प्रो. एम. एम. गोयल, पूर्व कुलपति
पुस्तक समीक्षा – क्रांतिकारी और ब्रिटिश राज: हार्डिंग बम घटना के शहीद
लेखक: प्रो. अमरजीत सिंह (सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, इतिहास विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन, बंदा सिंह बहादुर चेयर के निदेशक एवं महात्मा गांधी अखिल भारतीय सेवाएँ कोचिंग संस्थान, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) ISBN: 978-81-972077-9-2 मूल्य: ₹ 550 पृष्ठ: 133 प्रकाशक: कनिष्का पब्लिशर्स, डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली
नीडोनॉमिक्स और क्रांतिकारी बलिदान
नीडोनॉमिक्स की मूल भावना आवश्यकताओं और अतिशयताओं में भेद करने में निहित है, जो भगवद गीता के निष्काम कर्म सिद्धांत—फल की आसक्ति के बिना निःस्वार्थ कर्म—से प्रेरित है। इस पुस्तक में वर्णित क्रांतिकारी जैसे मास्टर अमीर चंद, भाई बल मुकुंद, अवध बिहारी, और बसंत कुमार विश्वास इस सिद्धांत के साक्षात उदाहरण हैं। वे भौतिक लाभ या स्वार्थ से प्रेरित नहीं थे, बल्कि भारत की स्वतंत्रता के प्रति अटूट समर्पण ने उन्हें प्रेरित किया। अपने सामाजिक-आर्थिक विशेषाधिकारों का त्याग कर राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देने की उनकी प्रतिबद्धता नीडोनॉमिक्स के इस सिद्धांत से मेल खाती है कि व्यक्तिगत आकांक्षाओं के बजाय राष्ट्रीय कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
ऐतिहासिक और वैचारिक परिप्रेक्ष्य
प्रो. सिंह के शोध से स्पष्ट होता है कि ये क्रांतिकारी न तो अलग-थलग थे और न ही केवल क्षेत्रीय आंदोलनकारी थे। उनका वैचारिक आधार बंगाल, बॉम्बे और संयुक्त प्रांतों के आंदोलनों से जुड़ा हुआ था। यह आपसी संबंध नीडोनॉमिक्स के आर्थिक और सामाजिक प्रगति में एकता के मूल सिद्धांत से मेल खाता है। क्रांतिकारी आंदोलन कोई सांप्रदायिक संघर्ष नहीं था, बल्कि यह एक अखिल भारतीय दृष्टिकोण वाला आंदोलन था, जो धार्मिक और क्षेत्रीय विभाजनों से परे था। यह आज की सामाजिक-आर्थिक नीतियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण सीख है।
साहित्य और विचार नेतृत्व की भूमिका
पुस्तक की एक महत्वपूर्ण खोज यह है कि ऐतिहासिक और धार्मिक साहित्य ने क्रांतिकारी विचारधारा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गीता, कृष्ण का हृदय, वेदों के शास्त्र, और बंकिम चंद्र चटर्जी एवं स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ क्रांतिकारियों के नैतिक और बौद्धिक मार्गदर्शक रहे। गीता-प्रेरित ‘धर्म’ (कर्तव्य) का सिद्धांत इन क्रांतिकारियों के राष्ट्र-सेवा के संकल्प में झलकता है। इसी प्रकार, नीडोनॉमिक्स भी एक ऐसी अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है जो नैतिक मूल्यों पर आधारित हो, न कि अतिवादी उपभोक्तावाद पर। यह पुस्तक यह प्रमाणित करती है कि सच्ची प्रगति धन के संचय से नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक भलाई में योगदान से मापी जानी चाहिए।
क्रांतिकारियों की आर्थिक स्थिति
इस पुस्तक का एक विशेष रूप से सूक्ष्म विश्लेषण क्रांतिकारियों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि है। आम धारणा के विपरीत कि क्रांतियाँ आर्थिक निराशा से उत्पन्न होती हैं, यह अध्ययन दर्शाता है कि लाला हरदयाल और भाई बल मुकुंद जैसे कई नेता उच्च-मध्यम वर्ग से आते थे और शिक्षा एवं आर्थिक स्थिरता तक उनकी पहुँच थी। उनकी क्रांतिकारी भागीदारी आर्थिक असुरक्षा से प्रेरित नहीं थी, बल्कि एक अटूट नैतिक विश्वास से प्रेरित थी। यह नीडोनॉमिक्स के इस सिद्धांत को सुदृढ़ करता है कि वास्तविक परिवर्तन केवल आर्थिक विवशताओं से नहीं, बल्कि मूल्य-आधारित नेतृत्व से संभव होता है।
मीडिया और जनधारणा
पुस्तक राष्ट्रीय प्रेस की क्रांतिकारियों के प्रति उदासीन प्रतिक्रिया की आलोचना करती है। अधिकांश प्रमुख समाचार पत्र उनके बलिदान का खुलकर समर्थन करने से हिचकते रहे, जिससे यह पता चलता है कि बौद्धिक राष्ट्रवाद और जमीनी स्तर के क्रांतिकारी आंदोलन के बीच एक अंतर था। नीडोनॉमिक्स के दृष्टिकोण से, यह नैतिक मीडिया और जिम्मेदार सूचना प्रसार के महत्व को रेखांकित करता है—जो किसी भी युग में जनचेतना को आकार देने के लिए अनिवार्य है।
अभिलेखीय गहराई और विद्वतापूर्ण परिश्रम
प्रो. सिंह का औपनिवेशिक प्रशासकों के निजी दस्तावेजों, गृह राजनीतिक विभाग के अभिलेखों, और समकालीन समाचार पत्रों पर निर्भरता उनके विश्लेषण को अद्वितीय गहराई प्रदान करती है। उनकी न्यायिक प्रक्रियाओं की निष्पक्ष पड़ताल ब्रिटिश कानूनी व्यवस्था की अंतर्निहित पक्षपातपूर्ण प्रवृत्तियों को उजागर करती है। यह अनुभवजन्य दृष्टिकोण नीडोनॉमिक्स के इस सिद्धांत के अनुरूप है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रचार और अटकलों के बजाय प्रामाणिक ज्ञान पर आधारित होनी चाहिए।
समकालीन नीति और अध्ययन के लिए प्रासंगिकता
यह पुस्तक केवल ऐतिहासिक विवरण नहीं है, बल्कि यह नीति-निर्माताओं, शोधार्थियों
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