समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,2 अक्टूबर। आज के दौर में जंग सिर्फ बंदूकों और बमों से नहीं लड़ी जाती, बल्कि इसका दायरा बहुत बढ़ चुका है। युद्ध अब केवल सीमाओं और ज़मीन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका विस्तार मनोवैज्ञानिक मोर्चे तक हो गया है। दुश्मन का मनोबल तोड़ने और जनता के विचारों को प्रभावित करने के लिए प्रोपेगेंडा का सहारा लिया जा रहा है। यह एक नई किस्म की लड़ाई है, जिसमें हथियारों से अधिक शब्द, चित्र, और सूचनाएँ इस्तेमाल होती हैं।
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