नाटो की बचाव रणनीति: यूरोप की रक्षा और एकता को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,25 मार्च।
नाटो (NATO – North Atlantic Treaty Organization) इस समय अपनी सुरक्षा रणनीति को मजबूत करने और यूरोप की रक्षा को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों के बीच, NATO ने अपनी संयुक्त सैन्य क्षमताओं और सहयोगी देशों के बीच एकता को प्राथमिकता दी है

यूरोप की सुरक्षा को मजबूत करने के इस प्रयास को कई विशेषज्ञ NATO की “सर्वाइवल स्ट्रैटेजी” यानी बचाव रणनीति के रूप में देख रहे हैं। इसका उद्देश्य सिर्फ रूस के संभावित खतरे को रोकना ही नहीं, बल्कि सदस्य देशों के बीच सैन्य और राजनीतिक एकता को और अधिक मजबूत करना भी है

नाटो वर्तमान में यूरोप की रक्षा को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है, जिनमें शामिल हैं:

  1. यूरोप में सैन्य उपस्थिति बढ़ाना – नाटो के सदस्य देश पूर्वी यूरोप में अमेरिकी और यूरोपीय सेनाओं की तैनाती बढ़ा रहे हैं। इससे रूस के खिलाफ निवारक प्रभाव (deterrence) पैदा किया जा सकेगा।

  2. नए रक्षा समझौते और सैन्य अभ्यास – NATO ने हाल ही में अपने सहयोगी देशों के साथ बड़े स्तर पर संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं, जिससे युद्ध की स्थिति में तैयारियों को परखा जा सके।

  3. साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता – रूस और चीन से बढ़ते साइबर खतरों को देखते हुए NATO अब साइबर डिफेंस को अपनी रणनीति का अहम हिस्सा बना रहा है

  4. युद्धक्षेत्र के लिए नई टेक्नोलॉजी – NATO आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ड्रोन टेक्नोलॉजी और मिसाइल डिफेंस सिस्टम को और उन्नत बना रहा है।

  5. फिनलैंड और स्वीडन की सदस्यता – हाल ही में फिनलैंड NATO में शामिल हुआ, और स्वीडन की सदस्यता भी अंतिम चरण में है। इससे यूरोप की सामूहिक सुरक्षा नीति को नया बल मिला है

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से यूरोप में सुरक्षा को लेकर खतरे बढ़ गए हैं। कई विश्लेषकों का मानना है कि रूस केवल यूक्रेन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि बाल्टिक देशों (लिथुआनिया, लातविया, एस्टोनिया) और पोलैंड तक अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर सकता है। यही कारण है कि NATO ने अपनी सैन्य शक्ति को और अधिक आक्रामक रूप से संगठित करने का फैसला लिया है

नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने हाल ही में कहा,
“नाटो एकजुट है और हम अपने सदस्य देशों की सुरक्षा की गारंटी के लिए हर संभव कदम उठाएंगे। हमारा लक्ष्य केवल रक्षा करना है, लेकिन हम किसी भी खतरे का सामना करने के लिए तैयार हैं।”

हालांकि NATO अपनी सुरक्षा रणनीति को और मजबूत कर रहा है, लेकिन संगठन के भीतर भी कुछ मतभेद उभर रहे हैं।

  • अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच कुछ नीतिगत मतभेद हैं, खासकर कि यूरोप को अपनी सैन्य शक्ति में कितनी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।

  • फ्रांस और जर्मनी चाहते हैं कि यूरोप खुद अपनी रक्षा कर सके, जबकि अमेरिका का मानना है कि NATO को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

  • तुर्की और हंगरी जैसे कुछ देश रूस से करीबी संबंध बनाए रखना चाहते हैं, जिससे NATO की एकता को चुनौती मिल सकती है।

नाटो की नई रणनीति सिर्फ यूरोप ही नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक सुरक्षा पर भी असर डालेगी। यदि नाटो अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, तो यह रूस और चीन जैसे देशों के लिए एक कड़ा संदेश होगा कि पश्चिमी गठबंधन अब और अधिक संगठित और तैयार है।

रूस के विस्तारवादी इरादों पर रोक लग सकती है।
यूरोप में सैन्य संतुलन बना रहेगा।
नए टेक्नोलॉजी और साइबर सुरक्षा में निवेश बढ़ेगा।
वैश्विक स्तर पर सैन्य गुटबंदी और तेज हो सकती है।

नाटो की “सर्वाइवल स्ट्रैटेजी” का उद्देश्य सिर्फ यूरोप की सुरक्षा को मजबूत करना ही नहीं, बल्कि सदस्य देशों के बीच सामूहिक रक्षा सहयोग को और गहरा करना भी है

हालांकि, यह देखना बाकी है कि नाटो की इस नई नीति को कितनी सफलता मिलती है और क्या यह वास्तव में रूस के संभावित खतरों को रोक पाने में सक्षम होगी या नहीं। लेकिन यह निश्चित है कि नाटो के ये कदम आने वाले वर्षों में वैश्विक सुरक्षा नीति को नए सिरे से परिभाषित करेंगे

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