कोरोना पर सरसंघचालक डॉ भागवत की हिदायतें व मोदी सरकार

कुमार राकेश :  भारत में लोकप्रिय ग्रन्थ विदुर नीति काफी चर्चित रहा है.महात्मा विदुर की नीतियों से महाभारत काल भी कई तरह से प्रभावित रहा है. महात्मा विदुर ने प्राचीन भारतीय संस्कृति को एक आदर्श स्थिति में बरकरार रखने के लिए कई ग्रंथो की रचना की थी.उनके कथ्य,तथ्य और तर्क अकाट्य रहे हैं.वैदिक काल से आज के कोरोना काल तक सभी न्यायपरायण व्यक्तियों के लिए विदुर नीति एक ऐसा शास्त्र व शस्त्र रहा है,जिसकी मदद से उन सभी को न्याय निर्णय में सहायता मिलती रही है.यदि हम विदुर नीति के कथ्यों पर तमाम उपायों के साथ अमल करे तो कोरोना जैसी महामारी से भी मुक्ति में मदद मिल सकती है.
कोरोना वायरस से कर्मवीर की तरह युद्ध करने को प्रेरित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन जी भागवत ने विदुर नीति को समीचीन बताया.उन्होंने विदुर नीति के बहुचर्चित श्लोक की याद दिलाते हुए कहा कि कोरोना को भगाना है तो विदुर नीति पर अमल करना चाहिए.डॉ भागवत ने कहा षड दोषा पुरुषेण हातव्या भूतिमिच्छ्ता!! निद्रा,तन्द्रा,भयं,क्रोधः अलास्यम दीर्घसूत्रता!! अर्थात किसी व्यक्ति के बर्बाद होने के 6 लक्षण होते हैं,जिनमे नींद,गुस्सा,भय,तन्द्रा,आलस्य और काम टालने की आदत शामिल हैं.इसलिए हमें इन लक्षणों से दूर रहने की सतत कोशिश होनी चाहिये.यदि हम इस सूत्र वाक्य के तहत स्वयं को मज़बूत बनाते है तो कोरोना क्या किसी भी युद्ध को जीता जा सकता है.
विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोरोना को देश से मुक्त करने के क्रम कई स्तर पर सेवा कार्य में लगा हुआ है.संघ सेवा नीति के अनुसार देश के 130 करोड़ जनता भारत माता की सन्तान हैं.इस भावना में कोई धर्म व जाति की बात नहीं है.जो भी भारत में रहता है.वो भारतवासी है.डॉ भागवत का कहना हैं कि सेवा कार्य बिना किसी भेदभाव के पूरा करना होता है और हम कर रहे हैं.जिन्हें भी सहायता की आवश्यकता है.उसे जरुर दिया जाना चाहिए.उनका मानना है सभी अपने हैं.धर्म ,जाति व समुदाय के परिपेक्ष्य में किसी में किसी भी प्रकार का कोई अंतर नहीं है.हमारे लिए सभी भारतीय हैं.हमारा कर्म है,धर्म है -अपने सभी भारतीयों की निष्काम भाव से सेवा करना. हमारे लिए सेवा ,उपकार नहीं हमारा कर्तव्य है.इसी भाव से हम सबको काम करने की जरुरत है.बिना किसी समुदाय का नाम लिए उन्होंने कहा कि सभी को अपने अपने समूहों को कोरोना को लेकर सजग करना चाहिए.जिससे सबकी प्राणों रक्षा की जा सके.
26 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन जी भागवत ने अपने बौद्धिक वर्ग संबोधन में विश्व समाज को सम्बोधित किया.डॉ भागवत ने कोरोना काल से लेकर विश्व व राष्ट्र की स्थितियों-परिस्थितियों के साथ स्वदेशी भावना,पर्यावरण,रोजगार,प्रवासी मजदूरों की व्यथा के साथ तमाम सामाजिक हालातों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की.उन्होंने बताया कि कोरोना संकट की वजह से संघ के सभी सामान्य कार्यक्रम अगले जून माह तक तो स्थगित कर दिए गए हैं,परन्तु हमारा सेवा कार्य निर्बाध गति से जारी है.हम निष्काम भाव से सेवा कार्य करते हैं.श्रेय के पीछे नहीं पड़ते हैं.उनका कहना है कि भारत की मूलभूत संस्कारो के परिपेक्ष्य में इस संकट को अवसर बनाकर अपने देश भारत का नव निर्माण करना है.करना पड़ेगा.सरकार,समाज और प्रशासन को एक जुट होकर इस विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाना पड़ेगा.डॉ भागवत ने कहा कि यूँ तो लॉक डाउन में सब बन्द है, फिर भी जीवन चल रहा है,उसी प्रकार संघ भी इस लॉक डाउन में सेवा भारती के साथ अन्य अनुसंघी संगठनो के साथ सेवा कार्यों में जुटा हुआ हैं.संघ के सभी कल्याण कार्य कोरोना की समाप्ति तक चलते रहेंगे.
संघ की नीतियों के अनुरूप डॉ भागवत ने कहा कि सेवा हम सेवा कार्य कीर्ति प्रसिद्धि के लिए नही करते,बल्कि सिर्फ राष्ट्र भावना से सभी देशवासियों की सेवा करते हैं,करते रहे हैं और सदैव करते रहेंगे.
कोरोना काल में महाराष्ट्र के पालघर में साधुओ के नृशंस हत्या पर डॉ भागवत काफी नाराज़ दिखे.दुखी भी लगे .लेकिन नाराज़गी को छुपाते हुए शांत भाव से महाराष्ट्र सरकार व पुलिस की निंदा की.उनका कहना था कि उस घटना में पुलिस नाकाम रही है.कानून को हाथ में लेना गलत है.वो नहीं होना था. देश में सेवा सन्यासियों की हत्या घोर चिंता की बात है.उन साधुओ को विश्व हिन्दू परिषद् के आह्वान पर 28 अप्रैल को सामूहिक श्रद्धांजलि दिया जायेगा.इससे ये स्पष्ट होता है कि संघ महाराष्ट्र सरकार की कार्य शैली से काफी नाराज़ हैं.डॉ भागवत के इस टिपण्णी के बाद हिन्दू नेता बालासाहेब ठाकरे के सुपुत्र व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी शर्म करने के साथ आत्म चिंतन की सख्त जरुरत है.
भारत व भारतीयता के समग्र उत्थान के तहत डॉ भागवत ने केन्द्रीय आयुष मंत्रालय के कार्यो व निर्देशों का पालन सबके लिए समय की जरुरत बताया.उन्होंने एक तरह से आयुष मंत्रालय के कार्यों की सराहना की.साथ ही प्रधानमन्त्री श्री मोदी के सरपंचो को दिए गए स्वावलंबन की बात की सराहना तो,साथ में ये नसीहते भी दी कि इस स्वावलंबन को आम जीवन में कैसे लागू किया जाये,उसके लिए एक समग्र नीति की जरुरत है.सरकार को इस पर चिंतन मनन कर एक नयी नीति का निर्माण करना चाहिए .डॉ भागवत ने कहा कि तालाबंदी के बाद की नीतियों पर भी सरकार को विस्तारपूर्वक एक खुली नीति लाना चाहिए,जिससे आम जन-जीवन तेज़ गति से सामान्य स्थिति में लाने में गति मिल सके.
प्रवासी ग्रामीण मजदूरों की स्थितियों पर डॉ भागवत अति सम्वेदनशील दिखे.उनका मानना हैं कि लाखों की संख्या में अपने आने गांवो को लौट गए मजदूरों के लिए सरकारी स्तर पर एक ठोस नीति बनाये जाने की जरुरत है.सरकार,प्रशासन और नीति निर्माताओ के साथ समाज के स्वयंसेवी संगठनो को भी इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए. डॉ भागवत समाज के एक खास जमात तब्लीघी का नाम लिए बिना चिंता जाहिर करते हुए कहा कि कोरोना को फैलाने में समाज विशेष के द्वारा गड़बड़ की गई। हमे ऐसे लोगो से बचना चाहिए और अपना सेवा कार्य जारी रखना चाहिए.
डॉ भागवत ने कोरोना संकट के बाद संस्कारों पर आधारित एक विशेष शिक्षा नीति लाने को जरुरत बताया.इस संकट के बाद शिक्षा संकट का समाधान जरुरी है.तेजी से बदलती हुई परिथितियों के मद्देनजर देश में स्वदेशी भावना पर जोर देना होगा.इससे देश को आर्थिक मजबूती मिलेगी.ये हरेक भारतीय का नैतिक कर्तव्य होना चाहिये.गौ पालन और जैविक खेती को बढावा देना पड़ेगा.जब समाज कुछ करेगा तो सरकार को भी बहत कुछ करना पड़ेगा.मतलब सरकारों को इस दिशा में विशेष ध्यान देने की जरुरत है.
यदि हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत की तमाम बातों का विश्लेषण किया जाये तो संघ के लिए सरकार से ज्यादा देश और समाज का उत्थान सर्वोच्च प्राथमिकता में हैं.सरकार को कई बार कई नसीहते दी गयी है.दी जाती रही है.अब बारी है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की,जो कोरोना युद्ध में विजय पाने के लिए सरसंघचालक डॉ भागवत के विचारो व हिदायतों पर गंभीरतापूर्वक गौर करते हुए उन मसलो पर तेजी से अमल करे,जिससे देश व समाज को कोरोना संकट से मुक्ति मिले और उन्हें विजय श्री का ख़िताब..!

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