दारा सिंह के साथी की 25 साल बाद जेल से रिहाई: बोले – “अवैध धर्मांतरण और गोहत्या का विरोध किया, इसलिए फँसाया गया”

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 अप्रैल। ओडिशा के बहुचर्चित ग्राहम स्टेन्स हत्याकांड में दोषी ठहराए गए दारा सिंह के सहयोगी की 25 वर्षों बाद जेल से रिहाई हुई है। रिहा होते ही उन्होंने खुद को निर्दोष बताया और दावा किया कि उन्हें जानबूझकर एक साजिश के तहत फंसाया गया था क्योंकि वे “अवैध धर्मांतरण और गोहत्या” का विरोध कर रहे थे।

जनवरी 1999 में ओडिशा के मनोहरपुर गांव में ऑस्ट्रेलियाई ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो छोटे बच्चों की एक भीड़ द्वारा जीप में जिंदा जलाकर हत्या कर दी गई थी। इस वीभत्स कांड ने पूरे देश को झकझोर दिया था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि पर सवाल खड़े हुए थे।

इस मामले में जांच के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े होने के आरोप में दारा सिंह और उसके कुछ साथियों को गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने दारा सिंह को मुख्य दोषी मानते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जबकि कई अन्य को भी अलग-अलग अवधि की सजा मिली थी।

25 वर्षों की सजा पूरी कर बाहर आए दोषी ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा,
“मैंने और मेरे साथियों ने केवल उस समय गांवों में हो रहे अवैध धर्मांतरण और गोहत्या के खिलाफ आवाज उठाई थी। हमें फर्जी आरोपों में फँसाया गया क्योंकि हम अपनी संस्कृति और परंपरा की रक्षा कर रहे थे।”

उनका दावा है कि वे किसी भी हिंसक कृत्य में शामिल नहीं थे और न्याय प्रणाली ने उनकी बातों को सही से नहीं सुना।

रिहाई के बाद यह मामला एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। कुछ सामाजिक संगठन इसे “एक अपराधी की रिहाई” कहकर निंदा कर रहे हैं, तो वहीं कुछ दक्षिणपंथी संगठन इसे “सांस्कृतिक योद्धा की वापसी” के रूप में देख रहे हैं।

राजनीतिक हलकों में भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। विपक्षी दलों ने सरकार से यह सवाल पूछा है कि क्या अब सांप्रदायिक हिंसा के दोषियों को हीरो बनाया जाएगा?

ग्राहम स्टेन्स की पत्नी ग्लैडिस स्टेन्स ने वर्षों पहले ही अपने पति और बच्चों की हत्या करने वालों को “ईश्वर के नाम पर माफ” कर दिया था, और भारत को अपना घर माना था। हालांकि, अभी तक उनकी ओर से इस नई रिहाई पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

दारा सिंह के सहयोगी की रिहाई ने एक बार फिर ग्राहम स्टेन्स हत्याकांड की कड़वी यादों को ताजा कर दिया है। जहां एक ओर यह मामला धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा की सच्चाई को उजागर करता है, वहीं यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या भारत में सांप्रदायिक तनाव की जड़ें अब भी गहरी हैं?

यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह रिहाई क्या सामाजिक और राजनीतिक असर छोड़ती है।

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