समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 14अप्रैल।हिंदू पंचांग के अनुसार आज यानि 14 अप्रैल को बैसाखी का त्योहार मनाया जा रहा है और यह त्योहार खासतौर पर किसान अपने फसल पकने की खुशी में मनाते हैं. बैसाखी के बाद ही फसल की कटाई शुरू की जाती है और अच्छी फसल की कामना की जाती है. बैसाखी का पर्व घर में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. ये दिन होता है जब किसान फसलों की कटाई करते हैं. बैसाखी मुख्य रूप से किसानों का त्योहार है. इस दिन देश कई हिस्सों में फसलों की कटाई शुरु होती है. इस दिन से ही सिख समुदाय के नववर्ष की भी शुरुआत होती है. बैसाखी का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. आइए जानते हैं क्यों करते हैं लोग बैसाखी का इंतजार?
गुरु गोविंद सिंह जी से बैसाखी का नाता
बैसाखी का पर्व कई मायनों में बेहद ही खास होता है. कहा जाता है बैसाखी का पर्व कई मायनों में खास है. ऐसा माना जाता है कि बैसाखी के दिन ही गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने साल 1699 में बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंत की नींव रखी थी.
राशि परिवर्तन
ये पर्व तारों-सितारों की चाल को लेकर महत्वपूर्ण है. इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं. इस दिन से हिंदू नववर्ष का आरंभ होता है.
अलग-अलग राज्यों में उत्सव
इसके अलावा, बैसाखी प्रमुख कृषि पर्व है. इस दिन फसल पक कर तैयार होती है. चारों और खुशी का माहौल होता है. फसल पकने के इस पर्व को असम में भी मनाया जाता है. वहां इसे बिहू कहा जाता है. बंगाल में भी इसे पोइला बैसाख कहते हैं. केरल में ये पर्व विशु कहलाता है. हिंदू धर्म में बैसाखी का खास महत्व है और इस दिन सूर्य देव मीन राशि से निकलर मेष राशि में प्रवेश करते हैं. इसलिए इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है.
बैसाखी का महत्व
हिंदू भी इस दिन को काफी महत्वपूर्ण मानते हैं. मान्यता है कि हजारों सालों पहले गंगा इसी दिन धरती पर अवतरित हुईं थीं. इसी कारण बैसाखी पर स्नान-दान का विशेष महत्व माना गया है. बैसाखी के दिन लोग नाचते-गाते हैं, पकी फसल काटी जाती है.
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