श्रीनगर/नई दिल्ली — जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस कायराना हमले में 26 निर्दोष लोग मारे गए, और सबसे दिल दहला देने वाली बात यह है कि सभी मृतक पुरुष थे — कोई पिता था, कोई बेटा, कोई घर का इकलौता कमाने वाला।
घटनास्थल पर जो हुआ, वह आतंक की वहशी साजिश का सबसे वीभत्स चेहरा था — निर्दोषों की बस को निशाना बनाया गया, और गोलियों की बौछार ने उन सपनों को लहूलुहान कर दिया, जो कभी दिल्ली, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और झारखंड से चलकर कश्मीर की वादियों में जीवन का एक टुकड़ा कमाने आए थे।
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रामबाबू यादव – सिवान, बिहार
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अजीत सिंह – प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
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सुरजीत मंडल – जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल
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मनोज ठाकुर – छतरपुर, मध्य प्रदेश
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राजू कुमार – गया, बिहार
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नीरज सिंह – बलिया, उत्तर प्रदेश
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शंकर राम – पलामू, झारखंड
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प्रमोद दास – दरभंगा, बिहार
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दीपक मिश्रा – झांसी, उत्तर प्रदेश
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रवि वर्मा – नागौर, राजस्थान
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किशन राठौड़ – जोधपुर, राजस्थान
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संतोष यादव – चंदौली, उत्तर प्रदेश
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हरीश शर्मा – मथुरा, उत्तर प्रदेश
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इरफान अली – सहरसा, बिहार
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ललन कुमार – समस्तीपुर, बिहार
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शिवपाल चौधरी – बहराइच, उत्तर प्रदेश
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बाबूलाल चौधरी – कोटा, राजस्थान
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नासिर हुसैन – झारखंड
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अशोक मेहता – रीवा, मध्य प्रदेश
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गोविंद निषाद – छत्तीसगढ़
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दिलीप पांडे – वाराणसी, उत्तर प्रदेश
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फकीरचंद साहू – बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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रमेश सुतार – सूरत, गुजरात
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राजेश साह – मुजफ्फरपुर, बिहार
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विजय पाल – बागपत, उत्तर प्रदेश
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फैयाज अहमद – बारामुला, जम्मू-कश्मीर
इन 26 नामों के साथ सिर्फ 26 शरीर नहीं गए — 26 परिवारों की उम्मीदें, बच्चों की स्कूल फीस, माताओं की आंखों का चैन, पत्नियों की मुस्कान, सब उजड़ गया।
यह हमला न सिर्फ आंतरिक सुरक्षा की असफलता की ओर इशारा करता है, बल्कि आतंक के खिलाफ एक निर्णायक और कठोर नीति की मांग करता है।
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कब तक निर्दोष मजदूर, पर्यटक और आम नागरिक गोलियों का शिकार बनते रहेंगे?
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कब तक जवानों की शहादत और आम जनता की लाशें सिर्फ आंकड़ों में सिमट जाएंगी?
केंद्र सरकार ने इस हमले की कड़ी निंदा की है और दोषियों को “जमीन के आखिरी छोर तक खदेड़ने” की बात कही है। प्रधानमंत्री ने उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है और ऑपरेशन “क्लीन स्कैन” की तैयारी की खबरें हैं।
लेकिन सवाल यही है — क्या यह सब काफी है?
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