महाराष्ट्र ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली महिलाओं की एक श्रंखला दी है – निवेदिका शिप्रा मानकर

समग्र समाचार सेवा,
नई दिल्ली, 1 मई। महाराष्ट्र ने राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं की एक श्रंखला ही दी है और इन महिलाओं ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. इसकी शुरुआत राजमाता राष्ट्रमाता जिजाऊ से हुई और उन्होंने ही इसकी नींव रखी, यह प्रतिपादन निवेदिका शिप्रा मानकर ने किया.

महाराष्ट्र सूचना केंद्र की ओर से आयोजित महाराष्ट्र हीरक महोत्सव के 38 वे व्याख्यान में ‘महिलाओं द्वारा निर्मित महाराष्ट्र’ विषय पर वह बोल रही थी. उन्होंने आगे कहा कि अनेक महापुरुषों ने महाराष्ट्र का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है परंतु उनके साथ ही महिलाओं ने दिए हुए योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता. उन्होंने आगे कहा कि राजमाता जिजाऊ को स्वतंत्र स्वराज्य निर्माण करने का श्रेय दिया जाता है. आंदोलन की भूमि महाराष्ट्र में महिलाओं ने अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किया है.

मानकर ने आगे कहा कि 16 वीं शताब्दी में जब महिलाओं पर अत्याचार हो रहे थे, किसान फसल उगा रहे थे और बादशाह भंडार कर रहे थे, इस तरह के अत्याचारी राज के विरुद्ध राजमाता जिजाऊ ने शिवराय तथा उनके साथियों को बताया कि स्वराज तुम्हारा है और तुम्हें वह प्राप्त करना होगा और यहीं से स्वराज के लड़ाई की शुरुआत हुई.

विभिन्न क्षेत्रों में महाराष्ट्र महिलाओं का योगदान

२४-२५  वर्ष की तारा रानी ने औरंगजेब के विरुद्ध लड़ने का साहस किया. साथ ही छत्रपति शिवाजी महाराज की स्नुषा और संभाजी महाराज की पत्नी महारानी येसुबाई ने पति जिंदा होने पर भी विधवा की तरह जीवन बिताते हुए अपना संघर्ष जारी रखा. उन्हें देखने पर, सुनने पर और पढने पर उनका कार्य समझ में आता है, यह भी शिप्रा मानकर ने कहा. उन्होंने बताया कि उमाताई दाभाडे भी एक योद्धा थी. उन्हें सनातन विचारों के वर्चस्व के कारण काफी पीड़ा झेलनी पढ़ी परंतु सब से संघर्ष कर उन्होंने भारत की पहली सरसेनापती (कमांडर इन चीफ) के रूप में अपना स्थान बनाया. पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर केवल अच्छी प्रशासक और शासक ही नहीं, बल्कि एक उत्कृष्ट समाजसेवी भी थी. विधवा महिलाओं को उनके पति के अधिकार में हिस्सा दिलाना, बच्चों को गोद लेने का अधिकार भी दिलाया तथा गरीब और पिछड़ों के लिए भोजन और पानी की सुविधा भी उन्होंने उपलब्ध कराई.

ज्ञानज्योत सावित्रीबाई, फातिमा शेख, मुक्ता साल्वे शिप्रा मानकर ने कहा कि शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के लिए शिक्षा के दरवाजे खोलें और उस समय खुद प्लेग से प्रभावित होने के पश्चात भी दूसरों की जान बचाने के लिए संघर्ष करती रही. उन्होंने बाल हत्या प्रतिबंधक, अनाथ बालक आश्रम, विधवा पुनर्विवाह जैसे सत्यशोधक कार्य ज्योतिबा फुले के बाद भी जारी रखें. देश की पहली मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख सावित्रीबाई के साथ ही कार्यरत थी. उस समय सनातनी विचारधारा के कारण महिलाओं के शिक्षा ग्रहण करने को विरोध किया जाता फिर भी इन दोनों का काम जारी रहा. उनकी अस्पृश्य छात्रा मुक्ता साल्वे ने जीवन के 15 वर्ष में एक निबंध लिख सनातनियों को अनेक प्रश्न पूछे यदि स्वाधीनता ना हो तो महिला का जीकर क्या उपयोग? इस तरह के प्रश्न भी उसमें शामिल थे. उन्होंने इस भूमि को पुरोगामी विचार दिया और यहीं से दलित साहित्य की शुरुआत होने की बात शिप्रा मानकर ने बताई.

ताराबाई शिंदे, तनुबाई बिरजे, डॉक्टर रखमाबाई, रमाबाई

उन्होंने आगे कहा कि ताराबाई शिंदे ने पति के निधन के पश्चात महिलाओं को जीने के अधिकार का प्रश्न उठा कर न्याय दिलाया. उन्होंने वेश्या व्यवसाय में हो रही वृद्धि के लिए पुरुषों ने लगाए हुए निर्बंध को जिम्मेवार बताया. पुरुषों की भांति महिलाओं के पुनर्विवाह को भी उन्होंने उचित बताया. भारत की पहली महिला संपादिका तानुबाई बिरजे दीनबंधु की संपादिका बनी और निडर पत्रकारिता के रूप में अपनी छवि बनाई. रखमाबाई पहली डॉक्टर महिला थी जिन्होंने विदेश में शिक्षा ग्रहण कर भारत में मरीजों को सेवाएं दी. उन्होंने पति के विरुद्ध तलाक का मुकदमा दायर किया और उसे जीत कर महिला मुक्ति का डंका पीटा. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर विदेश जाने पर भारत में उनका काम रमाबाई आंबेडकर ने संभाला. जनाबाई अशिक्षित होने के बाद भी उनके ओव्या, कविता, अभंग के माध्यम से जनजागृति होती रही. संत जनाबाई अशिक्षित थी परंतु अपने साहित्य के माध्यम से जन जागरण किया और राज्य के निर्माण में योगदान दिया. शांताबाई श्लेके, डा रजिया पटेल, सरोजिनी बापट ने विरासत को आगे बढाया. शांताबाई शेलके, डॉ रजिया पटेल, सरोजिनी बापट ने जनाबाई, बहेनाबाई के साहित्य की विरासत जारी रखी. सरोजिनी बापट ने अपनी लिखान से महिलाओं की समस्याओं पर तथा उनके संसार को लेकर संघर्ष को उजागर किया. रजिया पटेल को ग्रामवासियों ने शिक्षा से वंचित रखने पर उन्होंने शहर में जाकर अपनी शिक्षा पूरी की. सिनेमा गृह में प्रवेश ना मिलने पर बंदी तोड़कर उन्होंने महिला सुधारना तथा समाज समीक्षक के रूप में अपना सिक्का जमाया. शिप्रा मानकर ने डा अरुणा ढेरे, इरावती करवे, लक्ष्मीबाई नायकवाड़ी, लीलाबाई पाटील, विमल ताई देशमुख, कौसाबाई पाटील, इंदुताई पाटणकर, शरद पवार की मातोश्री शारदा बाई गोविंदराव पवार, नलिनीताई लड़के के योगदान की भी जानकारी दी.

मानव विकास को केंद्र मानने वाले अहिल्याबाई, मृणाल गोरे, प्रमिला दंडवते

शिप्रा मानकर ने कहा कि अहिल्याबाई रांगनेकर, मृणाल गोरे, प्रमिला दंडवते ने सामान्य लोगों के लिए आंदोलन शुरू किया. इन तीनों का उस समय काफी दबदबा था. उन्होंने अनेक प्रश्नों पर आवाज उठाई और समय-समय पर रास्तों पर भी आ कर प्रदर्शन किया. प्रमिला दंडवते केवल महाराष्ट्र स्वाधीनता आंदोलन ही नहीं बल्कि गोवा मुक्ति आंदोलन में भी सक्रिय रूप से संभागी हुई. अहेलियाबाई रांगनेकर निडर कार्यों के लिए जानी जाती. मृणाल गोरे ने पंचायत समिति से लेकर लोकसभा तक प्रशंसनीय कार्य करके अपना योगदान दिया.

शिप्रा मानकर ने ताराबाई मोडक, गोदावरी परुलेकर, कमला सोहनी के कार्य की जानकारी भी दी तथा कोरोनावायरस के टेस्टिंग किट बनाने वाली मीनल दखले भोसले का भी उल्लेख किया. अहमदनगर की राहिबाई पोपेरे, मेडिकल क्षेत्र की कमला रणदिवे, महिला गणित विशेषज्ञ मंगला नारलीकर के साथ ही लता मंगेशकर, आशा भोंसले, स्मिता पाटील, किशोरी आमोनकर, हीराबाई बरोड़ेकर, जयमाला शिलेदार, शाहिर अनुसया शिंदे, गायिका कार्तिकी गायकवाड, जिजाऊ ब्रिगेड की रेखाताई खेड़कर, नासिक की प्रज्ञा पाटील, कंचन माला, रेडियो पर अशिक्षित गायकों को अवसर देने वाली आरती सिन्हा जैसी महिलाओं के काम का उल्लेख किया. उन्होंने खेद व्यक्त किया कि महाराष्ट्र की आजादी के बाद आज तक एक भी महिला मुख्यमंत्री नहीं मिली है. उन्होंने युवा पीढ़ी से अपील की कि वे महिलाओं की समृद्ध विरासत को आगे ले जाए और महाराष्ट्र को विकसित करने में योगदान दे.

 

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