“पानी नहीं अब पलटवार!” — भारत ने औपचारिक रूप से तोड़ा सिंधु जल समझौता, पाकिस्तान को भेजा कड़ा संदेश

नई दिल्ली, 25 अप्रैल — भारत ने सिंधु जल संधि को लेकर इतिहास बदल दिया है। 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ यह समझौता, जो भारत-पाक रिश्तों की एकमात्र “अविनाशी डोर” माना जाता था, अब आधिकारिक रूप से निलंबित कर दिया गया है।

सरकार की ओर से जल शक्ति सचिव देबाश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तज़ा को एक तीखे लहजे वाला पत्र भेजकर इस निर्णायक फैसले की सूचना दी।

भारत ने संधि को निलंबित करने की ठोस वजहें गिनाईं:

  • पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को खुला समर्थन

  • बढ़ती सुरक्षा चिंताएं

  • भारत की उभरती ऊर्जा आवश्यकताएं

  • जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन के नए परिदृश्य

पत्र में साफ लिखा गया:

“पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति ने भारत को अपने वैध अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने से रोका है। समझौते की भावना और शब्द दोनों का उल्लंघन किया गया है।”

भारत ने पहले भी सिंधु संधि के अनुच्छेद XII(3) के तहत संशोधन की मांग की थी, पर पाकिस्तान ने किसी भी संवाद से इन्कार किया। जब आतंकवाद के खून से नदियां लाल हो रही हों, तब पानी की साझेदारी कैसी?

यह केवल एक जल संधि का निलंबन नहीं है, यह एक रणनीतिक पलटवार है — भारत का संदेश अब बिल्कुल साफ है:

“कूटनीति वह तब तक ही चलेगी जब तक उसमें आपसी सम्मान और जवाबदेही हो।”

  • 1960 में हस्ताक्षरित, यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 6 नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलज और ब्यास) के जल बंटवारे का मार्गदर्शक था।

  • तीन पश्चिमी नदियों का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया, जबकि भारत को पूर्वी नदियों का।

  • समझौते को कभी भारत-पाक संबंधों की “पवित्र रेखा” कहा गया।

अब इस रेखा पर भारत ने निर्णायक लकीर खींच दी है।

इस कदम से जहां इस्लामाबाद में खलबली मच गई है, वहीं भारत में इसे “साहसी और समयोचित कदम” माना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम दक्षिण एशिया की कूटनीति को नई दिशा दे सकता है।

  • पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों का सहारा ले सकता है

  • भारत आंतरिक सिंचाई और ऊर्जा परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ा सकता है

  • क्षेत्रीय तनाव और अधिक बढ़ने की संभावना

“पानी की हर बूंद अब राष्ट्रहित में होगी। और जो देश हमारे सैनिकों पर गोली चलाएगा, उसे अब हमारी नदियां नहीं बहेंगी!”

यह केवल नीतिगत निर्णय नहीं — यह भारत की आत्मनिर्भरता, सुरक्षा और संप्रभुता का उद्घोष है।

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