पालघर हत्याकांड:सवालों के घेरे में सोच व सरकार

नीरज राय

मैं सबसे पहले ये साफ कर दूं कि महाराष्ट्र के पालघर में 2 साधुओं समेत 3 लोगों की हत्या हिन्दू-मुस्लिम का मामला नहीं है। इस वक़्त मैं घटना स्थल से करीब 60-70 किलोमीटर की दूरी पर हूँ और यहां पर पिछले करीब 10 साल से रह रहा हूं। जिस इलाके में वारदात हुई वह महाराष्ट्र, गुजरात और दादर-नागर हवेली का सीमावर्ती क्षेत्र है, जंगली इलाका है और आदिवासी समुदाय की बहुलता है।  मैं कोई जांच एजेंसी या उससे जुड़ा हुआ नहीं हूं और ना ही किसी राजनैतिक दल या विचारधारा का पोषक हूँ। ये स्पष्टीकरण देना इसलिए मैं जरूरी समझता हूं क्योंकि 16 अप्रैल की रात्रि का ये वारदात इस वक़्त राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।
लेकिन हां… यहां के बारे में काफी कुछ “सच” ज़रूर बता सकता हूं, जिससे लोग जानबूझकर या अनजाने में आंखे मूद ले रहे हैं। मैंने शुरुआत में ही साफ कर दिया था कि ये कोई हिन्दू-मुस्लिम का मजहबी मुद्दा नहीं है। क्योंकि मेरी जानकारी में गढ़चिंचले गांव में कोई मुसलमान नहीं है। अगर होगा भी तो उसकी इतनी हैसियत नहीं होगी कि वह इतनी गैर-मुस्लिमों की भीड़ इकट्ठी कर सके। इस इलाके में ज्यादातर निचली जाति के लोग या आदिवासी समुदाय के लोग मिलेंगे, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा धर्मांतरण का शिकार हो चुका है। उनमें खुद के धर्म को लेकर कोई खास गर्व या गुमान नहीं दिखेगा, लेकिन दूसरे धर्म और खास करके हिन्दू प्रतीकों के प्रति उनमें नफरत जरूर देखने को मिल सकती है। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि रामायण में यहां कभी राम के आने का जिक्र नहीं है और ना ही रावण का इस क्षेत्र से कोई सरोकार रहा है। इसके बावजूद यहां कुछ सालों से रावण की पूजा की परंपरा पैर पसार रही ही। इसके पीछे की लॉजिक क्या है, खुद यहां रहने वाले रावण के भक्त भी नहीं बता सकते  हैं। लेकिन ज्यादा कुरेदने की कोशिश करेंगें तो एक खास वर्ग के निशाने पर आप जरूर आ जाएंगे।

क्या हुआ था 16 अप्रैल की रात को?
दो दिन पहले ही कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए देशव्यापी लॉकडाउन-2 के एलान के बाद 16 अप्रैल की रात करीब 10 बजे के आसपास पालघर के गांव गढचिंचले में बने फॉरेस्ट चेकपोस्ट के पास दो “भगवाधारी” साधुओं समेत उनके ड्राइवर की उन्मादी भीड़ ने पीट पीटकर हत्या कर दी। महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक उसके कांसा पोलिस स्टेशन को फॉरेस्ट चेक पोस्ट से ये सूचना मिली कि उन्मादी भीड़ ने कुछ लोगों को बंधक बना लिया है और जब पुलिस पहुंचीं तब ये घायल अवस्था में थे, जिन्हें अस्पताल में ले जाने के बाद डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। इस वारदात की रिपोर्टिंग दूसरे दिन के अखबार में होती है और पूरी खबर पुलिस के नजरिये से छापी जाती है। जिसमें पुलिस ने ये दावा किया था कि, “प्राथमिक जांच में ये पता चला है कि स्थानीय स्तर पर यहां किडनी गैंग या किसी बच्चा चोर गैंग के सक्रिय होने की अफवाह थी, गांव वाले रात भर जागकर पहरा देते थे और उसी भ्रम में “गरीब और अनपढ़” आदिवासियों ने साधुओं को चोर समझकर मार डाला”। ये पुलिस की थ्योरी है और इसी थ्योरी को बिना जांच पड़ताल के महाराष्ट्र सरकार आलरेडी सच के काफी करीब मान चुकी है। क्योंकि वारदात के तीन दिन बाद जब ये मामला मीडिया में तूल पकड़ा तब तीन पार्टियों की गठबंधन सरकार चला रहे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी बता दिया कि “दरअसल ऐसा कुछ नहीं है, महज गलतफहमी में साधुओं की हत्या हो गई है”। साथ में उन्होंने मीडिया के नाम ये उपदेश भी चिपका दिया कि “इसे मजहबी रंग न दिया जाय”। लगे हाथों उन्होंने अपनी पीठ भी ठोंक ली, कि मामले में कार्रवाई के तहत 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है और 2 पुलिसवालों की बर्खास्तगी भी हो गई है।  लेकिन यहां एक बात गौर करने वाली ये है कि वारदात वृहस्पतिवार 16 अप्रैल की रात का है और पुलिसवालों की बर्खास्तगी मीडिया में फुटेज दिखने के बाद सोमवार 20 अप्रैल को की गई। यानी महज 4 दिनों में ही पुलिस की थ्योरी गलत साबित हो गई।

पुलिस की थियोरी में खोट है
महाराष्ट्र सरकार पुलिस की बताई कहानी पर ही आगे बढ़ रही है, संभव इसी लाइन पर CID जांच भी आगे बढ़े। क्योंकि जो कांसा पुलिस ने पहले ये दावा किया था कि उसके घटनास्थल तक पहुंचने तक उन्मादी भीड़ ने साधुओं को पीट पीटकर अधमरा कर दिया था, वीडियो फुटेज में उसी कांसा पुलिस का जवान कल्पवृक्ष गिरी महाराज का हाथ पकड़कर भीड़ के हवाले करता नजर आ रहा है। इस मामले में तीनों पीड़ितों की जान जा चुकी है और सबसे बड़ी गुनहगार इसमें पुलिस दिख रही है। इस बात का अंदाजा खुद महाराष्ट्र पुलिस को भी है, इसलिए बेहद शातिराना अंदाज से कहानी गढ़ी गई और इसी कहानी को अपने राजनीतिक आकाओं को भी फीड किया गया। वह तो भला हो सोशल मीडिया का और “स्मार्ट फोनधारी गरीब आदिवासियों” का जिन्होंने खुद अपनी शेखी बघारने के चक्कर मे महाराष्ट्र पुलिस को नंगा कर दिया और “शायद” उद्धव ठाकरे को उनके खिलाफ एक्शन लेने के लिए मजबूर भी किया।

साधुओं की हत्या राजनीतिक साजिश?
मेरे फैक्ट इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि ये कोई राजनीतिक साजिश नहीं है। लेकिन हां ये ट्रिपल मर्डर किसी राजनीतिक सोच का नतीजा जरूर हो सकता है। क्योंकि साधु उसी रास्ते से जाएंगे ये बात किसी को पता नहीं थी। इसलिए यहां साजिश कम से कम मुझे तो नहीं दिख रही है। हां इस वारदात को छुपाने के लिए और अपने विरोधियों को फंसाने के लिए राजनीति जरूर हो रही है, इसमें कोई दो राय नहीं हैं। ये बेहद शर्मनाक है कि हमारा समाज राजनीतिक तौर पर इतना बंट चुका है कि किसी की जान उसकी राजनीतिक सोच के आगे कोई अहमियत नहीं रखती।

तो क्या राजनीतिक सोच हत्यारी है?
जी हां!  क्योंकि देश में एक ऐसा राजनीतिक तबका भी है, जो भगवा “रंग” के मात्र वेशभूषा से ही भड़क जाता है। महज पहनावे के रंग से वह फैसले लेता है। यहां ये बताना जरूरी है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी का झंडा भगवा रंग का ही है और उनके पिता स्वर्गीय श्री बाला साहेब ठाकरे जी ज्यादातर भगवा ही धारण करते थे। यहां तक कि पार्टी का निशान भी भगवा रंग का ही है। लेकिन इनकी सरकार के जो सहयोगी हैं, यानी कांग्रेस और उसी से निकली हुई शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) भगवा को रंग न मानकर एक विचारधारा मानती हैं और उसका विरोध भी करती रही हैं। दुर्भाग्य से उस दिन दोनों साधु “भगवा वस्त्र” में ही थे।

सोच है भगवा की दुश्मन?
ये जगजहिर है कि वामपंथ न सिर्फ भगवा से नफरत करता है, बल्कि इसके खिलाफ अपनी नफरती सोच का प्रचार-प्रसार भी करता है। गढ़चिंचले के आसपास का जो माहौल है, वहां इनके लिए बेहद उपजाऊ जमीन है। नाम न छापने शर्त पर स्थानीय लोगों का दावा है कि यहां पिछले 10-15 सालों में ईसाई मिशनरियों का वर्चस्व तेजी से बढ़ा है। जिनका मकसद महज धर्मांतरण नहीं है। बल्कि वे बेहद शातिराना अंदाज में लोगों के रहन सहन, परंपराएं और उनके रीति रिवाजों में भी दखल देते हैं। इन मिशनरियों के जरिए भोले-भाले गरीब आदिवासी लोगों को वामपंथ के नजदीक ले जाने की कोशिश हो रही है। बेशक देश में कोई भी किसी भी विचारधारा को मान सकता है। लेकिन यहां वैचारिक जहर को फैलाने के लिए शाम, दाम, दंड, भेद सबकुछ आजमाया जाता है।

आप जानकर हैरान रह जाएंगे, यहां जगह-जगह आश्रम नुमा प्रतिष्ठान बने हुए हैं, जिसे “उलोज” कहा जाता है। ये वे स्थान हैं जहां स्थानीय लोगों के आपसी झगड़े निपटाए जाते हैं। ये पंचायती राज की परिकल्पना से बिल्कुल अलग है। क्योंकि ये धार्मिक स्थल हैं। चर्च के ठीक नीचे की व्यवस्था है। यहां दूसरे धर्मों को खुलेआम नीचा दिखाया जाता है। मजाक उड़ाते हैं। दूसरे धार्मिक प्रतीकों को निम्नतर और अपने प्रतीकों को सर्वश्रेष्ठ करार देते हैं। बेहद शातिराना अंदाज में यहां गरीबों का ब्रेनवाश किया जाता है। पहले उन्हें राम की जगह रावण को पूजने के लिए उकसाया जाता है.. और बाद में कम्प्लीट धर्मांतरण। इस दौरान दूसरे और खास करके हिन्दू प्रतीकों के प्रति इनमें इतनी नफरत भर दी जाती है कि वे लोग उन प्रतीकों को मानने वालों की हत्या के बारे में भी सोचने लग जाते हैं। इलाके के आसपास के लोगों का मानना है कि बेशक उस दिन उन साधुओं की हत्या की वजह उनका “भगवा पहनावा” ही रहा होगा।

लेकिन पालघर में वामपंथ कहां?
इस सवाल के जवाब में पालघर की राजनीति को समझें। पालघर में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं। खुद पालघर विधानसभा में चुनावपूर्व BJP-शिवसेना गठबंधन की वजह से शिवसेना का विधायक है। जबकि विक्रमगढ़ का एक सीट NCP के पास है। बोइसर, नालासोपारा और वसई तीन सीटों पर बहुजन विकास अघाड़ी नाम की स्थानीय पार्टी का कब्जा है। प्रचारित ये किया जा रहा है कि पालघर का सांसद भारतीय जनता पार्टी से है और जिस गांव में हत्या हुई वहां की सरपंच चित्रा चौधरी भी भाजपाई हैं। लेकिन यहीं पर बेहद चतुराई से यह बात छुपा दी जा रही है कि गढचिंचले गांव जिस दहानू विधानसभा क्षेत्र में आता है, वहां का MLA विनोद निकोले है और वह CPM का नेता है। साथ ही BJP सरपंच स्तर पर चुनाव नहीं लड़ती, इस बात को भी बड़ी चतुराई से नजरअंदाज कर दिया जा रहा है। मौके पर वीडियो फुटेज में काशीनाथ चौधरी नाम का शख्स दिख रहा है। जो पालघर जिला पंचायत का सदस्य है और NCP का स्थानीय नेता भी है। यहां ये याद दिलाना ज्यादा जरूरी है कि NCP महाराष्ट्र सरकार में सहयोगी पार्टी है और पार्टी के नेता अनिल देशमुख महाराष्ट्र के गृहमंत्री हैं। चुनाव से पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना और गृहमंत्री अनिल देशमुख की पार्टी NCP एक दूसरे की विरोधी थीं और एक दूसरे के विरोध में ही चुनाव लड़ा था। बेशक शिवसेना हिंदूवादी संगठन रहा है, लेकिन महाराष्ट्र सरकार में शामिल कांग्रेस और NCP दोनों की सोच वामपंथ के ज्यादा करीब है। इकबालिया तौर पर NCP और काँग्रेस दोनों ही दलों को वामपंथ से कोई परहेज नहीं है। लेकिन तथाकथित भगवा रंग को ये BJP से जोड़कर देखते हैं और उसका खुलकर विरोध भी करते हैं। इसलिए इस वारदात के पीछे कोई राजनीतिक साजिश नहीं, बल्कि राजनीतिक सोच बड़ी वजह हो सकती है।

वारदात के बाद साजिश की आशंका
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का दावा है कि हत्यारों को छोड़ेंगे नहीं। लेकिन कुर्सी के परम प्रेमी ठाकरे जी खुद जांच कितनी शिद्दत से कराएंगे इसपर शक है। शक इसलिये है क्योंकि जिनके सहयोग से ये सरकार चला रहे हैं वे परंपरागत तौर पर इनके विरोधी रहे हैं। अगले चुनाव में भी ये तीनों दल एक साथ चुनाव लड़ेंगे? इस बात की बिल्कुल भी संभावना नहीं है। जाहिर सी बात है एक दूसरे के पैरों के नीचे की जमीन को खिसकाने की कोशिशें ये तीनों दल करते रहेंगे। एक राजनीतिक दल के तौर पर इस वारदात के बाद NCP अपना अलग बचाव कर रही है और शिवसेना अलग। जांच में सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस वारदात में करीब 200 लोगों के शामिल होने की बात कर रही है। जबकि मौके पर मौजूद NCP का जिला पंचायत सदस्य काशीनाथ चौधरी करीब 2500 की भीड़ का चश्मदीद होने का दावा कर रहा है। ये दावा उसके बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग में मौजूद है। लेकिन वह वहाँ पर क्या कर रहा था, इसके जवाब में उसका और खुद महाराष्ट्र पुलिस की दलील है कि भीड़ को समझाने के लिए खुद पुलिस ने उसे घटना स्थल पर बुलाया था। ये बेहद दिलचस्प एंगल है कि पुलिस उन्मादी भीड़ को “समझाने” के लिए खुद कुछ एक्शन न लेकर राजनीतिक व्यक्ति का सहारा ले रही है। दिलचस्प ये भी है कि 2011 की सेंसेस के मुताबिक दहानू विधानसभा क्षेत्र के कुल 183 गांवों की औसत आबादी करीब 2200 है। यानी काशीनाथ चौधरी की दलील को अगर सच माना जाय तो वहां वारदात में करीब पूरा गांव शामिल था।

पालघर घटना पर सुलगते सवाल
सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि जब देशभर में लॉकडाउन था तो यहां इतनी भीड़ कैसे इकठ्ठी हो गई? लॉकडाउन को प्रभावी तरह से लागू कराने में कांसा पुलिस बिल्कुल गंभीर नहीं दिखी। दूसरी बात ये कि जब इलाके में चोरों के गिरोह की अफवाह थी, लोग तथाकथित रुप से रात-रात भर जाग रहे थे, तो  पुलिस क्या कर रही थी? तीसरी बात ये कि इस अफवाह से जुड़ी कितनी शिकायत पुलिस को मिली थी, क्योंकि यहां अफवाह बच्चा चोर और किडनी चोरों के गिरोह से जुड़ा है। राज्य के मुख्यमंत्री का कहना है कि ये इलाका दुर्गम है। जब सरकार को इलाके के बारे में पता था तो यहां एहतियातन क्या कदम उठाए गए थे?

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