बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव: कांग्रेस के अशोक राम पार्टी छोड़ जेडीयू में शामिल होंगे

समग्र समाचार सेवा
पटना, 03 अगस्त: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आज, यानी रविवार को विपक्षी दल कांग्रेस को एक बड़ा झटका लगने जा रहा है। लंबे समय से कांग्रेस के कद्दावर दलित नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक राम पार्टी छोड़कर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) में शामिल हो सकते हैं।

कांग्रेस में नाराज़ थे अशोक राम

अशोक राम छह बार विधायक रह चुके हैं और कांग्रेस विधायक दल के नेता भी रहे हैं। वे राबड़ी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने थे। जबकि राहुल गांधी दलित वोटों को जोड़ने की कोशिश में हैं, कांग्रेस के भीतर अशोक राम को लगातार उपेक्षित महसूस कराया जा रहा था।

राज्य कांग्रेस में उनकी उपेक्षा का प्रमुख कारण था — कृष्णा अल्लावरू को बिहार का प्रभारी बनाए जाना और राजेश राम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करना, जो अशोक राम की बिरादरी से आते हैं। इसे वे साफ़ तौर पर व्यक्तिगत और जातिगत भेदभाव मान रहे थे।

जेडीयू में शामिल होने की तैयारियाँ

राजनीतिक हलकों में बताया जा रहा है कि अशोक राम आज जेडीयू में शामिल हो सकते हैं। इस कदम से कांग्रेस की सियासी रानी छवि को भारी झटका लगने की संभावना है क्योंकि अशोक राम कांग्रेस के प्रमुख दलित चेहरे थे

राजनीतिक विरासत और पारिवारिक पृष्ठभूमि

अशोक राम का राजनीतिक परिवार बिहार की राजनीति में प्रतिष्ठित माना जाता है। उनके पिता बालेश्वर राम को 1952 से 1977 तक सात बार विधायक चुना गया था। उन्होंने इंदिरा गांधी की कैबिनेट में राज्यमंत्री भी संभाला था।

इस विरासत पर खरा उतरते हुए अशोक राम लंबे समय तक कांग्रेस के विश्वासपात्र नेता रहे, लेकिन पार्टी की निर्णयात्मक असहमति ने उन्हें जेडीयू की ओर आकर्षित कर दिया।

दो दलों के लिए राजनीतिक मायने

राहुल गांधी के लिए यह घटना संवेदनशील है क्योंकि वे बिहार में दलित वोट प्रतिशत बढ़ाने का यत्न कर रहे हैं। दूसरी ओर, जेडीयू के लिए यह राजनीतिक जीत है—वे एक मजबूत नेता को अपने पक्ष में पाकर दलित आधार को मजबूत करने का संकेत दे रहे हैं।

राजनैतिक बदलाव का बड़ा संकेत

अशोक राम का कांग्रेस छोड़ना केवल एक नेता का स्थान नहीं बदलना है, बल्कि बिहार की दलित राजनीति में बड़ा बदलाव का संकेत देता है। जेडीयू के लिए यह एक रणनीतिक लाभ है, जबकि कांग्रेस अपनी सामाजिक साख बचाने में संघर्ष कर सकती है।

यह बदलाव बताता है कि बिहार की राजनीति में व्यक्तिगत निर्णय, जातिगत समीकरण और पार्टी नेतृत्व के फैसलों का मेल चुनावी नक्षत्र को गहराई से प्रभावित करता है।

 

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