अभाव में संतोष: नीडोनॉमिक्स जीवन शैली से सबक
प्रो. मदन मोहन गोयल, प्रवर्तक – नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट

-प्रो. मदन मोहन गोयल
नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट ( एनएसटी) का मानना है कि संतोष ‘आवश्यकताओं की अर्थशास्त्र’ का प्रमुख शब्द है। यह दूसरों के प्रति साझेदारी और देखभाल पर बल देता है तथा जो कुछ हमारे पास है, उसका सर्वोत्तम उपयोग करने की प्रेरणा देता है। इस व्यावहारिक दर्शन में सुख संपन्नता से नहीं, बल्कि उपलब्ध संसाधनों में आनंद लेने की क्षमता से उत्पन्न होता है। नीडोनॉमिक्स हमें याद दिलाता है कि सच्ची समृद्धि अधिक पाने में नहीं, बल्कि कम की आवश्यकता महसूस करने और जो है उसमें प्रसन्न रहने में निहित है।
1956 में एक सुदूर गाँव में जन्म लेने के कारण मुझे उन दिनों की सरलता और शांति आज भी स्मरण है। जीवन भौतिक रूप से सीमित था पर भावनात्मक रूप से अत्यंत समृद्ध। हम संयुक्त परिवार में रहते थे, जहाँ पारस्परिक निर्भरता, प्रेम और अपनापन बुनियाद थे। अलग-अलग कमरे नहीं थे; हम सभी लकड़ी के पलंगों पर एक बड़े कमरे में सोते थे, जो हमारे घर का हृदय था। हर रात साथ रहने की गर्माहट और शांति की लय से भरी होती थी।
पुस्तकें भी साझा संपत्ति थीं। बड़े भाई और बहन के बाद तीसरे क्रम में मुझे उनके पुराने पाठ्यपुस्तकें मिलती थीं, जिन्हें मैं गर्व से स्वीकार करता था। उन पुस्तकों के पन्नों में केवल पाठ नहीं, बल्कि उनके टिप्पणियाँ, रेखांकित विचार और अनुभव भी विरासत की तरह शामिल होते थे। इस पुन: उपयोग की परंपरा ने हमें नीडोनॉमिक्स का मूल सिद्धांत सिखाया — सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग बिना शिकायत के करना।
गाँव में शौचालय नहीं थे; हमें बाहर जाना पड़ता था। बिजली नहीं थी, और पढ़ाई मिट्टी के तेल के दीयों की रोशनी में होती थी। रात होते ही हम सो जाते थे — यह आदत आज भी मेरे जीवन का हिस्सा है। जीवन की गति प्रकृति के अनुरूप थी, मशीनों के अनुसार नहीं।
फिर भी, या शायद इन्हीं अभावों के कारण, जीवन में आनंद, अनुशासन और कृतज्ञता का गहरा भाव था। हम संतुष्ट थे — इसलिए नहीं कि हमारे पास सब कुछ था, बल्कि इसलिए कि हम जो कुछ था, उसकी कद्र करते थे। अभाव में हमने स्नेह, धैर्य और साझा उद्देश्य की प्रचुरता खोजी।
आज की उपभोक्तावादी दुनिया में अभाव का यह आनंद भूल चुकी बुद्धि बन गया है। आधुनिक जीवनशैली आराम को सुख और विलासिता को सफलता समझ बैठी है। नीडोनॉमिक्स सिखाता है कि सच्चा कल्याण संपत्ति में नहीं, दृष्टिकोण में है। जब हम सजग होकर जीते हैं, तो सीमित साधनों से भी असीम संतोष प्राप्त कर सकते हैं।
हमारे पूर्वजों ने इसे सहज रूप से अपनाया था — उन्होंने मरम्मत को प्रतिस्थापन पर, पुनः उपयोग को अपव्यय पर, और साझेदारी को संचय पर प्राथमिकता दी। यह थी नीडोनॉमिक्स की व्यवहारिक अभिव्यक्ति — नैतिकता और सहानुभूति में निहित जीवंत अर्थशास्त्र।
आज जब हम वैश्विक, उपभोग-प्रधान डिजिटल युग में आगे बढ़ रहे हैं, तो नीडोनॉमिक्स का यह संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है — धरती और अपनी शांति की रक्षा के लिए हमें फिर से संतोष और ‘पर्याप्तता के आनंद’ को अपनाना होगा।
मेरे बचपन की यादें — मिट्टी के तेल का दिया, लकड़ी का पलंग, पुरानी किताबें और प्रेम से भरा घर — गरीबी के नहीं, बल्कि आत्मिक समृद्धि के प्रतीक हैं। इन्हीं अनुभवों ने मेरे इस विश्वास को दृढ़ किया कि नीडोनॉमिक्स केवल आर्थिक चिंतन नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।
वास्तव में, अभाव का आनंद ही सच्चे सुख का आधार है — जहाँ कृतज्ञता लोभ का स्थान लेती है और संतोष जीवन की असली मुद्रा बन जाता है।
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