समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19 अप्रैल। घरेलू हिंसा के मामलों में आम तौर पर यह धारणा रही है कि पीड़िता महिला होती है और आरोपी पुरुष। लेकिन अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो अहम फैसलों में यह साफ कर दिया है कि यदि कोई महिला भी किसी दूसरी महिला के साथ घरेलू हिंसा करती है, तो उसके खिलाफ भी कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है। यानी अब सास भी अपनी बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कर सकती है।
इस विषय पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों में, 4 अप्रैल 2024 और फिर 11 अप्रैल 2025 को अहम टिप्पणियां कीं, जिनमें यह स्पष्ट किया गया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 सिर्फ पुरुषों के खिलाफ नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य किसी भी पीड़ित महिला की सुरक्षा करना है, चाहे आरोपी पुरुष हो या महिला।
पहला मामला 2024 में प्रयागराज का था, जहां एक सास ने स्थानीय अदालत में अपनी बहू के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई थी। उसका आरोप था कि बहू उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है, आए दिन विवाद करती है और घर का माहौल खराब करती है। इस शिकायत को बहू ने हाई कोर्ट में चुनौती दी, यह कहते हुए कि घरेलू हिंसा अधिनियम केवल पुरुषों के खिलाफ कार्रवाई के लिए है। उसके मुताबिक, चूंकि वह एक महिला है, इसलिए उस पर यह कानून लागू नहीं हो सकता।
इसपर न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने यह याचिका खारिज कर दी और कहा “घरेलू हिंसा अधिनियम महिला की रक्षा के लिए है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पुरुष ही आरोपी हो सकते हैं। अगर कोई महिला भी किसी महिला को प्रताड़ित करती है, तो उसके खिलाफ भी यह कानून लागू होता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कानून की व्याख्या कृत्य के आधार पर होनी चाहिए, न कि लिंग के आधार पर। यानी अगर हिंसा या मानसिक उत्पीड़न हुआ है, तो आरोपी का लिंग मायने नहीं रखता।
दूसरा मामला हाल ही का मिर्जापुर से था, जहां एक सास ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपनी बहू के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। बहू ने इस शिकायत को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी, एक बार फिर वही तर्क देते हुए कि यह कानून केवल पुरुषों पर लागू होता है।
इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना शर्मा ने बहू की याचिका को खारिज कर दिया और कहा “कानून यह नहीं कहता कि आरोपी केवल पुरुष ही हो सकता है। घरेलू हिंसा अधिनियम का उद्देश्य पीड़ित महिला की सुरक्षा है, और अगर पीड़िता एक महिला है और आरोपी भी महिला है, तब भी यह कानून लागू होता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि घरेलू रिश्तों में रहने वाले सभी सदस्य, चाहे वह बहू हो, सास हो या अन्य कोई, इस कानून के दायरे में आते हैं। अगर कोई महिला दूसरी महिला को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करती है, तो वह भी घरेलू हिंसा मानी जाएगी।
इन दोनों फैसलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि घरेलू हिंसा का मामला सिर्फ “पति-पत्नी” के बीच नहीं होता, और कानून केवल पुरुषों के खिलाफ नहीं है। अब यदि किसी घर में बहू सास को प्रताड़ित करती है, तो सास भी इस कानून के तहत कानूनी सुरक्षा पा सकती है और शिकायत दर्ज करा सकती है। यह बदलाव न सिर्फ न्यायिक दृष्टिकोण को संतुलित बनाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि महिला-से-महिला हिंसा को भी गंभीरता से लिया जा रहा है। इसका सीधा असर यह होगा कि घरेलू विवादों में अब वास्तविक पीड़िता को न्याय मिल सकेगा, भले ही आरोपी महिला ही क्यों न हो।
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