त्रिदीब रमण
’उतनी बारूद अपने अंदर बचा कर रखना
जितनी रखती हैं माचिस की तिल्लियां
अंधेरों को मालूम हो तेरे जलने का हुनर’
शह-मात की सियासी बिसात पर आप इसे केंद्र नीत भाजपा सरकार का एक बेहद सुविचारित दांव मान सकते हैं, अब यह महज़ इत्तफाक तो नहीं हो सकता कि गुरूवार को केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा करते हैं और उसके अगले ही दिन शुक्रवार को केंद्र सरकार ’एक देश एक चुनाव’ की संभावनाओं को टटोलने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन कर देती है और यह घोषणा होते ही भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा फूलों का गुलदस्ता लिए कोविंद के घर पहुंच जाते हैं। सवाल यह भी अहम है कि 1 सितंबर को गठित होने वाली कमेटी क्या 18 सितंबर को शुरू होने वाले संसद के विशेष सत्र से पहले अपनी रिपोर्ट सौंप देगी? जबकि इस कमेटी के अन्य सदस्यों की घोषणा होनी अभी बाकी है, माना जा रहा है कि इस कमेटी में एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश को लिया जाना है। भारत की संसदीय परंपरा के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी सबसे बड़े संवैधानिक पद पर काबिज रहे किसी व्यक्ति को ऐसी कोई जिम्मेदारी मिली हो। ’वन नेशन, वन इलेक्शन’ के मुद्दे पर केंद्र सरकार की ’हां’ में ’हां’ मिलाने वाले चुनाव आयोग से भी यह पूछा जाना चाहिए कि जब वह दो राज्यों के चुनाव साथ-साथ नहीं करा सकता, (अभी पिछले दिनों संपन्न हुए गुजरात व हिमाचल के चुनाव इसकी मिसाल हैं) तो आम चुनावों के साथ-साथ वह ढाई दर्जन राज्यों के चुनाव कैसे साथ करा सकता है? क्या उसके पास इसके लिए इतनी बड़ी मशीनरी है? इतनी बड़ी संख्या में ईवीएम हैं? लोग हैं? अभी कुछ महीने बाद ही नवंबर माह में 5 राज्यों यानी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम व तेलांगना में विधानसभा चुनाव होने हैं, उम्मीद की जा रही थी कि सितंबर माह के अंत तक चुनाव आयोग इनकी तारीखों की घोषणा भी कर देगा, तो अब क्या होगा? क्या इन पांचों राज्यों के चुनाव रद्द कर लोकसभा की चुनाव की तारीखों तक यहां राष्ट्रपति शासन लग दिए जाएंगे? और इन राज्यों में जहां कथित तौर पर भाजपा की हालत पतली है वहां केंद्र सरकार की अगुवाई में चुनाव होंगे? यह बात कितनी नीति सम्मत है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं, जिन्होंने आगामी चुनाव के लिए काफी पहले से अपना एजेंडा तय कर रखा है। अगर केंद्र सरकार इसी खटराग पर चली तो यूपी, पंजाब, कर्नाटक जैसे राज्यों का क्या होगा जहां पिछले कुछ दिनों में चुनाव हुए हैं? इन बड़े सवालों से गुजर कर ही केंद्र सरकार को ’वन नेशन, वन इलेक्शन’ के खटराग को सिरे चढ़ाना होगा।
कयास ये भी हैं
कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि 18 से 22 सितंबर तक आहूत होने वाले संसद के विशेष सत्र में सरकार के एजेंडे पर तीन प्रमुख बिल हैं। एक तो ’वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर बिल लाया जा सकता है, केंद्र सरकार से जुड़े सूत्र यह भी बताते हैं कि सरकार की ‘समान नागरिक संहिता’ और ‘महिला आरक्षण’ पर भी विधेयक लाने की पूरी तैयारी है। अब तक संसद पुराने संसद भवन से ही चल रही है, जबकि नए बने संसद भवन में लोकसभा के 888 और राज्यसभा के 384 सांसदों के बैठ सकने की क्षमता है। 2026 के बाद नई जनगणना के आधार पर सीटों का नया परिसीमन आकार पा सकता है। 1973 में जब आखिरी बार लोकसभा का परिसीमन किया गया था तब देश की आबादी 54.80 करोड़ थी यानी एक लोकसभा सांसद पर लगभग 10 लाख लोगों के प्रतिनिधित्व का जिम्मा था, आज देश की जनसंख्या बढ़ कर 143 करोड़ के आसपास पहुंच गई है, यानी एक सांसद पर लगभग 25 लाख लोगों के प्रतिनिधत्व का जिम्मा आ गया है। नए परिसीमन में उत्तर व दक्षिण के राज्यों का मसला भी फंसेगा, क्योंकि दक्षिण की तुलना में उत्तर भारतीय राज्यों की आबादी तेजी से बढ़ी है, यानी कि आबादी के हिसाब से उत्तर के राज्यों की लोकसभा सीटें बढ़ेंगी और उस अनुपात में दक्षिण में सीटें घटेंगी, इस बात का अभी से दक्षिण के राज्य विरोध कर रहे हैं। आखिरी परिसीमन 2002 में शुरू होकर 2008 तक चला था। सो, अभी से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर संसद में ’महिला आरक्षण विधेयक’ पारित हो जाता है तो नए परिसीमन में महिला प्रतिनिधित्व को ध्यान में रख कर परिसीमन में नई सीटों का गठन होगा। संघ से जुड़े सूत्रों का दावा है कि 22 जनवरी से एक सप्ताह तक चलने वाले राम मंदिर उद्घाटन समारोह का असर बस यूपी तक सीमित रह सकता है इसे देखते हुए ही भाजपा नेतृत्व अन्य बड़े विकल्पों की तलाश में जुटा है।
माया की माया अपरंपार
भले ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुनादी कर दी हो कि वह विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ और शासक गठबंधन ‘एनडीए’ से बराबर की दूरी रखेंगी, पर इसके बावजूद उन्होंने अपने सियासी विकल्प खुले रखे हैं। शायद इसी कड़ी में पिछले दिनों उन्हें सपा मुखिया अखिलेश यादव का फोन आ गया। अखिलेश चाहते थे कि घोसी उप चुनाव में माया सपा उम्मीदवार का समर्थन कर दें जिससे कि दलबदलू भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह को कायदे से सबक सिखाया जा सके। पर कहते हैं माया ने अखिलेश के इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया। पर दोनों नेताओं में इस बात पर सहमति जरूर बनी है कि जनवरी माह में दोनों एक बार साथ जरूर बैठेंगे, 15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन आता है, जन्मदिन की बधाई देने के लिए अखिलेश माया के घर जाएंगे फिर लोकसभा चुनावों को लेकर आगे की रणनीति पर चर्चा हो सकती है। बातों ही बातों में अखिलेश ने माया से यह भी स्पष्ट कर दिया कि ’सपा अभी सिर्फ लोकसभा की 33 सीटों पर ही अपना पूरा फोकस रख रही है’, यानी अखिलेश ने एक तरह से माया को सिग्नल भेज दिया है कि ’अगर वे चाहे तो 2019 के प्रारूप वाले गठबंधन पर फिर से काम हो सकता है।’
हरियाणा भाजपा में भगदड़
हरियाणा भाजपा में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है, पिछले दिनों यहां के तीन भाजपा सांसद पार्टी बदलने को तत्पर दिखे। ये तीन सांसद बारी-बारी से कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा से मिलने पहुंचे और अपने लिए कांग्रेस के टिकट की मांग की। कहते हैं हुड्डा ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि ’उनकी ओर से तो ’हां’ है, बस उन्हें इसके लिए एक बार पार्टी हाईकमान की रज़ामंदी मिल जाए।’ वहीं भाजपा के एक और वरिष्ठ नेता राव इंद्रजीत सिंह ने अपने पार्टी हाईकमान को संदेशा भिजवा दिया है कि ’अगर उनकी सीट भूपेंद्र यादव को दी गई तो वे कांग्रेस में शामिल होने से नहीं हिचकेंगे।’ भाजपा सांसदों की नाखुशी का नजारा तब भी देखने को मिला, जब राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने राज्य के सांसदों की एक अहम मीटिंग तलब की तो उस मीटिंग में प्रदेश के 10 में से मात्र 6 सांसद ही पहुंचे।
सुर बदलते खड़गे
पिछले दिनों दिल्ली को लेकर कांग्रेस की एक अहम बैठक आहूत थी, मीटिंग की शुरूआत पार्टी अध्यक्ष खड़गे के जोरदार भाषण से हुई, जिसमें खड़गे ने कहा कि ’कांग्रेस दिल्ली में 2 फीसदी तक सिमट कर रह गई है, अगर कांग्रेस को दिल्ली में फिर से पुनर्जीवित करना है तो हमें यहां गंभीरता से आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने को सोचना होगा। भले ही आप के साथ गठबंधन कर हमें लोकसभा की 3 सीटें ही लड़ने को मिले, पर इससे विधानसभा चुनाव तक हमारा कैडर फिर से तैयार हो जाएगा।’ इस पर राहुल गांधी ने कह दिया कि ’वे इस मीटिंग में कोई भाषण सुनने नहीं बल्कि लोगों के राय-विचार सुनने को आए हैं।’ राहुल के मनोभावों को समझते अलका लांबा और संदीप दीक्षित जैसे नेताओं ने आप की बखिया उधेड़नी शुरू कर दी। इस पर कांग्रेस के एक पूर्व दलित विधायक जयकिशन ने कहा कि ’आप को गाली देने से बेहतर है, हम उनके साथ जाने की सोचे, नहीं तो पहले भी हमारा कैडर टूट कर आप में चला गया था, इस बार और लोग चले जाएंगे।’ इस पर राहुल ने चुटकी लेते हुए कहा कि ’लगता है आप के लोग हमारी मीटिंग में आ गए हैं।’ राहुल के इस तंज से खड़गे की पेशानियों पर बल पड़ गए, तो राहुल ने खड़गे को टोकते हुए कहा-’खड़गे जी, मेरी बातों को इतनी सीरियसली मत लीजिए, मैं तो बस मजाक कर रहा था।’
…और अंत में
महाराष्ट्र में जब से भाजपा ने एकनाथ शिंदे व अजित पवार जैसे अपने नए गठबंधन साथी बनाए हैं, जमीन पर उसका जनाधार दरकने लगा है, अभी भाजपा का अपना सर्वे बता रहा है कि ’अगर आज की तारीख में लोकसभा के चुनाव हो गए तो भाजपा अपने नए गठबंधन साथियों के साथ महाराष्ट्र की मात्र 18 सीटों पर सिमट सकती है।’ क्या यही वजह है कि पिछले दिनों पीएम मोदी की महाराष्ट्र की अहमदनगर, जलगांव व अकोला की तीनों रैलियां कैंसिल कर दी गई, क्या पीएम अजित व शिंदे के साथ एक मंच पर दिखना नहीं चाहते थे?
(एनटीआई- gossipguru.in)
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