संविधान की मूल प्रति से कलाकृतियां हटाने का विवाद: संसद में गरमाई बहस

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,15 फरवरी।
राज्यसभा में मंगलवार को बीजेपी सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल ने संविधान की प्रतियों से कलाकृतियां (इलेस्ट्रेशन) हटाए जाने का मुद्दा उठाया, जिससे सदन में तीखी बहस छिड़ गई। इस पर सभापति जगदीप धनखड़ ने स्पष्ट किया कि संविधान की जो मूल प्रति संविधान निर्माताओं के हस्ताक्षर के साथ मौजूद है, उसमें ये कलाकृतियां अभिन्न अंग हैं। लेकिन संशोधित संविधान में केवल कानूनी बदलावों को ही शामिल किया गया है, जिससे प्रचारित-प्रसारित संविधान में ये चित्र गायब हो गए हैं।

सभापति ने यह भी कहा कि यदि किसी अन्य तरीके से संविधान को प्रचारित किया जाता है, तो सरकार को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इस पर विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई और कांग्रेस अध्यक्ष तथा राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे “अनावश्यक विवाद” करार दिया। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा उठाकर संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की विरासत को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है

संविधान की मूल प्रति और कलाकृतियां

संविधान की मूल प्रति, जिस पर संविधान सभा के सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे, उसमें 22 महत्वपूर्ण कलाकृतियां थीं, जो भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को दर्शाती थीं। लेकिन संविधान संशोधन के बाद प्रकाशित प्रतियों में ये कलाकृतियां नहीं दिखतीं। इस पर बीजेपी सांसद राधा मोहन दास अग्रवाल ने सवाल उठाया कि क्या संविधान की मूल प्रति के साथ ऐसा बदलाव करना उचित था?

सभापति और सत्ता पक्ष की प्रतिक्रिया

सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि डॉक्टर आंबेडकर का भारी अपमान होगा यदि वह मूल प्रति प्रचारित न की जाए, जिस पर संविधान निर्माताओं के हस्ताक्षर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान की मूल प्रति के संरक्षण और प्रचार पर सरकार को ध्यान देना चाहिए

नेता सदन जेपी नड्डा ने इस विषय को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संविधान की मूल प्रति को जनता के बीच प्रचारित किया जाना चाहिए। उन्होंने सदन में संविधान की मूल प्रति दिखाते हुए यह तर्क दिया कि भारत के संवैधानिक इतिहास को पूरी तरह जनता तक पहुंचाना आवश्यक है

विपक्ष का विरोध

विपक्षी दलों ने इस पूरे मुद्दे को “राजनीतिक बहस में उलझाने का प्रयास” बताया। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार संविधान के मूल भाव को कमजोर करने की कोशिश कर रही है और इसे अनावश्यक विवाद में घसीट रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि डॉ. आंबेडकर की विरासत को विवादों में लाने का यह एक और प्रयास है

निष्कर्ष

इस बहस ने संविधान के संरक्षण और उसके प्रचार के तरीकों पर एक नई बहस छेड़ दी है। जहां सत्ता पक्ष चाहता है कि संविधान की मूल प्रति, जिसमें कलाकृतियां भी शामिल हैं, जनता तक पहुंचे, वहीं विपक्ष इसे एक अनावश्यक विवाद मान रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर क्या कदम उठाती है और क्या वास्तव में संविधान की मूल प्रति को दोबारा प्रचारित करने की कोई पहल की जाती है।

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