समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18 जुलाई: दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, तबादले के अप्रैल आदेश के खिलाफ नहीं, बल्कि सरकार द्वारा शुरू की गई आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट पर आपत्ति जताने के लिए। वर्मा ने याचिका में कहा कि यह जांच “थोपी गई” थी और सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट अमान्य कर दी जाए।
महाभियोग प्रक्रिया से पहले सियासी सियासत
जस्टिस वर्मा ने अपने आवेदन में उस 8 मई की सिफारिश को खारिज करने की मांग की — तब सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजिव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कराने का सुझाव दिया था। यह याचिका संसद के मानसून सत्र की पूर्व संध्या पर दाखिल की गई, जब उनके खिलाफ महाभियोग की कवायद तेज़ थी।
सरकारी आवास में मिली नकदी की आग की घटना
इस पूरे विवाद की शुरुआत हुई थी 14 मार्च की होली की रात, जब वर्मा के सरकारी आवास में आग लगी। उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल में थे, लेकिन उनके घर पर बुजुर्ग मां और बेटी मौजूद थीं। दमकल की टीम जब आग बुझाने पहुंची, तो एक स्टोर रूम में नकदी से भरे बोरे जलते हुए मिले, जिससे मामले ने सुर्खियां हासिल की। दो वीडियो भी सामने आए, जिनमें यह नकदी दिख रही थी
जांच की कमेटी पर सवाल
जस्टिस वर्मा का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त आंतरिक जांच जांच प्रक्रिया तटस्थ या निष्पक्ष नहीं थी। उन्होंने तर्क दिया कि रिपोर्ट बिना पर्याप्त आंकड़ों और वास्तविक परिस्थितियों की जांच के बनाई गई है। इसलिए जांच रिपोर्ट को रद्द करना ही न्यायसंगत होगा
सियासी हाईकोर्ट और अदालतों में राजनीति
इस विवाद ने एक बार फिर अदालतों की राजनीति पर सवाल खड़ा किया है। जस्टिस वर्मा का कहना है कि जांच पैनल को रद्द करने से ही न्याय मिलेगा, क्योंकि फिलहाल जांच की निष्पक्षता और मानदंडों पर शक है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच इस मामले में राजनैतिक समीकरण भी उभर चुके हैं।
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