27 साल पुराने हिरासत में यातना मामले में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को राहत, अदालत ने बरी किया

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,11 दिसंबर।
पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 27 साल पुराने हिरासत में यातना मामले में बड़ी राहत मिली है। अदालत ने इस मामले में संजीव भट्ट को बरी कर दिया है। यह मामला 1996 का था, जिसमें भट्ट और अन्य पुलिस अधिकारियों पर हिरासत में एक आरोपी के साथ मारपीट और यातना का आरोप लगाया गया था।

क्या था मामला?

1996 में गुजरात के बनासकांठा जिले में संजीव भट्ट उस समय पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद पर तैनात थे। उन पर आरोप था कि उन्होंने हिरासत में एक आरोपी के साथ यातना की थी, जिससे उसकी तबीयत बिगड़ गई। बाद में इस मामले को लेकर संजीव भट्ट और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी।

अदालत का फैसला

गुजरात की एक सत्र अदालत ने सभी साक्ष्यों और गवाहों के बयान की जांच के बाद यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि इस मामले में पर्याप्त सबूत नहीं हैं, जिससे यह साबित हो सके कि भट्ट ने आरोपी को यातना दी थी। अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा।

संजीव भट्ट का बयान

फैसले के बाद संजीव भट्ट ने इसे न्याय की जीत बताया। उन्होंने कहा, “मुझ पर लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित थे। आज सच्चाई सामने आ गई है और मैं अदालत का आभारी हूं।”

विवादों से घिरा रहा है करियर

संजीव भट्ट का करियर हमेशा विवादों से घिरा रहा है। उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे। इसके बाद से ही वह राजनीति और प्रशासनिक विवादों के केंद्र में रहे।

राजनीतिक जुड़ाव के आरोप

इस मामले को लेकर कई राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी हुए। कुछ लोगों ने इसे सरकार द्वारा बदले की कार्रवाई करार दिया था, जबकि अन्य ने इसे न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बताया।

न्याय की जीत या राजनीति का अंत?

इस फैसले ने एक बार फिर पुलिस और न्याय व्यवस्था में राजनीति के हस्तक्षेप पर बहस छेड़ दी है। संजीव भट्ट का मामला इस बात का उदाहरण है कि किस तरह प्रशासनिक अधिकारी को उनके कार्यों के लिए निशाना बनाया जा सकता है।

आगे की राह

इस फैसले के बाद संजीव भट्ट के समर्थकों ने इसे न्याय की जीत बताया है। हालांकि, उनके खिलाफ अन्य मामलों की जांच और सुनवाई जारी है।

यह फैसला न केवल संजीव भट्ट के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास को भी मजबूत करता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले का उनके अन्य मामलों और सार्वजनिक छवि पर क्या प्रभाव पड़ता है।

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