कोई भी देश दूसरे देशों के कानूनों के साथ समन्वय बनाए बिना सुरक्षित नहीं रह सकता: राष्ट्रपति मुर्मु

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ अटॉर्नीस एंड सॉलिसिटर्स जनरल कॉंफ़्रेंस CAGSC’24 के समापन समारोह की अध्यक्षता की

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,04 फरवरी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ अटॉर्नीस एंड सॉलिसिटर्स जनरल कॉंफ़्रेंस CAGSC’24 के समापन समारोह की अध्यक्षता की। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने समारोह को संबोधित किया।इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत, केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, भारत के अटॉर्नी जनरल डॉ आर वेंकटरमणी, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कॉमनवेल्थ लीगल एजुकेशन एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ एस शिवकुमार सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि यह कॉंफ़्रेंस ऐसे समय में हो रही है जब ज्योग्राफिकल बाउंड्री का विश्व में कोई महत्व नहीं बचा है।उन्होंने कहा कि ज्योग्राफिकल बाउंड्री का महत्व अब न तो कॉमर्स के लिए रहा और न ही क्राइम के लिए रहा। कॉमर्स भी बॉर्डरलेस हो रहा है और क्राइम भी और ऐसे समय में यदि कॉमर्स के विवाद और क्राइम से बॉर्डरलेस तरीके से निपटना है तो हमें कोई न कोई नई व्यवस्था और परंपरा शुरू करनी होगी।

गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि आम व्यक्ति के जीवन में न्याय का बहुत महत्व है और न्याय के प्रति उनकी बहुत श्रद्धा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, नई दिल्ली से एक हजार किलोमीटर दूर स्थित सुदूर और भारत के सबसे पिछड़े इलाके और सबसे पिछड़े ट्राइब से राष्ट्रपति पद तक पहुंची व्यक्ति हैं। यह बताता है कि भारत में लोकतंत्र एवं संविधान की स्पिरिट की जड़ें कितनी गहरी हैं।

अमित शाह ने कहा इस कॉंफ़्रेंस का दायरा केवल कोर्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कॉमनवेल्थ देशों और एक प्रकार से पूरी दुनिया के आम लोगों से जुड़ा हुआ है।अमित शाह ने कहा कि हर देश के संविधान में भावनाएँ भी होती हैं और कुछ मूल्यों को भी निर्धारित किया गया होता है। परंतु न्याय और अधिकार सभी में कॉमन होते हैं और इन्हें जमीन पर उतारने और न्याय को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का काम न्याय तंत्र ही करता है।

गृह मंत्री ने कहा कि जस्टिस डिलीवरी में क्रॉस बॉर्डर चैलेंज की बात करें तो आज इंटरकनेक्टेड दुनिया में ज्योग्राफिकल बॉर्डर और बैरियर को कोई नकार नहीं सकता। परंतु ट्रेड, कॉमर्स, कम्युनिकेशन और क्राइम में से बैरियर और बॉर्डर दोनों शब्द निकल चुके हैं। आज क्राइम और ट्रेड बॉर्डरलेस हो गया है। उन्होंने कहा कि छोटे साइबर फ्रॉड से ग्लोबल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम तक और लोकल डिस्प्यूट से लेकर क्रॉस बॉर्डर डिस्प्यूट तक जुड़ाव बहुत गहरा होता जा रहा है। छोटी सी चोरी से लेकर बैंकिंग सिस्टम को हैक करना और डाटा हैक करने तक की पूरी प्रक्रिया अब समाप्त हो चुकी है और स्थानीय क्राइम से इंटरनेशनल टेररिज्म का जुडा़व भी गहरा होता जा रहा है। आज क्राइम और क्रिमिनल दोनों बॉर्डर को नहीं मानते हैं, ऐसे में उन्हें कंट्रोल करने के लिए लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी को मजबूत बनाना पड़ेगा, वरना क्राइम पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सकेगा और ट्रेड सुचारू रूप से नहीं हो सकेगा।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि जहां तक ट्रेड का सवाल है, एक्सचेंज रेट का उतार-चढ़ाव, ट्रेड प्रोटेक्शन की संधियां, इंटरनेशनल स्टैंडर्ड और रेगुलेशन के कंप्लेंट से जुड़े हुए मुद्दे और कॉन्ट्रैक्ट एवं डिस्प्यूट रेजोल्यूशन जैसे कई मुद्दों पर बहुत सारा काम हुआ है। मगर आज भी कई ऐसे मुद्दे हैं जहां पर क्राइम कंट्रोल के लिए हमें काम करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि कानून के लिए जियोग्राफीकल बॉर्डर की मर्यादा नहीं होनी चाहिए, कानून के लिए ज्योग्राफिकल बॉर्डर मीटिंग पॉइंट होना चाहिए और वह मीटिंग पॉइंट तय करने का काम ऐसी कॉंफ़्रेंस के जरिए ही हो सकेगा, तभी सारे देशों के कानून एक-दूसरे को रेसिप्रोकेट करेंगे और जस्टिस डिलिवरी हो पाएगी। उन्होंने कहा कि कोई भी देश दूसरे देशों के कानूनों के साथ समन्वय बनाए बिना सुरक्षित नहीं रह सकता।

अमित शाह ने कहा कि आज के टेक्नोलॉजी के दौर में जस्टिस डिलीवरी की कल्पना में ‘कोऑपरेशन’ और ‘कोऑर्डिनेशन’ को मूल मंत्र बनाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आज के ग्लोबल क्राइम चैलेंज जब सीमाओं का सम्मान नहीं करते हैं तो जस्टिस डिलीवरी में भी हमें सीमाओं को एंड (End) यानी साध्य की तरह नहीं बल्कि मीन्स (Means) यानी साधन की तरह देखना होगा। जस्टिस डिलीवरी में सीमाओं को बाधा नहीं मीटिंग पॉइंट के रूप में डेवलप करना होगा। अमित शाह ने कहा कि भारत ने इस क्षेत्र में ढेर सारा काम किया है। ट्रेड डिस्प्यूट हल करने को लेकर और क्रिमिनल लॉ के कंप्लीट रिफॉर्म के लिए हमने सभी स्टेकहोल्डर के साथ चर्चा करके भारत में इसका तेवर और स्वरूप बदला है। हमने हर जगह टेक्नोलॉजी का प्रयोग इतना बढ़ाया है कि आने वाले 100 साल तक टेक्नोलॉजी में जितने भी बदलाव आएंगे, उनका समावेश संभव हो सकेगा।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि आज के बदलते परिदृश्य में न्यायपालिका को भी बदलना पड़ेगा। क्रॉस बॉर्डर मामलों के मद्देनज़र टेक्नोलॉजी के उपयोग को न्याय की पूरी प्रक्रिया में अडॉप्ट करना पड़ेगा। हम 19वीं सदी के कानून से 21वीं सदी में जस्टिस डिलीवरी नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि तीन नए कानून-भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के पूरी तरह लागू हो जाने के बाद भारत का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम विश्व का सबसे आधुनिक क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बन जाएगा।उन्होंने कहा कि हमारी न्यायिक व्यवस्था में एआई आधारित ट्रांसलेशन व्यवस्था से हमें बहुत ज्यादा फायदा हो सकता है।हम लीगल सिस्टम और केस की बारीकियों को समझने में एआई का बहुत उपयोग कर सकते हैं।

अमित शाह ने कहा कि जस्टिस के पूरे सिस्टम में 3A यानी एक्सेसिबल, अफॉर्डेबल और अकाउंटेबल बनाना बहुत जरूरी है।इन तीनों के लिए टेक्नोलॉजी का अधिकतम प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नए क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तीनों कानूनों में टेक्नोलॉजी को भी स्थान दिया गया है और फॉरेंसिक को भी जगह दी गई है। एविडेंस आधारित प्रॉसीक्यूशन को बढ़ावा देने के लिए हमने 7 साल और उससे ज्यादा की सजा के प्रावधान वाले मामलों की जांच के लिए साइंटिफिक ऑफिसर का विजिट कंपलसरी किया है।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि नए कानूनों को लागू करने से पहले ही हम पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर बना चुके हैं और ह्यूमन राइट्स और हुमन रिसोर्स जेनरेशन का काम भी फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाकर पूरा कर चुके हैं। अब हर साल 35000 साइंटिफिक अधिकारी फ़ोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी से शिक्षा पूरी करेंगे।इंटीग्रेटेड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम आईसीजेएस के माध्यम से हमने देश के सारे पुलिस स्टेशनों को एक ही सॉफ्टवेयर से जोड़ने का काम किया है ताकि वे अपनी-अपनी भाषा में ऑनलाइन काम कर सकें।पुलिस के माध्यम से लगभग 8 करोड़ से ज्यादा लिगेसी डाटा को हम स्टोर कर चुके हैं। ई कोर्ट में 15 करोड़ से ज्यादा लोअर जुडिशियरी के डाटा को ऑनलाइन किया जा चुका है। ई प्रिजन से ढाई करोड़ से ज्यादा कैदियों का डाटा अब ऑनलाइन हो चुका है। ई प्रॉसीक्यूशन से एक करोड़ से ज्यादा प्राशिक्‍यूशन का डाटा ऑनलाइन हो चुका है। पुलिस, कोर्ट, प्रॉसीक्यूशन और फोरेंसिक जैसे पिलर्स के लिए भी एआई का उपयोग करते हुए सॉफ्टवेयर बन रहे हैं। इससे ढेर सारी चीजें सरल हो जाएंगी। तीनों कानून का कंपलीट इंप्लीमेंटेशन होने के बाद किसी भी एफआईआर में हाई कोर्ट तक 3 साल में न्याय मिल जाएगा।

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