जाति जनगणना: मोदी ने पलटा पासा, विपक्ष की भटकाने की चालें बेनकाब

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,1 मई ।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक प्रेस वार्ता में घोषणा की कि जाति जनगणना अब मुख्य जनगणना प्रक्रिया का हिस्सा होगी, जिसकी शुरुआत संभावित रूप से इस सितंबर से हो सकती है। पूरी प्रक्रिया को पूरा करने में कम से कम दो साल लगेंगे, यानी अगर जनगणना सितंबर में शुरू होती है तो इसके अंतिम परिणाम 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक आएंगे। 2021 की जनगणना कोविड-19 महामारी के कारण टाल दी गई थी।

इस बीच राजनीतिक घमासान तेज हो गया है, विपक्ष इस मुद्दे पर बयानबाज़ी कर रहा है और पहलगाम में एक विशेष सत्र की माँग कर रहा है। कांग्रेस और शरद पवार ने कहा है कि वे ऐसे सत्र की आवश्यकता समझते हैं, उनका कहना है कि इससे भारत की एकता का संदेश दुनिया को जाएगा।

बिहार की राजनीतिक स्थिति बदली है और लोग पूछ रहे हैं कि विपक्ष के साथ यह “खेल” क्यों चल रहा है।

तो, क्या बिहार चुनाव से ठीक पहले जाति जनगणना की घोषणा करना मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक है? मीडिया के कुछ हिस्सों का कहना है कि इसका चुनावों पर कोई असर नहीं होगा — उन्होंने पहले भी यही कहा था और तब भी फर्क नहीं पड़ा। कांग्रेस समर्थित इकोसिस्टम और उसके समर्थक इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। सर्वे पहले ही हो चुका है, रिपोर्ट आ चुकी है, और उस पर निर्णय भी लिए जा चुके हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चुका है।

असल मुद्दा क्या है? पहलगाम में जैसी घटनाएं हुईं, हिंदुओं में जैसी एकता दिखाई दी — प्रधानमंत्री मोदी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जाति, किसान या किसी और के नाम पर कोई विघटन न हो। पार्टी ने विपक्ष की हर साजिश, हर औजार, हर गंदी राजनीति को बेअसर कर दिया है।

इस वक्त जो संदेश गया है वह है — हिंदू एकता मज़बूत हुई है। जैसे ही जनगणना प्रक्रिया शुरू होगी, यह गति और बढ़ेगी। विपक्षी नेता जैसे राहुल गांधी इस खेल को समझ भी नहीं पाए और ज़मीन उनके नीचे से खिसक गई। अब वे समझ नहीं पा रहे कि क्या करें, और तब कहते हैं — “संविधान बचाओ”? इस बीच, भारत पाकिस्तान के साथ युद्ध जैसे हालात में है, और देश के भीतर जो भी तत्व समाज को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें रोका जा रहा है।

कांग्रेस पार्टी बेचैन है — सोच रही है कि अब क्या करें। उनका 2029 एजेंडा था कि वे जातिगत जनगणना करेंगे और 50% से अधिक आरक्षण लागू करेंगे, जैसा कि संविधान की अनुमति देती है। लेकिन किसी ने वास्तव में संविधान पढ़ा है क्या? वे बस बातें कर रहे हैं — 50% से अधिक आरक्षण की — जो होगा नहीं। मोदी ने पहले ही फैसला कर लिया कि इस शोरगुल को खत्म करना चाहिए। उनका ध्यान अब इस बात पर है कि हिंदू एकता बनी रहे, जाति या किसान के नाम पर कोई विभाजन न हो।

विपक्ष की सारी चालें बेकार हो गईं। यह जाति जनगणना अब ऐसे समय शुरू होगी, जब यह एकता सबसे मज़बूत स्थिति में होगी। कुछ राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि इस घोषणा ने बिहार चुनाव से पहले सियासी समीकरण उलट दिए हैं। लेकिन इस कैबिनेट निर्णय का कोई संबंध चुनावी रणनीति या राहुल गांधी व विपक्ष के बयानों से नहीं है।

पहले विभिन्न राज्य सरकारें करोड़ों रुपये खर्च कर खुद के सर्वे करा रही थीं, जिससे ग़लत आँकड़े और विवाद पैदा हुए। बिहार ने अपनी राज्य स्तरीय जनगणना कराई, अपनी मर्ज़ी से वर्गीकरण किया और संदेहास्पद आँकड़े दिए। कर्नाटक और तेलंगाना ने भी यही किया। राहुल गांधी कहते फिर रहे थे कि “हम जहाँ सत्ता में हैं, वहाँ जातिगत सर्वे करेंगे।” अब केंद्र सरकार ने कहा — जब सभी मानते हैं कि जाति आँकड़े ज़रूरी हैं, तो हम इसे राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा बनाएंगे। इससे राज्यों का पैसा बचेगा और विवाद भी नहीं होंगे।

राजनीतिक रूप से विपक्ष के पास अब कहने को कुछ नहीं बचेगा, सिवाय इसके कि “हमारी मांग मान ली गई।” अब जब अगले दो वर्षों में आँकड़े आएँगे, तब फर्क क्या पड़ेगा? मंडल आयोग और काका कालेलकर आयोग जैसी रिपोर्टें पहले ही ओबीसी आबादी को 50% के आसपास बता चुकी हैं। लेकिन क्या संविधान या सुप्रीम कोर्ट ने 50% से अधिक आरक्षण की अनुमति दी? नहीं। यदि सही तरीके से आरक्षण देना है, तो “आरक्षण के भीतर आरक्षण” लागू करना होगा — यानी ओबीसी के भीतर पिछड़े वर्गों की पहचान करनी होगी।

रोहिणी आयोग की रिपोर्ट ने दिखाया कि ओबीसी आरक्षण का 90% लाभ केवल 10 जातियाँ उठा रही हैं। यह बिहार और उत्तर प्रदेश में भी हुआ है। इन जातियों को हमेशा के लिए ओबीसी में रखने की बजाय, उन्हें सामान्य वर्ग में शामिल करना और वंचितों को लाना ज़्यादा लाभदायक होगा। यह केवल राजनीति नहीं है, बल्कि संसाधनों की बचत भी है।

विपक्ष को अचानक घबराहट इसलिए है, क्योंकि अब उनके पास माँगने को कुछ नहीं बचा। वे दो दिन चिल्लाएँगे कि “हमारी माँग मान ली गई,” लेकिन फिर विषय खत्म हो जाएगा। जैसे अग्निवीर योजना में हुआ — शुरू में आलोचना, फिर जब लाभ जुड़े तो चुप्पी।

अब राहुल गांधी या कोई और विपक्षी नेता जाति जनगणना को लेकर लगातार हमला नहीं कर पाएगा। सरकार ने विषय अपना लिया है — अब आँकड़े आएँगे, फिर बात होगी। यह निर्णय पूरे मुद्दे को तटस्थ कर चुका है।

जब कांग्रेस ने मोदी की कटी हुई तस्वीरें — सिर, हाथ, पैर — वायरल कीं, तब उनकी “एकता” कहाँ थी? जब मीडिया ने यह दिखाया और देशभर में आलोचना हुई, तब जाकर उन्होंने वह तस्वीर हटाई। और अब “एकता” का संदेश देना चाहते हैं?

उनके नेता कह रहे हैं कि मोदी सभी पार्टी बैठकों में नहीं आ रहे। लेकिन सच्चाई यह है कि मोदी हर दिन 10-20 बैठकों में भाग लेते हैं। वे बस एक झूठा नैरेटिव गढ़ना चाहते हैं कि मुसलमानों को टारगेट नहीं किया गया, हिंदुओं को नहीं मारा गया — जबकि सच सबके सामने है। राहुल गांधी प्रेस कांफ्रेंस में हिंदुओं की टारगेट किलिंग की बात से इनकार करते हैं और “सद्भाव” की बातें करते हैं।

अगर विपक्ष वाकई एकता का संदेश देना चाहता, तो सब मिलकर पाकिस्तान की निंदा में प्रस्ताव पास करते और सोशल मीडिया व प्रेस में ज़हर न घोलने की कसम खाते।

अब तक किसी भी विपक्षी पार्टी ने मोदी द्वारा पाकिस्तान का पानी रोके जाने की सराहना नहीं की है। उनके नेता चुप हैं, और उनके पत्रकार व “वैज्ञानिक” कह रहे हैं, “पानी कैसे रोकोगे?” — यह धोखा है। विपक्ष डरा हुआ है, क्योंकि हिंदू एकता उन्हें परेशान कर रही है। वे मुसलमानों को संकेत देना चाहते हैं कि “हम तुम्हारे साथ हैं।”

प्रधानमंत्री को उनकी माँगें सुनने की ज़रूरत नहीं है।

ऐसे सत्रों में विपक्ष बस यह चाहता है कि सवालों की बौछार करके मंत्रालयों को व्यस्त रखा जाए — “कितने पाकिस्तानी घुसे? कितने वापस गए?” — ताकि मंत्रालयों का समय बर्बाद हो और सख्त निर्णय न हो सकें।

उनका पूरा एजेंडा ही ऐसा है — एक मुद्दा उछालो, फिर दूसरा — ताकि जनता का ध्यान भटकाया जा सके।

जाति जनगणना राहुल गांधी का बड़ा मुद्दा था — लेकिन पीएम मोदी ने इसका प्रभाव खत्म कर दिया है। बिहार चुनाव से ठीक पहले, यह दांव विपक्ष पर भारी पड़ेगा। मोदी ने फिर एक बार बाज़ी पलटी है — मुंबई हो या पहलगाम, वह लगातार उच्चस्तरीय बैठकों में सक्रिय हैं। वहीं विपक्ष ने पाकिस्तान मुद्दे पर पैसे लुटाए, और उनके नेता खुद बेनकाब हो गए।

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