जिया मंजरी
मेरी एक मित्र का फोन आया तो बात करते-करते वह रोने लगी। मैंने कारण पूछा तो उसने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व वह एक लड़के के साथ प्रेम-संबंध में थी और दोनों शादी करने वाले थे किन्तु परिस्थितिवश दोनों की शादी टूट गई। लड़के को शादी टूटना नागवार गुजरा और उसने मित्र को परेशान करना शुरू कर दिया। जब मेरी मित्र ने परिवारजनों को अपनी समस्या से अवगत करवाया तो उन्होंने उस लड़के से बात की और मामला वहीं थम गया। अभी कुछ रोज पहले उसी लड़के का मैसेज आया तो उसने पुरानी बातचीत के स्क्रीनशॉट भेजकर ब्लैकमेल करने का प्रयास किया। यही नहीं, उसने कई आपत्तिजनक मोर्फ फोटो सार्वजनिक करने की धमकी भी दी। मेरी मित्र काफी डरी हुई थी। मैंने उससे पुलिस के पास जाने को कहा तो उसने परिवार की इज्जत का हवाला देते हुए मना कर दिया। काफी देर तक समझाने के बाद अंततः वह पुलिस के पास जाने को तैयार हुई और मामले में जांच चल रही है। ऐसे न जाने कितने मामले हमारे सामने रोज आते हैं और लड़कियां डर के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाती हैं।
ऐसे प्रकरणों को सायबर बुलिंग कहा जाता है। हाल ही में मशहूर अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा अश्लील फिल्म बनाने के मामले में पकड़े गए हैं किन्तु इस मामले में जितनी लानत राज कुंद्रा के हिस्से में आना चाहिए थी वह शिल्पा शेट्टी को भी सोशल मीडिया के माध्यम से मिल रही है। हालांकि इस मामलें में शिल्पा शेट्टी का भी नाम शामिल हुआ था लेकिन शिल्पा ने खुद को इस मामलें से दर किनार कर लिया है। उनका कहना है कि उनका इस मामलें से कोई लेना देना नही है। हर कोई शिल्पा शेट्टी के पति की गलत हरकत को शिल्पा से जोड़कर सायबर बुलिंग कर रहा है। इससे पूर्व भी ऐसे लाखों प्रकरण हमारे सामने आये हैं तो क्या यह मान लिया जाए कि अब सोशल मीडिया महिलाओं के लिए खतरनाक जगह बन चुका है जहाँ उनके शील, मान, मर्यादा से खिलवाड़ होता है? महिलाओं के साथ हो रहे इन अपराधों को देखकर तो ऐसा ही लगता है।
जहां एक तरफ तो सरकार महिलाओं की सूरक्षा और महिला सशक्तिकरण को लेकर तमाम दावे करती है लेकिन सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम बना हुआ है जहां महिलाओं को तमाम अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। यहां महिलाओं को कमेंट और कम्प्लिमेंट के नाम पर बहुत सी अभद्र भाषाओं को सूनना पड़ता है जो मात्र महिलाएं ही नहीं देश विदेशों में भी तेजी से फैलता है और वे मानसिक प्रताडनाओं का शिकार होती है। ऐसे में सरकार को सोशल मीडिया पर हो रहे है ऐसे अपराधों पर नियंत्रण के लिए ऐसे काूनन औऱ नीति बनाने की जरूरत है जिससे ऐसे कृत्य करने वालों के मन में कानून का ख़ौफ पैदा हो और वे महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी भी करने से पहले बार- बार सोचे।
एक समय सोशल मीडिया के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होता था किन्तु आज सोशल मीडिया का दायरा बढ़ते-बढ़ते जीवनशैली तय करने लगा है। फिर जैसे-जैसे इसका उपयोग बढ़ने लगा है इससे जुड़े अपराधों में भी इजाफा हुआ है। खासकर महिलाओं के प्रति ऑनलाइन यौन हिंसा, उनके चरित्र को मलिन करना, गाली-गलोच जैसी प्रवृति आम हो चली है। एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के प्रति जिस प्रकार रोजमर्रा के जीवन में हिंसा और गाली-गलौज होती है, उसी तर्ज पर ऑनलाइन हिंसा भी होती है। ऑनलाइन एब्यूज पर हुए एक सर्वे के अनुसार महिलाओं को सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा एब्यूज करने वालेउनके अपने नजदीकी होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों में भी ज्यादातर अभियुक्त परिचित या रिश्तेदार ही होते हैं।ऐसा माना जाता है कि यदि कोई महिला मुखर होकर सोशल मीडिया पर अपनी बात व्यक्त करती है तो उसे गाली-गलोच व अश्लील मैसेज का सामना करना पड़ता है। हमारे देश में मशहूर हस्तियों से लेकर आम महिलाओं की यह पीड़ा है कि उन्हें कभी न कभी किसी मुद्दे को लेकर बुलिंग का शिकार बनाया गया। फिर मामला यदि दो लोगों के बीच का हो जैसा मेरी मित्र के साथ हुआ, ऐसे में पुरुष अपनी सारी कुंठा महिला को चारित्रिक रूप से बदनाम करने में लगा देता है। चूँकि सोशल मीडिया पर अधिकांशतः सभी एक-दूसरे से बिना पूर्व जान-पहचान के मित्रता करते हैं और यदि यह मित्रता बढ़ते-बढ़ते प्रेम में बदल जाए तथा बाद में बिगड़ जाए तो ऐसे मामलों में महिला के साथ मानसिक व सामाजिक अत्याचार की सारी सीमाएं लांघ दी जाती हैं। कभी उसकी बातों को लेकर उसे निशाना बनाया जाता है तो कभी उसकी तस्वीरों को लेकर। ऑनलाइन गालियों के मामले में भी महिलाएं और उनकी देह ही निशाना होती है।
चूँकि ऐसे अधिकाँश मामलों में महिलाएं सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक व राजनीतिक डर के कारण सामने नहीं आतीं तो समाज को पता ही नहीं चलता। फिर यदि कोई महिला हिम्मत करके इस प्रकार के मामलों को सामने आये या कानूनी सहायता की मांग करे तो भी उसे निराशा ही हाथ लगती है। दरअसल, अभी ऐसे मामले आईपीसी की धाराओं के अंतर्गत आते हैं जिसमें मामला भी लम्बा खिंचता है और कई बार न्याय भी नहीं मिलता। यदि महिला और बाल विकास मंत्रालय के प्रस्ताव; महिलाओं के अश्लील चित्रण से संबंधित 1986 के कानून को संशोधित करना, जिसमें सोशल मीडिया और सब्सक्रिप्शन के जरिए इंटरनेट पर देखी जाने वाली सामग्री को भी शामिल किया जाना है; को लागू किया जाता है तो कानून के पास महिलाओं के खिलाफ होने वाले ऑनलाइन उत्पीड़न को रोकने का एक बड़ा हथियार होगा। अभी ऐसे मामलों की जद में आई महिलाएं या तो सोशल मीडिया छोड़ देती हैं या अधिक बदनामी के डर से आत्महत्या कर लेती हैं। दोनों ही सूरतें समानता के अधिकार के खिलाफ हैं।सायबर बुलिंग को हथियार बनाकर अपनी कुंठा निकालने वाले पुरुषों को भी यह समझना होगा कि महिला केन्द्रित गाली देने, अश्लील मैसेज करने तथा देह पर फब्तियां कसने से ही मर्दानगी का प्रदर्शन नहीं होता। स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों का सम्मान होना ही चाहिए। दिक्कत तब पैदा होती है जब पुरुषों का एक वर्ग महिलाओं को नीचा दिखाने के लिए ऐसा कृत्य करता है। ऑनलाइन अत्याचार को अपनी जीत मान लेने वाले उसी वर्ग को यह सोचना चाहिये कि उनके घर की महिलाएं जो सोशल मीडिया पर हैं, को भी ऐसी शर्मिंदगी से गुजरना पड़ता है। ऐसे मामले संस्कारों की कमी का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। महिलाएं भी सोशल मीडिया को अपना जीवन न मानते हुए सोच-समझकर मित्रता करें व अपनी निजता अपने तक ही रखेंक्योंकि संस्कारहीन चरित्र बदलते देर नहीं लगती।
जिया मंजरी (ब्रांड एम्बेसडर, बेटी फाउंडेशन)
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