अब अपने भोपाल का पत्रकार भवन बनेगा स्टेट मीडिया सेंटर

 अलीम बजमी
अब अपना पत्रकार भवन स्टेट मीडिया सेंटर की शक्ल में आकार लेगा। ये खुशी की बात है। लंबे समय से इसके पुर्ननिर्माण का मामला अटका था। लेकिन शिवराज सिंह चौहान सरकार ने इसे अंतिम रूप दे दिया है। इसके लिए पत्रकारों ने सीएम को बधाई दी है। स्टेट मीडिया सेंटर में अत्याधुनिक सुविधाएं और व्यवस्थाएं होगी। आधुनिक संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल करने का अवसर मिलेगा। अब पत्रकारों के बीच इसका दर्जा नालंदा के रूप में होगा। इसे गतिविधियों का केंद्र बनाया जाएगा। सम-सामयिक मुद्दों की चर्चा का भी ये घर होगा। आशा है कि प्रस्तावित स्टेट मीडिया सेंटर हाईटेक होने से यह पत्रकारों के लिए बहु उपयोगी होगा। नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए ज्ञान, प्रशिक्षण और आपसी विमर्श का एक प्रमुख केंद्र भी बनेगा। पत्रकारिता की समझबूझ रखने वाले बुजुर्ग पत्रकारों के अनुभव का लाभ भी नई पीढ़ी को मिलेगा।
यद्यपि पत्रकार भवन से मेरा भावनात्मक लगाव है। लंबे समय तक यहां मैंने ठहरकर जिंदगी को जिया है। इसके जर्रे-जर्रे से वाकिफ हूं। करीब तीन दशक पहले पत्रकार भवन समिति संचालक और भोपाल श्रमजीवी पत्रकार संघ के महासचिव के नाते यहां की संगठनात्मक, बौद्धिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में मेरी सक्रिय हिस्सेदारी रही है। सच पूछिए तो इस भवन से जुड़े कई फसाने और अफसाने है। यहां मैंने बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तर्ज पर कई लोगों काे कथित रूप से हस्तक्षेप करते हुए देखा लेकिन दाल नहीं गली तो वे यहां के माहौल से विदा हो गए।
अधिकांश लोगों के लिए ये सीमेंट क्रांकीट का भवन हो सकता था। लेकिन सच जानिए तो कुछ के त्याग, तपस्या,बलिदान और परिश्रम की पहचान के रूप में ये भवन रहा। इस भवन में अपना योगदान देने वाले पत्रकारों की कई स्मृतियां है। कहानियां है।
अलग-अलग काल खंड में इसका निजाम भी अलग-अलग हाथों में रहा। लेकिन इसको व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का एजेंडा चलाने के कथित प्रयासों से 21वीं सदी की शुरुआत में इसमें दीमक लगने की इब्तिदा हुई। विस्तार मैं न जाते हुए क्योंकि बदन तो अपना ही निर्वस्त्र होगा।
आइए, थोड़ा फ्लैश बैक में चले। दरअसल पत्रकार भवन (मालवीय नगर में) निर्माण का ख्वाब वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय श्री धन्नालाल शाहजी ने देखा था। इसका जिक्र जब उन्होंने अपने मित्रों के बीच किया तो सबने सहमति में सिर तो हिलाया लेकिन जिम्मेदारी उठाने के मामले में अपनी मजबूरियां गिनाने लगे। लेकिन श्री धन्नालाल शाह मायूस नहीं हुए। हार नहीं मानी। एक योद्धा के रूप में अपने संकल्प को अमली जामा पहनाने कमर कस ली। ये बात उस समय की है, जब राजधानी भोपाल हुजूर तहसील का हिस्सा थी। यह तहसील सीहोर जिले के अधीन थीं। यहां का प्रशासनिक निजाम एक एडीएम के हाथों में था। आखिरकार वर्ष 1968-69 में इसे बनाने की कवायद शुरु हुई। इस मुहिम में सारथी के रूप में स्वर्गीय धन्नालाल शाह के साथ सर्वश्री सूर्य नारायण शर्मा, इश्तियाक आरिफ, लज्जाशंकर हरदेनिया, ध्यानसिंह तोमर राजा, त्रिभुवन यादव, प्रेम श्रीवास्तव, यशवंत अरगरे , डी.वी .लेले, वीटी जोशी, सत्यनारायण श्रीवास्तव, राधेश्याम शर्मा , बलभद्र प्रसाद तिवारी, युगल बिहारी अग्निहोत्री जैसे कई ख्यातिनाम पत्रकार जुड़े। ये सभी दिवंगत हो चुके हैं लेकिन उस समय बनी पत्रकार भवन समिति के सदस्य के रूप में हमारे बीच श्री हरदेनियाजी है। उनका आशीर्वाद हम सभी को मिलता रहे।
इन सभी खांटी पत्रकारों ने इकन्नी-दुकन्नी से लेकर रुपए तक एकत्र करना शुरू किया। उस दौर में अविभाजित मध्य प्रदेश में राजनीतिक संग्राम चरम पर था। संयुक्त विधायक दल के नेता के रूप में गोविंद नारायण सिंह मुख्यमंत्री थे। उनकी सरकार समर्थन के भरोसे टिकी थी। लेकिन ये समर्थन वापस लिए जाने पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। उस दौरान सीहोर कलेक्टर कार्यालय तक पत्रकार भवन निर्माण के लिए जमीन आवंटन की अर्जी पहुंच चुकी थी। सरकार की मंजूरी मिलने से लीज पर जमीन आवंटन का रास्ता साफ हो गया था। प्रसंगवश इसका जिक्र जरुरी है कि राजमाता श्रीमती विजयाराजे सिंधिया तक पत्रकार भवन निर्माण का मामला पहुंचने पर उन्होंने खुले मन से बड़ा दान दिया था। दूसरी तरफ, भवन निर्माण समिति का गठन होने के बाद पत्रकार भवन निर्माण ने रफ्तार पकड़ ली। सामूहिक प्रयासों से एक बड़े भवन की शक्ल में ये आकार ले सका। यद्यपि आकार-प्रकार एवं क्षेत्रफल 17 हजार वर्ग फुट होने के कारण ये मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा पत्रकारों का भवन था। इस भवन का संचालन पत्रकार भवन समिति के हाथों में था तो ये समिति इंडियन वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अधीन थीं। इसका उपनाम आईएफडब्ल्यूजे था।
उस समय भोपाल आने वाले बाहरी पत्रकारों के ठहरने की व्यवस्था यहां रही तो पत्रकार वार्ताएं भी यहां रोजाना होती थीं। इसकी खास बात ये भी कि यहां प्रेस कॉन्फ्रेंस करना किसी को भी महंगा नहीं पड़ता क्योंकि सिद्धांत ये था कि सिर्फ एक चाय-दो बिस्किट के अलावा अन्य कुछ नहीं परोसा जाएगा। इसके अलावा मीट द प्रेस में यहां फिल्मी, गैर फिल्मी सेलिब्रिटी समेत ख्यातनाम नौकरशाह, राष्ट्रीय राजनेताओं, लेखकों आदि को आमंत्रित किया जाता था।इसके अलावा पत्रकार भवन स्पोर्ट्स, सांस्कृतिक, बौद्धिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा। इनमें भागीदारी सिर्फ पत्रकारों की ही रहती थीं। इन कारणों से पत्रकार भवन में काफी चहल-पहल रहती। खास तौर पर सुबह 10 से दोपहर 12.30 बजे तक काफी भीड़ रहती। कुछ ऐसा नजारा शाम 4 से 6 बजे के बीच भी रहता। यहां नई पीढ़ी को बुजुर्ग पत्रकारों के अनुभव का लाभ मिलता था।
1980-90 के दशक में पत्रकार भवन के सुव्यवस्थित संचालन और बेहतर रखरखाव के लिए कई पत्रकार आगे आए। इसमें प्रमुख रूप से सर्वश्री राजेंद्र नूतन, नितिन मेहता, कैलाश गौड़, जगत पाठक, शलभ भदौरिया,एसएस वाटवे,सिद्धार्थ खरे, प्रशांत कुमार,अनिल साधक जैसे कई पत्रकार शामिल रहे। इसमें मेरी भी प्रत्यक्ष रूप से सक्रिय भागीदारी रही।
भवन की आय बढ़ाने के लिए पत्रकार भवन समिति ने पत्र सूचना कार्यालय को इसके तीन कमरे किराए पर दिए गए। बाद में कुछ वर्षों तक रंगश्री लिटिल बैले ट्रूप भी यहां किराये से रहा।बाद में यह मांगलिक आयोजन स्थल बन गया। नियमित रखरखाव एवं मरम्मत के अभाव एवं आपसी विवादों में यह भवन निरंतर खंडहर होता चला गया। जिन्होंने अपने आधिपत्य में ले रखा था, उन्होंने इसकी सीरत ही नहीं, सूरत भी बिगाड़ दी थी। वहीं, आईएफडब्ल्यूजे में भी दो फाड़ की स्थिति बन गई।
कई विवादों के बाद पत्रकार भवन का मामला कोर्ट कचहरी की दहलीज तक पहुंच गया। बाद में शासन ने पहल की और अपना पक्ष रखते हुए आवंटित भूमि का कब्जा वापस ले लिया। जनसंपर्क विभाग को उक्त भवन व भूमि का आधिपत्य लेने का आदेश हो गया। उस दौरान वर्ष 2015 में जनसंपर्क विभाग के प्रमुख सचिव/ आयुक्त रहे श्री एसके.मिश्रा ने उक्त भूमि पर अत्याधुनिक सुविधा से युक्त मीडिया सेंटर के निर्माण की योजना तैयार की। डिजाइन भी बनवाई थीं। लेकिन तब शासन, पत्रकार भवन पर अपना आधिपत्य नहीं ले पाया था। मामला कुछ दिन अटका रहने के बाद शासन की ओर से निर्देश मिलने पर जनसंपर्क विभाग के अधिकारी श्री प्रलय श्रीवास्तव ने वर्ष 2015 में अपनी टीम को ले जाकर भारी विरोध के बावजूद पत्रकार भवन के सारे कमरों में ताले जड़ दिए। अनजानी आशंकाओं के चलते यहां सुरक्षा बल को एहतियात के तौर पर तैनात कर दिया गया । तब पत्रकार दो भागों में बंट गए। लेकिन पत्रकारों की बड़ी जमात ने शासन के फैसले का स्वागत किया। बाद के समय में जब श्री पी. नरहरि आयुक्त जनसंपर्क बने तो उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर श्री तरुण पिथोड़े से उक्त भवन की जमीन को भू राजस्व अभिलेख में शामिल करने हेतु कार्रवाई करने के लिए कहा, जिस पर तत्काल कार्रवाई हुई और खसरे, रेवेन्यू रिकॉर्ड में यह जमीन जनसंपर्क विभाग के नाम पर दर्ज कर दी गई। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार आने पर फिर पत्रकार भवन की चिंता हुई और जर्जर हो रहे इस भवन को गिराने का आदेश दिया गया।
9 दिसंबर 2019 को जनसंपर्क विभाग, जिला प्रशासन, नगर निगम के अधिकारियों, पुलिस की मौजूदगी में एक दिन की कार्यवाही में ही यह भवन पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। ये भी एक संयोग था कि जर्जर हो चुके इस भवन को 9-10 दिसंबर 2019 की सर्द रात को तोड़ने के आदेश हुए तो भवन गिराने की टीम में उप संचालक जनसंपर्क श्री प्रलय श्रीवास्तव प्रमुख हिस्सा भी रहे। वर्ष 2020 से लेकर 2022 तक भवन के मलबे को हटाने के प्रयास भी हुए। इसके उपरांत मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने सितंबर में ही एक कार्यक्रम में पुनः इस स्थान पर स्टेट मीडिया सेंटर बनाने की घोषणा की। अब स्टेट मीडिया सेंटर के लिए 03 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे भूमि पूजन होने जा रहा है , जिसको लेकर भोपाल ही नहीं, मध्य प्रदेश के पत्रकारों में काफी उत्साह है। हर्ष है। सभी पत्रकारों ने इसका स्वागत किया है। साथ ही वे गर्व भी महसूस कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश की राजधानी में उनके हित में अत्याधुनिक स्टेट मीडिया सेंटर का निर्माण होने जा रहा है। इसके लिए पत्रकारों ने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का आभार भी माना है।

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