वक्फ संशोधन कानून पर केंद्र का सुप्रीम दांव: “कोई धर्म नहीं, सिर्फ वैधानिक निकाय है वक्फ!” — अदालत से की याचिकाएं खारिज करने की मांग, बहस में उठा हिंदू ट्रस्टों का सवाल!

नई दिल्ली, विशेष रिपोर्ट — वक्फ संशोधन कानून को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत में आज जबरदस्त तकरार और संवैधानिक बहस का महासंग्राम देखने को मिला। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दो टूक कह दिया“अदालतें संसद द्वारा पारित कानून पर रोक नहीं लगा सकतीं।”

केंद्र ने कानून की वैधता पर सवाल उठाने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करने की अपील की है। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि सरकार ने यह भी साफ कर दिया —

वक्फ कोई धार्मिक संस्था नहीं, बल्कि एक वैधानिक निकाय है। इसका प्रबंधन धर्म से नहीं, कानून और पारदर्शिता से तय होगा।”

केंद्र ने अपने हलफनामे में धमाकेदार आँकड़े पेश किए। बताया गया कि वर्ष 2013 में किए गए संशोधन के बाद वक्फ संपत्ति में 116% की बेतहाशा वृद्धि हुई है।

  • पहले भारत में कुल 18.29 लाख एकड़ वक्फ संपत्ति थी

  • लेकिन 2013 के बाद ये बढ़कर 39.21 लाख एकड़ से भी ज़्यादा हो गई

सरकार का दावा है कि कई मामलों में सरकारी और निजी जमीनों को “वक्फ बाय यूजर” या मनमाने ढंग से वक्फ घोषित किया गया, जिससे यह अतिक्रमण का सेफ हेवन बन गया।

सरकार ने आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड और मुतवल्ली जानबूझकर विवरण सार्वजनिक डोमेन में अपलोड नहीं करते और नियामक निगरानी से बचते हैं। यही वजह है कि अब संशोधन के ज़रिये प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना अनिवार्य हो गया है।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कानून में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल किए जाने को “धार्मिक अधिकारों का हनन” बताया।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखा सवाल दागा

“क्या आप मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में शामिल करने की अनुमति देंगे? जब हिंदू दान कानूनों के तहत बाहरी व्यक्ति ट्रस्ट का हिस्सा नहीं बन सकता, तो वक्फ बोर्ड में ये कैसे हो सकता है?”

सुनवाई के दौरान देशभर में वक्फ संशोधन कानून के विरोध में हो रही हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा —

“ऐसा नहीं लगना चाहिए कि अदालत पर हिंसा के ज़रिये दबाव डाला जा सकता है।”

सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून:

  • संसद के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा पारित किया गया है

  • संवैधानिक रूप से वैध है

  • संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता

  • और सबसे अहम, धार्मिक अधिकारों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि प्रबंधन में पारदर्शिता लाता है

36 संयुक्त संसदीय समिति की बैठकों, 97 लाख से ज़्यादा लोगों की प्रतिक्रियाएं और देशभर का दौरा करके जनहित को समझने के बाद यह कानून लाया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से याचिकाओं पर विस्तृत जवाब मांगा है और स्पष्ट किया है कि वह “इस गंभीर मुद्दे पर स्वयं निर्णय देगा।” अब पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं —
क्या अदालत कानून की वैधता पर संविधान की कसौटी लगाएगी या इस मुद्दे पर सामाजिक और राजनीतिक भूकंप और गहराएगा?

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