राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 : समावेशी विकास एवं ग्रामीण समृद्धि हेतु नीडोनॉमिक्स का मार्गदर्शन

प्रो. मदन मोहन गोयल, प्रवर्तक नीडोनॉमिक्स एवं पूर्व कुलपति (त्रिवार)

नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट  राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 की सराहना करता है क्योंकि इसे नौ अध्यायों में विकसित एक व्यापक ढाँचे के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की दिशा में है। यह नई नीति भारतीय सांस्कृतिक प्रकृति  में निहित सहकार और सामूहिक कल्याण पर आधारित एक दूरदर्शी दृष्टि को दर्शाती है, जिसका उद्देश्य सहकारी संस्थाओं को ग्रामीण समृद्धि, समावेशन और सततता के इंजन में बदलना है।

सहकार से समृद्धि : प्रेरणादायी दृष्टि

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा दिया गया आह्वान सहकार से समृद्धि केवल एक नारा नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक को सशक्त बनाने की रणनीतिक रूपरेखा है, जो सहकार की सामूहिक शक्ति पर आधारित है। यह भारतीय परंपरा पर आधारित है, जहाँ सहकार सांस्कृतिक ताने-बाने में गहराई से जुड़ा हुआ है। सामुदायिक खेती से लेकर स्थानीय स्वयं-सहायता समूहों तक, भारत ने सामूहिक प्रयास की शक्ति का प्रदर्शन किया है।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने सही कहा कि सहकार भारतीय संस्कृति का सार है—यह भारत का विचार है जिसे दुनिया के साथ साझा किया गया है। भारत में 8 लाख से अधिक सहकारी समितियाँ हैं, जिनमें 2 लाख ऋण सहकारी और 6 लाख गैर-ऋण सहकारी शामिल हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा सहकारी नेटवर्क है। ये समितियाँ डेयरी, आवास, मत्स्य, वस्त्र, चीनी, उपभोक्ता वस्तुएँ, विपणन, अस्पताल और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत हैं। देशभर में 30 करोड़ सदस्य हैं, जिनमें से 13 करोड़ सदस्य प्राथमिक कृषि ऋण समितियों ( पीएसीएस) के हैं। यह व्यापक पहुँच सहकार क्षेत्र को समानतापूर्ण विकास का अभूतपूर्व अवसर देती है।

अब नई नीति की आवश्यकता क्यों?

आखिरी राष्ट्रीय सहकारी नीति वर्ष 2002 में बनाई गई थी। इसके बाद पिछले दो दशकों में वैश्वीकरण, डिजिटलीकरण और तकनीकी प्रगति ने सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। पुरानी रूपरेखाएँ मौजूदा चुनौतियों जैसे ग्रामीण बेरोज़गारी, कृषि संकट, समावेशी ऋण, पेशेवरकरण और सतत विकास का समाधान नहीं कर सकतीं।

सहकारी समितियों के गठन को मौलिक अधिकार के रूप में संवैधानिक मान्यता और सहकारिता मंत्रालय की स्थापना एक नये युग की शुरुआत है। यह समयानुकूल नीति की माँग करता है, जो बदलती वास्तविकताओं के अनुरूप हो, संस्थाओं को मज़बूत बनाए और सहकार की भावना को एक जन आंदोलन के रूप में प्रोत्साहित करे।

प्रमुख पहलें

सहकारिता मंत्रालय ने क्षेत्र को मज़बूत करने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं:

  1.  पीएसीएस और प्राथमिक सहकारी समितियों का सशक्तीकरण
    • नए मॉडल उपविधानों से  पीएसीएस को बहुउद्देशीय इकाइयों में बदलना।
    • 2 लाख नई पीएसीएस .   पीएसीएस, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना।
    • सहकारी आधारित श्वेत क्रांति
    • पीएसीएस स्तर पर विकेन्द्रीकृत अनाज भंडारण—विश्व का सबसे बड़ा।
    •  जीईएम पोर्टल पर खरीदार के रूप में सहकारी समितियों को शामिल करना।
  2. सहकार में सहकार को बढ़ावा देना
    • निर्यात, जैविक उत्पाद और बीज क्षेत्र में 3 नई बहु-राज्य सहकारी समितियों की स्थापना।
    • ‘सहकार में सहकार’ अभियान का राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन।
    • बैंक मित्र भूमिकाओं और रूपे किसान क्रेडिट कार्ड वितरण में प्राथमिक सहकारियों को जोड़ना।
  3. राजकोषीय और कानूनी सुधार
    • ₹1–10 करोड़ आय वाली सहकार समितियों पर अधिभार 12% से घटाकर 7%।
    •  एमएटी दर 18.5% से घटाकर 15%।
    • नकद निकासी की सीमा ₹1 करोड़ से बढ़ाकर ₹3 करोड़ (बिना टीडीएस ।

ये पहल नीडोनॉमिक्स के उस मंतव्य को साकार करती हैं जो “लालच नहीं, ज़रूरत” पर आधारित है। सहकारी समितियाँ जब ग्रामीण आवश्यकताओं—ऋण, भंडारण, रोज़गार और आजीविका—को पूरा करती हैं, तो वे नागरिकों को सतत तरीके से सशक्त बनाती हैं।

विकसित भारत 2047 की दृष्टि

इस नीति का लक्ष्य है कि सहकार-आधारित सतत विकास के माध्यम से भारत को 2047 तक विकसित भारत बनाने में सहयोग मिले। इसका मिशन है कि एक मज़बूत कानूनी, आर्थिक और संस्थागत ढाँचा तैयार हो, जिससे सहकारी संस्थाएँ पारदर्शी, प्रौद्योगिकी-आधारित, पेशेवर प्रबंधित और आत्मनिर्भर बन सकें।

यह दृष्टि छह मिशन स्तंभों पर आधारित है:

  1. मज़बूत नींव—स्थानीय स्तर पर सशक्त सहकारी समितियाँ।
  2. जीवंतता—आत्मनिर्भर एवं गतिशील सहकारी पारिस्थितिकी तंत्र।
  3. भविष्य की तैयारी—पेशेवर प्रबंधन और तकनीक।
  4. समावेशिता—सहकार को जन आंदोलन बनाना।
  5. नए क्षेत्रों में विस्तार—नवीकरणीय ऊर्जा, आईटी सेवाएँ, ई-कॉमर्स आदि।
  6. नई पीढ़ी का निर्माण—सहकारिता मूल्यों को शिक्षा और अनुभव के माध्यम से युवाओं तक पहुँचाना।

शासन और क्रियान्वयन तंत्र

नीति ने दो-स्तरीय शासन तंत्र का प्रस्ताव रखा है:

  • राष्ट्रीय संचालन समिति, जिसकी अध्यक्षता केन्द्रीय सहकारिता मंत्री करेंगे।
  • नीति क्रियान्वयन एवं निगरानी समिति, जिसकी अध्यक्षता केन्द्रीय सहकारिता सचिव करेंगे और इसमें नीति आयोग, NABARD, NDDB, NCDC, NCCT, VAMNICOM और राज्य सहकारिता विभागों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

नीडोनॉमिक्स अंतर्दृष्टि

नीडोनॉमिक्स के दृष्टिकोण से, यह नीति समयानुकूल और आवश्यक है क्योंकि यह लालच-आधारित वृद्धि के बजाय ज़रूरत-आधारित विकास को प्राथमिकता देती है।

  • किसानों के लिए : बहुउद्देशीय PACS और विकेन्द्रीकृत भंडारण से बिचौलियों की शोषण प्रवृत्ति कम होगी और किसानों की सौदेबाज़ी शक्ति बढ़ेगी।
  • महिलाओं के लिए : डेयरी, वस्त्र और स्वयं-सहायता पहल में महिला-नेतृत्व वाली सहकारी समितियाँ लैंगिक समावेशिता सुनिश्चित करेंगी।
  • युवाओं के लिए : सहकारी उन्मुख शिक्षा और उद्यमिता कार्यक्रम जनसांख्यिकीय लाभांश को सहकारिता शक्ति में बदलेंगे।
  • सततता के लिए : जैविक खेती, स्थानीय उद्यम और नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर सतत विकास लक्ष्यों से मेल खाता है।

चुनौतियाँ

  • सहकारी समितियों का पेशेवरकरण करते हुए लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखना।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाव।
  • सीमित डिजिटल साक्षरता वाले ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीक का प्रयोग।
  • केन्द्र और राज्यों की भूमिका में संतुलन।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 सरकार और नागरिकों के बीच एक नए सामाजिक अनुबंध का प्रतीक है। यह केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि एक परिवर्तनकारी आंदोलन है जो ग्रामीण भारत को विकसित भारत 2047 की आधारशिला बना सकता है। नीडोनॉमिक्स के मार्ग—ज़रूरत, सततता और समावेशन—को अपनाकर सहकारी क्षेत्र सामूहिक प्रगति और मानवीय गरिमा का मॉडल बन सकता है।

आगे बढ़ते हुए स्पष्ट मंत्र होना चाहिए:सहकार से समृद्धि

 

 

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