समग्र समाचार सेवा
प्रयागराज, 29 जनवरी। मौनी अमावस्या के अवसर पर सोमवार (29 जनवरी) को संगम तट पर दूसरा शाही स्नान चल रहा था, जब देर रात करीब एक बजे भगदड़ मच गई। इस हादसे में एक दर्जन से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि कई अन्य घायल हो गए।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, संगम तट पर स्नान के लिए उमड़ी भारी भीड़ के बीच अचानक अफरा-तफरी मच गई। हादसे के बाद की तस्वीरें विचलित कर देने वाली थीं—घटनास्थल पर श्रद्धालुओं के कपड़े, बैग, जूते-चप्पल बिखरे पड़े थे, वहीं अस्पतालों में कई शव फर्श पर नजर आए।
यह हादसा 1954 में हुए महाकुंभ की त्रासदी की याद दिलाता है, जिसमें 800 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। 3 फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में हुए इस हादसे को भारतीय इतिहास की सबसे भीषण भगदड़ों में से एक माना जाता है।
बताया जाता है कि 1954 की दुर्घटना के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी संगम तट पर मौजूद थे। कई रिपोर्ट्स के अनुसार, जब उनकी कार त्रिवेणी रोड से निकली, तो लोग बैरिकेड्स तोड़कर उन्हें देखने के लिए आगे बढ़ने लगे। इसी दौरान नागा साधुओं का जुलूस भी निकल रहा था, और बढ़ती भीड़ के कारण भगदड़ मच गई।
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, 1954 में जब भीड़ अनियंत्रित हो गई, तो श्रद्धालु नागा साधुओं के अखाड़ों के जुलूस के बीच से निकलने लगे। इसे देखकर साधुओं ने त्रिशूल श्रद्धालुओं की ओर मोड़ दिए, जिससे हालात और बिगड़ गए। कई लोग भगदड़ में दबकर मारे गए, जबकि कुछ गंगा में समा गए।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस हादसे पर दुख व्यक्त किया था और इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। हालांकि, इस त्रासदी की असली वजहों पर आज भी मतभेद हैं।
मौनी अमावस्या पर प्रयागराज में हुए ताजा हादसे के बाद प्रशासन हाई अलर्ट पर है। स्थानीय अधिकारियों ने भीड़ प्रबंधन को लेकर समीक्षा बैठक बुलाई है। घायलों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, और मृतकों के परिजनों को हरसंभव सहायता देने की घोषणा की गई है।
हालांकि, 71 साल पहले हुई महाकुंभ त्रासदी की भयावहता के मुकाबले आज की घटना अपेक्षाकृत छोटी है, लेकिन यह कुंभ और माघ मेले जैसे आयोजनों में भीड़ नियंत्रण की बड़ी चुनौती को एक बार फिर उजागर करती है।
Comments are closed.