सरकारी भूमि पर अवैध चर्च निर्माण पर मद्रास हाईकोर्ट का सख्त रुख: गिरजाघर और ग्रोटो 12 सप्ताह में ढहाने के आदेश

समग्र समाचार सेवा
चेन्नई,9 अप्रैल।
मद्रास उच्च न्यायालय ने चेन्नई के अलवरपेट इलाके में सेंट मैरी रोड के पास सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बनाए गए एक कैथोलिक चर्च और 50 फुट ऊंचे ग्रोटो (गुफा संरचना) को ढहाने का निर्देश दिया है। अदालत ने 2 अप्रैल 2025 को दिए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में स्थानीय निकायों को 12 सप्ताह के भीतर विध्वंस की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया और जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू करने को कहा।

इस आदेश के साथ ही वर्षों से चली आ रही अवैध गतिविधियों, जाली दस्तावेज़ों और धार्मिक आड़ में किए गए आर्थिक कदाचार का पर्दाफाश हुआ है। हैरानी की बात यह है कि स्थानीय नागरिकों की बार-बार शिकायतों के बावजूद प्रशासन ने दशकों तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

इस भूमि पर अवैध निर्माण की शुरुआत 1990 के दशक के उत्तरार्ध में एक अप्राधिकृत विवाह भवन के रूप में हुई थी। बाद में इसे चर्च में तब्दील कर दिया गया, वह भी बिना किसी वैधानिक अनुमति के। 2024 में इसमें एक विशाल 50 फुट लंबा ग्रोटो जोड़ा गया, जिसकी अनुमति न तो नगर निगम से ली गई और न ही किसी अन्य वैध संस्था से।

इस पूरे निर्माण कार्य का संचालन पास्टर एंटोनीराज, बिल्डर टाइटस थांगा प्रिमस और पैरिश डेवलपमेंट कमेटी के सदस्यों द्वारा किया गया। जांच में सामने आया कि इस समूह ने तमिलनाडु प्राइज स्कीम (प्रतिबंध) अधिनियम का उल्लंघन करते हुए गैरकानूनी लॉटरी चला कर धन जुटाया। वित्तीय रिकॉर्ड की कोई ऑडिटिंग नहीं की गई, न ही पारदर्शिता बरती गई।

अदालत ने जब मामले की गहराई से पड़ताल की तो सामने आया कि पास्टर एंटोनीराज के नाम की मुहर और दस्तखत का उपयोग करते हुए एक फर्जी पत्र चेन्नई निगम को भेजा गया, जबकि वे उस समय शहर में मौजूद नहीं थे। चर्च की ओर से 29 फरवरी 2024 को प्रस्तुत एक पत्र में विशाल ग्रोटो को दशकों पुरानी और चक्रवात से क्षतिग्रस्त बताकर गुमराह करने की कोशिश की गई। अदालत ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि यह पूरी तरह से जालसाजी का मामला है।

फोटोग्राफिक साक्ष्यों और अन्य दस्तावेजों के आधार पर जिन लोगों की भूमिका उजागर हुई है, उनमें टाइटस थांगा प्रिमस, भास्कर, एबिनीस संथुराज उर्फ एबेनेज़र, सेबेस्टियन, लीमा रोज़, पास्टर जेयाकुमार, राजेश और ग्रेसी एबिनीस शामिल हैं। इन सभी के खिलाफ अब कानूनी जांच जारी है।

श्री हित राधा केली कुंज परिषद और अन्य सामाजिक संगठनों ने इस मामले पर मुख्यधारा मीडिया की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जहां वक्फ बोर्ड से जुड़े मामलों को मीडिया में प्रमुखता दी जाती है, वहीं ईसाई मिशनरियों द्वारा की जा रही इस तरह की अतिक्रमण गतिविधियों पर अपेक्षाकृत चुप्पी बरती जाती है।

लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम (LRPF) ने 2024 में आर्चबिशप जॉर्ज एंटोनीसामी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन पर धार्मिक आधार पर मतदाताओं को प्रभावित करने का आरोप लगाया गया था। अब अदालत के इस निर्णय को उस आरोप के आलोक में और अधिक गंभीरता से देखा जा रहा है।

कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मामला दर्शाता है कि देशभर में किस तरह से धार्मिक संस्थाएं सरकारी या सार्वजनिक भूमि पर अवैध कब्जा कर उसे वैध बनाने का प्रयास करती हैं। हाल ही में संसद से पारित वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 को इस दिशा में एक आवश्यक कदम माना जा रहा है, लेकिन अब मांग उठ रही है कि सभी धर्मों से जुड़े भूमि विवादों पर समान दृष्टिकोण अपनाया जाए—चाहे वह हिंदू मंदिरों की भूमि हो या मठों की।

मद्रास उच्च न्यायालय का यह निर्णय एक स्पष्ट संदेश देता है: धार्मिक पहचान के नाम पर किसी भी प्रकार की गैरकानूनी गतिविधि, विशेष रूप से सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण, बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह फैसला न केवल कानून का पालन सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि धार्मिक संस्थाओं के भीतर पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की भी आवश्यकता को रेखांकित करता है।

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