समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 14 अगस्त: देशभर के कई नगर निगमों ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मीट की दुकानों और बूचड़खानों को बंद रखने का आदेश जारी किया है।
यह आदेश सामने आते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। विपक्षी नेताओं ने इसे लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला बताया और सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े किए।
राज ठाकरे का तीखा हमला
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने इस फैसले पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा —
“स्वतंत्रता दिवस पर सरकार लोगों की स्वतंत्रता छीन रही है। कौन क्या खाए, यह सरकार तय नहीं कर सकती।”
राज ठाकरे ने कहा कि उन्हें बताया गया है कि यह 1988 का पुराना कानून है, लेकिन इसका इस्तेमाल कर आज के दौर में प्रतिबंध लगाना गलत है।
उन्होंने अपने समर्थकों से कहा —
“जो मन में आए खाओ, किसी पर कोई पाबंदी नहीं है।
‘कौन क्या खाए, सरकार तय न करे’
राज ठाकरे ने नगर पालिकाओं पर तंज कसते हुए कहा —
“कृपया ये न ठहराएं कि लोग क्या खाएं। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है, जिस पर किसी को दखल नहीं देना चाहिए।”
आदित्य ठाकरे भी विरोध में
शिवसेना विधायक आदित्य ठाकरे ने भी मीट बंदी के आदेश को अनावश्यक और असंवेदनशील करार दिया।
उन्होंने कहा —
“स्वतंत्रता दिवस पर क्या खाएं, यह हमारा अधिकार है। नवरात्रि में भी हमारे घर के प्रसाद में झींगा और मछली होती है, यही हमारी परंपरा और हिंदुत्व है।”
आदित्य ठाकरे ने कल्याण-डोंबिवली नगर निगम के आयुक्त को निलंबित करने की मांग करते हुए कहा कि इस तरह के फैसले जनता पर थोपे नहीं जाने चाहिए।
अजित पवार ने जताई नाराजगी
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी इस आदेश को अनुचित बताया।
उन्होंने कहा —
“ऐसे प्रतिबंध आमतौर पर धार्मिक संवेदनशीलता को देखते हुए आषाढ़ी एकादशी, महाशिवरात्रि, महावीर जयंती जैसे अवसरों पर लगाए जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस पर इसका कोई औचित्य नहीं है।”
अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र में लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते हैं और इस विविधता का सम्मान होना चाहिए।
विवाद का राजनीतिक असर
स्वतंत्रता दिवस पर मीट दुकानों की बंदी का यह विवाद राजनीतिक रंग ले चुका है।
जहां विपक्ष इसे जनता की स्वतंत्रता में दखल बता रहा है, वहीं नगर निगम का कहना है कि यह शांति और परंपरा बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया कदम है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुद्दे पर अगले कुछ दिनों तक बयानबाजी जारी रहेगी, खासकर महाराष्ट्र की राजनीति में, जहां हिंदुत्व और सांस्कृतिक परंपरा को लेकर पहले से ही बहस होती रही है।
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.