शरद पवार गुट के जितेंद्र आव्हाड ने कहा: ‘सनातन धर्म ने भारत को बर्बाद किया’—महाराष्ट्र में राजनीतिक तूफान
समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 04 अगस्त: एनसीपी‑एसपी विधायक जितेंद्र आव्हाड ने हाल में एक विवादास्पद बयान दिया कि “सनातन धर्म ने भारत को बर्बाद कर दिया” और इसे “पेरवर्टेड” विचारधारा करार दिया है। उन्होंने कहा कि शासकीय प्रतिष्ठान ने कभी ऐसा कोई धर्म नाम की तरह स्वीकार नहीं किया और वे खुद ‘हिंदू धर्म’ के अनुयायी हैं, ना कि सनातनी विचारधारा के।
आव्हाड ने आरोप लगाया कि सनातन धर्म ने छत्रपति शिवाजी को राज्याभिषेक से वंचित रखा, छत्रपति संभाजी को बदनाम किया, सामाजिक सुधारकों जैसे ज्योतिराव फुले, सावित्रीबाई फुले और डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को प्रताड़ित करने का मंसूबा रचा और उन्हें शिक्षा और मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा।
इस बयान के बाद महाराष्ट्र की सियासत गरमा उठी। भाजपा नेता सांबित पात्रा ने कहा कि आव्हाड ने सनातन धर्म के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया, और यह पूछने की ज़रूरत है कि क्या यह एनसीपी‑एसपी का आधिकारिक रुख है या केवल उनकी व्यक्तिगत राय। उन्होंने कहा, “अगर यह बयान किसी अन्य धर्म के खिलाफ होता, तो प्रतिक्रिया अलग होती”—यह टिप्पणी धार्मिक दफ्तरों पर आरोप लगाने की नीयत से की गई समझी गई।
शिवसेना नेता शैलीना एनसी ने आव्हाड की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसा बयान उनकी “अधूरी” धार्मिक अध्ययन और कटुता का ही परिणाम है, और इससे समाज में विभाजन फैलाने की कोशिश हुई है। मनीषा कायंदे ने आरोप लगाया कि आव्हाड हिंदुओं की साख गिराने में लगे हैं, और वे मुस्लिम तुष्टिकरण के एजेंडे पर काम कर रहे हैं।
मंत्रिमंडल में शिनोली, भाजपा के नितेश राणे ने सवाल उठाया कि क्या सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र के लिए राज्य की सांस्कृतिक विरासत को बदनाम करना उचित है? उन्होंने शरद पवार और सुप्रिया sule को जवाब देने की चुनौती दी कि क्या यह पार्टी की आधिकारिक नीति है या आव्हाड की निजी राय।
कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने भी कहा कि आव्हाड ने सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए कई “फर्जी कथाएँ” सुनाई हैं। उनका कहना था कि सनातन धर्म ने भारत की सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को सहेज कर रखा; अगर वह नहीं होता, तो भारत “सऊदी अरब” जैसा बन चुका होता।
राज्य में भले ही ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से यह मामला बेहद संवेदनशील बना हुआ है, लेकिन एक तथ्य स्पष्ट हो गया है — यह बयान महाराष्ट्र की आगामी चुनावी राजनीति और सामाजिक संवाद में गहरी लकीर खींच सकता है। एनसीपी‑एसपी को अब इस विवाद पर अपना स्पष्ट रुख तय करना है: क्या आव्हाड के साथ वे खड़े हैं, या उनका सांस्कृतिक दृष्टिकोण अलग है?
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