पाहलगाम आतंकी हमला: भारत-पाक तनाव के बीच EU की अपील – संयम और संवाद से सुलझाएं हालात

समग्र समाचार सेवा
दिल्ली 3 मई 2025:
दक्षिण एशिया एक बार फिर उबाल पर है। 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पाहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे क्षेत्र में तनाव की ज्वाला भड़का दी है। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जिनमें अधिकतर घरेलू पर्यटक थे। भारत ने इसे ‘सीमा पार आतंकी साजिश’ बताया है और इसका सीधा आरोप पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठनों पर लगाया है।

इस बढ़ते तनाव के बीच यूरोपीय संघ (EU) ने दोनों परमाणु संपन्न देशों — भारत और पाकिस्तान — से संयम बरतने और संवाद की राह अपनाने की अपील की है। EU की विदेश नीति प्रमुख काजा कैलास ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार से टेलीफोन पर बातचीत कर इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की।

काजा कैलास ने अपने आधिकारिक बयान में कहा, “भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव चिंताजनक है। मैं दोनों देशों से अपील करती हूं कि वे संयम बरतें और संवाद के माध्यम से स्थिति को नियंत्रण में लाएं। टकराव किसी के हित में नहीं है।”

भारत ने इस आतंकी हमले को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि दोषियों को कड़ी सज़ा दी जाएगी। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इस हमले के पीछे पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क के शामिल होने के पुख्ता सबूत होने का दावा किया है। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भारत के आरोपों को “बेबुनियाद” बताते हुए किसी भी प्रकार की “सैन्य साहसिकता” के खिलाफ चेतावनी दी है। उप प्रधानमंत्री डार ने EU को बताया कि पाकिस्तान जांच में सहयोग को तैयार है, लेकिन झूठे आरोप स्वीकार नहीं करेगा।

इस घटनाक्रम ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी चिंता में डाल दिया है। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो पहले ही भारत और पाकिस्तान के शीर्ष नेताओं से बातचीत कर चुके हैं और उन्होंने भी शांति और कूटनीति पर ज़ोर दिया है।

इस हमले के बाद पूरे दक्षिण एशिया में युद्ध जैसे हालात बनने लगे हैं। सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर दोनों देशों के बीच सैन्य कार्रवाई की अटकलें तेज़ हैं। वहीं, अंतरराष्ट्रीय दबाव लगातार इस बात पर है कि हालात को कूटनीतिक तरीके से संभाला जाए।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने काजा कैलास से हुई बातचीत के बाद कहा, “EU द्वारा आतंकवाद की हर प्रकार की निंदा करना सराहनीय है। यूरोपीय संघ का समर्थन भारत के रुख को मजबूती देता है।”

अब सभी की निगाहें भारत की अगली रणनीतिक चाल पर टिकी हैं। क्या भारत सैन्य प्रतिकार करेगा या अंतरराष्ट्रीय समर्थन के सहारे राजनयिक मोर्चे पर दबाव बनाएगा? क्या बैकडोर डिप्लोमेसी एक और युद्ध टाल पाएगी या दक्षिण एशिया एक और भयानक संकट की ओर बढ़ रहा है?

एक बात तो तय है — पाहलगाम की त्रासदी ने न केवल जानें ली हैं, बल्कि एक बार फिर उपमहाद्वीप के शांति प्रयासों को झकझोर दिया है।

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