अयोध्या निर्णय पर बहस: जस्टिस नारिमन ने की सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए, इसे धर्मनिरपेक्षता पर हमला बताया

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 दिसंबर।
अयोध्या राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय पिछले दिनों देशभर में व्यापक चर्चाओं का विषय बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण की अनुमति दी, जिसके बाद इसे कई लोग एक ऐतिहासिक फैसले के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस फली एन अरिज़ी नारिमन ने इस फैसले पर तीखा सवाल उठाया है और इसे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ बताया है।

जस्टिस नारिमन का बयान

जस्टिस नारिमन, जो पहले सुप्रीम कोर्ट में सेवा दे चुके हैं, ने इस फैसले को लेकर अपनी असहमति जाहिर करते हुए कहा कि यह निर्णय भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत के खिलाफ हो सकता है। उन्होंने कहा कि कोर्ट का यह निर्णय समाज में धार्मिक भेदभाव और असहमति को बढ़ावा दे सकता है, जो कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं होना चाहिए। जस्टिस नारिमन के अनुसार, कोर्ट का यह फैसला न केवल संविधान की भावना से विपरीत है, बल्कि यह भारतीय समाज की विविधता और समरसता को भी खतरे में डाल सकता है।

अयोध्या मामले का ऐतिहासिक संदर्भ

अयोध्या विवाद एक लम्बे समय से देश की राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। यह विवाद उस स्थल को लेकर था, जिसे हिंदू समाज भगवान राम की जन्मभूमि मानता है, जबकि मुसलमानों का दावा था कि वहां बाबरी मस्जिद थी। 1992 में बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने के बाद यह मामला और भी गहरा गया। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले का अंतिम फैसला सुनाया और विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण की अनुमति दी, साथ ही मुस्लिम समुदाय को अयोध्या में 5 एकड़ भूमि देने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और इसके प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट का फैसला भले ही हिंदू समुदाय के लिए खुशी का अवसर था, लेकिन इसके खिलाफ कई हलकों में चिंता भी व्यक्त की गई है। आलोचकों का मानना है कि इस फैसले से भारतीय समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है और यह संविधान में उल्लिखित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को कमजोर कर सकता है। जस्टिस नारिमन ने भी इस पर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि इस फैसले से न्यायपालिका का स्वतंत्रता पर सवाल उठ सकता है।

धर्मनिरपेक्षता पर प्रभाव

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण अपनाने की उम्मीद की जाती है। जस्टिस नारिमन ने इस फैसले को धर्मनिरपेक्षता पर हमला बताते हुए कहा कि कोर्ट को इस तरह के मामलों में निष्पक्षता और संतुलन बनाए रखना चाहिए था। उनका कहना था कि कोर्ट का काम न केवल न्याय करना है, बल्कि समाज के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच संतुलन बनाए रखना भी है।

समाज और राजनीति में बढ़ती ध्रुवीकरण

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही देशभर में धार्मिक ध्रुवीकरण की चिंता जताई जा रही है। कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इस फैसले पर अपना विरोध व्यक्त किया है, जबकि कुछ अन्य इसे एक ऐतिहासिक जीत मान रहे हैं। राजनीतिक दलों के बीच भी इस मुद्दे पर विभाजन साफ देखा जा सकता है। यह बहस इस बात को लेकर जारी है कि क्या इस फैसले से भारतीय समाज में धार्मिक सद्भाव बनाए रखा जा सकेगा या फिर यह समाज में विभाजन और असहमति को बढ़ावा देगा।

निष्कर्ष

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन इसके बाद से उठ रही प्रतिक्रियाओं और चिंताओं ने यह साबित किया है कि यह फैसला समाज में गहरी बहस का कारण बन चुका है। जस्टिस नारिमन जैसे वरिष्ठ न्यायधीश की आलोचना यह दर्शाती है कि इस फैसले के दूरगामी प्रभावों पर पुनर्विचार की आवश्यकता हो सकती है। भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए न्यायपालिका और सरकार को संतुलित और विचारशील कदम उठाने की जरूरत है।

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