समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 अप्रैल। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं। हाल ही में राज्य के मुर्शिदाबाद जिले में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद जहां हिंदू समाज की महिलाओं, बच्चों और आम नागरिकों पर गंभीर हमले हुए, वहीं मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया को लेकर कई संगठन, राजनीतिक दल और सामाजिक कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं।
इनका आरोप है कि ममता बनर्जी ने पीड़ित हिंदू परिवारों की सुध लेने के बजाय इमामों, उलेमाओं और धार्मिक नेताओं से मुलाकात करना ज़्यादा जरूरी समझा। ऐसे में यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या राज्य सरकार केवल एक वर्ग विशेष के हितों को प्राथमिकता दे रही है?
मुर्शिदाबाद में हुई हालिया हिंसा में कई हिंदू परिवारों को अपने घर छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी। महिलाओं ने अपने साथ हुए अत्याचारों की दास्तां सुनाई, बच्चे डरे-सहमे हैं, और पुरुष अपने परिवार की सुरक्षा के लिए दिन-रात पहरा दे रहे हैं।
हालांकि, इन पीड़ितों से मिलने अब तक न तो मुख्यमंत्री पहुंची हैं और न ही किसी उच्च अधिकारी ने कोई ठोस आश्वासन दिया है।
इस चुप्पी पर प्रतिक्रिया देते हुए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा,
“क्या ममता बनर्जी की ममता केवल इमामों और मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं के लिए ही है? क्या हिंसा का शिकार हिंदू समाज उनके लिए कोई मायने नहीं रखता?”
भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। एक भाजपा नेता ने कहा,
“यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री आज उन लोगों से बैठकें कर रही हैं जिन पर हिंसा को भड़काने के आरोप लग रहे हैं, लेकिन जिन्हें हिंसा झेलनी पड़ी, उनके लिए उनके पास वक्त नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा,
“क्या वे सिर्फ ‘जिहादियों की दीदी’ बन कर रह गई हैं? बंगाल की बहनों और बेटियों की पीड़ा क्या उन्हें दिखाई नहीं देती?”
क्या ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की नीति अब राज्य की कानून-व्यवस्था को निगल रही है?क्या वे पीड़ित हिंदू परिवारों को मुआवजा, सुरक्षा और न्याय दिलाने के लिए कोई कदम उठाएंगी?क्या इमामों से मुलाकात के पीछे कोई रणनीतिक राजनीतिक एजेंडा है?क्या भारत की संसद द्वारा पारित कानूनों का विरोध करने के लिए उकसाने वाले तत्वों को राज्य सरकार का संरक्षण मिल रहा है?
जमीनी स्तर पर लोगों का गुस्सा भी अब खुलकर सामने आने लगा है। सोशल मीडिया पर हैशटैग्स के ज़रिए राज्य सरकार की आलोचना हो रही है। राहत शिविरों में रह रहे पीड़ितों का कहना है कि वे खुद को “अपने ही राज्य में पराया” महसूस कर रहे हैं।
एक महिला पीड़िता ने कहा,
“हमारे घर जला दिए गए, हमें मारा गया, हमारे बच्चों को धमकाया गया… लेकिन ममता दीदी अब तक नहीं आईं। क्या हम बंगाल के नहीं हैं?”
वर्तमान स्थिति में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर यह दबाव बढ़ता जा रहा है कि वे अपनी “ममता” सभी समुदायों के प्रति समान रूप से दिखाएं। मुर्शिदाबाद सहित राज्य के अन्य हिस्सों में हुई हिंसा के पीड़ितों को न्याय और राहत दिलाने के लिए राज्य सरकार को जल्द ही ठोस कदम उठाने होंगे।
राजनीति में संतुलन बनाए रखना जरूरी है, लेकिन अगर एक वर्ग विशेष के प्रति अत्यधिक झुकाव आम जनता के दर्द को अनदेखा करने की कीमत पर होता है, तो लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं माना जा सकता।
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