‘कनाडा की राजनीति में चरमपंथी ताकतों को मिल रही जगह, भारतीय राजनयिकों की निगरानी स्वीकार्य नहीं’: जयशंकर ने सुनाई खरी-खरी
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,5 नवम्बर। भारत और कनाडा के संबंधों में बीते कुछ समय से तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। इस तनाव के पीछे का प्रमुख कारण कनाडा में खालिस्तानी चरमपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव और उनकी गतिविधियाँ हैं, जिन पर भारत ने कई बार अपनी चिंता जाहिर की है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कनाडा की राजनीति में चरमपंथी ताकतों का बढ़ता दखल बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। साथ ही, उन्होंने कनाडा में भारतीय राजनयिकों की कथित निगरानी पर भी कड़ी आपत्ति जताई।
चरमपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव और कनाडाई सरकार का रवैया
भारत का मानना है कि कनाडा में कुछ चरमपंथी समूह, विशेष रूप से खालिस्तानी समर्थक तत्व, कनाडाई राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं। ये चरमपंथी तत्व भारत के खिलाफ अपने एजेंडे को कनाडा की राजनीतिक प्रणाली का लाभ उठाकर फैला रहे हैं। जयशंकर ने अपने बयान में यह स्पष्ट किया कि ऐसे तत्वों को राजनीतिक समर्थन देना कनाडा के लिए न केवल अनुचित है, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
कनाडा में खालिस्तान समर्थक समूह लगातार भारतीय राजनेताओं, राजनयिकों, और अन्य प्रमुख भारतीय संस्थानों के खिलाफ प्रदर्शन और नफरत फैलाने वाली गतिविधियाँ कर रहे हैं। इन घटनाओं से भारत-कनाडा के संबंधों पर गहरा असर पड़ा है, और भारत की तरफ से इस मुद्दे पर कई बार कनाडाई सरकार के सामने आपत्ति जताई गई है।
भारतीय राजनयिकों की कथित निगरानी पर भारत की आपत्ति
जयशंकर ने कनाडा में भारतीय राजनयिकों की कथित निगरानी पर भी चिंता व्यक्त की। कनाडा में भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा और निजता को लेकर सवाल उठे हैं, क्योंकि ऐसी खबरें आई हैं कि कनाडाई एजेंसियाँ भारतीय राजनयिकों की गतिविधियों पर नजर रख रही हैं। जयशंकर ने इसे भारत की संप्रभुता और कूटनीतिक शिष्टाचार का उल्लंघन करार दिया और कहा कि राजनयिकों की निगरानी करना कूटनीतिक संबंधों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
जयशंकर ने यह भी कहा कि राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उस देश की जिम्मेदारी है जहाँ वे तैनात हैं। कूटनीतिक सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय नियमों का हिस्सा है, और इसमें किसी भी प्रकार की निगरानी करना या हस्तक्षेप करना अस्वीकार्य है।
क्या है खालिस्तानी आंदोलन और उसका कनाडा में प्रभाव?
खालिस्तान एक अलग सिख राज्य की मांग को लेकर चल रहा एक आंदोलन है, जिसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी। हालांकि, भारत में इस आंदोलन को लगभग समाप्त कर दिया गया, लेकिन विदेशों में कुछ समूह अब भी इसे समर्थन दे रहे हैं। कनाडा में बसे खालिस्तानी समर्थक इन विचारों को लेकर लगातार प्रदर्शन और गतिविधियाँ करते रहे हैं।
खालिस्तानी आंदोलन का प्रभाव कनाडा में बढ़ता जा रहा है, जहाँ कुछ चरमपंथी समूह सिख समुदाय की भावनाओं को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए वे कनाडा के राजनीतिक मंच का भी उपयोग कर रहे हैं। कनाडा में कई नेता और पार्टियाँ सिख समुदाय का समर्थन पाने के लिए इन तत्वों से दूरियाँ बनाने से कतराते हैं।
कनाडा की सरकार का पक्ष
कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस मामले में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया है कि कनाडा अपने नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार देता है। ट्रूडो का मानना है कि कनाडा में लोग अपनी बात रखने का हक रखते हैं, और सरकार किसी भी प्रदर्शन पर रोक नहीं लगा सकती। लेकिन भारत इस तर्क से सहमत नहीं है, क्योंकि उसे लगता है कि चरमपंथी ताकतों का समर्थन और सार्वजनिक मंच पर उनकी गतिविधियों को बढ़ावा देना अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए खतरा है।
भारत-कनाडा संबंधों पर पड़ता असर
कनाडा में चरमपंथी ताकतों का बढ़ता प्रभाव और भारतीय राजनयिकों की कथित निगरानी का मामला भारत और कनाडा के रिश्तों में तनाव का कारण बनता जा रहा है। भारत ने स्पष्ट रूप से कनाडा से इन गतिविधियों पर लगाम लगाने की मांग की है और कहा है कि यह मुद्दा दोनों देशों के बीच संबंधों में गंभीर बाधा डाल सकता है। भारत का मानना है कि कनाडा सरकार को अपने यहां चरमपंथी तत्वों पर कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि दोनों देशों के संबंध बेहतर बने रहें।
निष्कर्ष
जयशंकर का यह बयान कनाडा के चरमपंथी तत्वों के खिलाफ भारत की मजबूत स्थिति को दर्शाता है। भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा और चरमपंथी तत्वों का राजनीतिक मंच पर बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता का विषय है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कनाडा इस मुद्दे पर क्या कदम उठाता है और कैसे अपने देश में चरमपंथी गतिविधियों पर लगाम लगाने का प्रयास करता है।
दोनों देशों के बीच स्थिर और सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि कनाडा अपने यहाँ चरमपंथी तत्वों को समर्थन देने से बचे और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के महत्व को समझे। जयशंकर के बयान से स्पष्ट है कि भारत किसी भी प्रकार की चरमपंथी गतिविधियों को नजरअंदाज नहीं करेगा और इसे दोनों देशों के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने से रोकने का प्रयास करेगा।
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