनकी चुप्पी उनके स्वयं के हालात बयान कर देती है। मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस उनके उक्त नारे को घर-घर तक पहुंचाने की बात करती है वहीं छत्तीसगढ़ में महिला अपराधों पर पूरी महिला विंग को सांप सूंघ जाता है। यदि प्रियंका गाँधी सच में राजनीतिक रूप से महिलाओं को सक्षम और बराबरी देने का मन रखती हैं और उनके प्रयास ईमानदार हैं तो उन्हें स्वयं पहले कांग्रेस पार्टी की कमान अपने हाथ में लेनी चाहिये। तभी महिलाओं में कांग्रेस के प्रति सम्मान आएगा और ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ’ नारे की प्रासंगिकता बनेगी अन्यथा तो जब प्रियंका गाँधी स्वयं अपनों से लड़ रही हैं और हारी हुई लड़ाई लड़ती रहेंगी तो महिलाओं को उनका हक कैसे दिलाएंगी?

जिया मंजरी (स्वतंत्र स्तंभकार/टिप्पणीकार , रेडियो/टीवी पैनलिस्ट,राजनीति विश्लेषक,IT प्रोफेशनल एवं समाज सेवी)

(*राष्ट्र धर्म और सनातन हिंदू संस्कृति के लिए समर्पित, अनेक संगठनों से जुड़ाव।
संवैधानिक समानता,गौ-रक्षा व सेवा,हिन्दू महिलाओं को लव जिहाद जैसे षड्यंत्रों से बचाव और जागरूकता अभियान के लिए प्रतिबद्ध।
सनातन हिंदू संस्कृति के आधुनिक गुरुकुल स्थापित करने के लिए प्रयासरत l भारत व विश्व के मंदिरों का संरक्षण और सुरक्षा के साथ मंदिर सम्पत्ति की सुरक्षा और नव जनजागरण के लिए कार्यरत।)

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